साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'भेड़ियों पर रहम करना, बकरियों पर जुल्म है'

हिन्दी का सबसे बड़ा महोत्सव साहित्य आजतक शुरू हो गया है. ये कार्यक्रम दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन दिन तक चलेगा, यहां हिंदी के कई जाने माने कवि-लेखक हिस्सा लेंगे.

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साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश

मोहित ग्रोवर

  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

आजतक के खास कार्यक्रम 'साहित्य आजतक' के मंच पर देश के जाने-माने लेखकों ने कई मुद्दों पर बहस की. कार्यक्रम के 'हल्ला बोल' मंच पर 'साहित्य का राष्ट्रधर्म' मुद्दे पर चर्चा हुई. जिसमें नंद किशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश जैसे वरिष्ठ लेखक शामिल हुए.

'बोलने वाली औरत' और 'भविष्य का स्त्री विमर्श' जैसे उपन्यास लिखने वालीं वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया ने कहा कुछ लेखक या पत्रिकाएं ऐसी हैं, जो किसी एक विचारधारा को प्रतिपादित करती हैं. लेकिन इस आधार पर पूरे साहित्य समाज के बारे में एक समान विचार बनाना गलत है.

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उन्होंने कहा कि भेड़ियों पर रहम करना, बकरियों पर जुल्म है, आज आप सभी के लिए एक कोड नहीं बना सकते हैं, हम लेखक अपनी आवाज-कलम सुरक्षित रखना चाहते हैं. कोई ये नहीं निर्धारित नहीं कर सकता है कि लेखक क्या लिखेगा.

ममता कालिया बोलीं कि अगर आज आप रिपोर्ट लिखाने जाएं तो उल्टा दारोगा आपसे पूछता है कि घर में 50,000 रुपये क्यों रखा था. वरिष्ठ लेखिका बोलीं कि हम राष्ट्र और देश के बीच में खुद को उलझा रहे हैं. राष्ट्र की इज्जत ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि इसमें सिर्फ हिंदू नहीं हैं बल्कि कई धर्म के लोग रहते हैं.

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उन्होंने कहा कि हमें अल्पसंख्यकों के राष्ट्रवाद की भी बातें करनी चाहिए. राष्ट्र और राष्ट्र में रहने वालों के प्रति एक जैसा भाव होना चाहिए. आज देश में दो तिहाई लोग असुरक्षा की भावना से रह रहे हैं.

बता दें कि इस सेशन में ममता कालिया के अलावा नंद किशोर पांडेय और अखिलेश जैसे बड़े लेखक भी शामिल हुए. इन लेखकों ने भी देश में राष्ट्रवाद, आज के साहित्य, लेखकों के बारे में बात है.

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