देश की राजधानी दिल्ली में साहित्य के सितारों का महाकुंभ यानी साहित्य आजतक 2025 जारी है. आज कार्यक्रम का दूसरा दिन है. नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम में आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न साहित्यिक सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें कला, साहित्य और संगीत के क्षेत्र की शख्सिय समेत तमाम राजनीतिक दिग्गज भी शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम के पब्लिक, पॉलिक्टिस और पत्रकारिता की चुनौतियां-सत्र में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने शिरकत की, जहां उन्होंने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत से लेकर राजनीतिक सफर को लेकर चर्चा की. उन्होंने बताया कि वह राजनीति में कैसे और क्यों आए.
आज के संपादक और उस वक्त से संपादक में फर्क होता है. इस सवाल का जवाब देते हुए उपसभापति ने कहा, 'हर दौर की चुनौतियां अलग-अलग होती हैं. हमारे यहां कथन है- देश, काल और परिस्थितियां इसका अर्थ उस दौर से हैं, जहां चुनौतियां उस दौर से होती हैं. हमारे जैसे युवा पत्रकारिता आए ही जयप्रकाश आंदोलन से प्रभावित होकर, मैं जयप्रकाश जी के गांव का था. मुझे सहयोग से अवसर मिला 19-20 वर्ष की उम्र में टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप की धर्मयुग पत्रिका में चयनित हुआ, वहां से फिर मैं रविवार में काम करने कोलकाता गया. पर सोचता था कि हमारी पत्रकारिता सामाजिक परिवर्तन में कोई रोल प्ले कर सकती है क्या और इसका अगर शक्ति स्रोत कोई था. तो सिर्फ जेपी का जीवन था, उन्होंने अमेरिका में जब उन्होंने पढ़ाई की तो अपने बूते नौकरी कर होटल में नौकरी कर खेतों में श्रम करके अपनी पढ़ाई की और भारत लौटे और कभी सत्ता के आकांक्षा नहीं की तो उनका जीवन उनके परिवार का जीवन बड़ा नजदीक से हमने देखा. जब तत्कालीन सत्ता पर बैठे लोगों ने उन पर आरोप लगाए तो वो बहुत व्यतीत हुए उनकी भावना से आहत होकर हम जैसे बिल्कुल आंदोलन में आए.
'मैंने अविभाजित बिहार में किया काम'
मैं अविभाजित बिहार के अखबार में मैंने काम करना शुरू किया झारखंड में. झारखंड का वह इलाका बहुत सुंदर तो है ही, आदिवासियों का इलाका और उसे पर लंबे समय से कहा जाता रहा कि यह अपेक्षित इलाका है. वहां से हम लोगों ने पत्रकारिता शुरू की. मेरा मानना है कि मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं व्यक्ति नहीं. लंबी पत्रकारिता के बाद में राजनीति में आया.
'हाथरस-लखीमपुर जैसे मुद्दों का असर'
हाथरस और लखीमपुर खीरी कांड के बाद इन सीटों पर सत्ताधारी पार्टी की जीत से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, 'भारतीय राजनीति के संदर्भ में मैं कह सकता हूं कि पॉलिटिकल एजुकेशन प्रक्रिया है और वक्त लगता है. आप देखें 1952 के चुनाव में भी बिहार में चुनाव हुए, किस तरह से डॉ राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण मुद्दे उठाते थे गरीबों के, वह वर्ग की बात नहीं करते थे. वह सारे सारी जातियां के गरीबों की बात करते थे. उसे वक्त के उनके मुद्दे को देखिए और मुद्दे आते-आते 1966-67 में कांग्रेस की सरकार गई, यानी एक प्रक्रिया से लोगों को प्रशिक्षण देने में वक्त लगता है. यह कोई चमत्कार जैसा नहीं है कि आपने आज कुछ केमिकल डाला और कल सुबह कुछ बदल जाए. तो आजतक ने जो भी इन मुद्दों पर दिखाया. वो पब्लिक को एजुकेट करता है. इसका असर आप आने वाले समय में पाएंगे.'
'पॉलिटिक्स इज आर्ट'
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एक कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए कहा, 'पॉलिटिक्स इज आर्ट... पॉलिटिक्स एक कला हैं, जिसको हमने नेगलेक्ट किया हैं. इट इज ओनली आईएफ आर्ट ऑफ पॉलिटिक्स सक्सेस देन द साइंस का पॉलिटिक्स विल बी एफिशिएंट स्टडीज एंड मास्टर्ड. हमें उसका अध्ययन करना पड़ेगा.'
'आई हेट पॉलिटिक्स...'
उन्होंने नागालैंड के रहने वाले एक लड़के का जिक्र करते हुए कहा, 'उसने मुझे कहा कि वह पॉलिटिक्स को पसंद नहीं करता. तो मैंने कहा, तुम चाहते हो आसपास की व्यवस्था अच्छी बनें. तुम्हारा शहर अच्छा हो या प्रदूषण खत्म हो. तो यह कैसे होता, अल्टीमेटली पॉलिटिक्स जो है वह फिट तय करती है. पॉलिटिक्स समाज को दिशा देती है और पॉलिटिक्स से ऊपर भी साहित्य है.
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'मैं बिहार के विकास का साक्षी'
राजनीति में आने के सवाल पर बोलते हुए उन्होंने कहा, 'लगभग चार दशकों तक पत्रकारिता के बाद और मैंने बिहार को बदलते देखा. नीतीश जी सत्ता में थे, उनका प्रस्ताव था कि मैं राज्यसभा में जाऊं मैं स्वीकार किया, क्योंकि मैं मानता था कि पॉलिटिक्स से सत्ता तक मैंने राजनीतिक पत्रकार के रूप में समाज को गहराई से नजदीक से देखा, राजनीति को भी देखूं. और नीतीश वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने बिहार को कहां से कहां पहुंचाया, इसका मैं साक्षी रहा.'
उन्होंने कहा, 'दूसरी बात मैं कहूं कि उसे वक्त भी जो आप कह रही है ऐसा बहुत सारे लोग बहुत स्पष्ट रूप से कहते हैं कि आप पत्रकारिता में रहे और नीतीश से संपर्क था. इस वजह से आप राजनीति में आए. ऐसा बिल्कुल नहीं है. हमारे प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष होते थे मार्कंडेय काटजू जो सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं. उन्होंने एक बार प्रेस काउंसिल चेयरमैन के रूप में एक साधारण बयान बिहार के सारे अखबारों के लिए दिया कि बिहार में अखबार सरकार की आलोचना नहीं छाप रहे हैं.'
'अगर आप तटस्थ हैं...'
उनके उस बयान के बाद मैंने उन्हें खुले में चार पेज का ओपन लेटर उनको लिखा, जिसको अपने अखबार में छापा भी. हमने उसमें बताया कि कितनी आलोचनाएं कहां-कहां की छापी थी. पर जहां पर इतिहास बना रहा है, अगर हम उसके साथ न्याय नहीं करते हैं तो दिनकर ने भी कहा कि अगर आप तटस्थ हैं तो आपके अपराध को भी इतिहास दर्ज करेगा. और हमने अच्छे कामों का उल्लेख भी किया. इस लिए मैं मानता हूं कि पॉलिटिक्स समाज को चेंज करने का तरीका है. और पत्रकारिता लोगों को इनफॉर्म करके सजग बनाने और जागरूक बनाने का सबसे बड़ा सशक्त माध्यम है.'
नीतीश कुमार के लगातार सत्ता में बने रहे के सवाल पर बोलते हुए उपसभापति ने कहा, 'उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि वह 20 वर्षों से सत्ता में हैं और उन पर कोई दाग नहीं है. दूसरा उनकी सादगी. आपको मैं बताऊं कि उनके निजी जीवन के रहन-सहन और जो दूसरे लोग सत्ता में हैं, उनके निजी जीवन के रहन-सहन में बहुत अंतर है. मैं संवैधानिक पद पर हूं बहुत खुलकर नहीं बता सकता.'
'नीतीश का निजी जीवन सादगी पूर्ण'
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार का जीवन जितनी सादगी पूर्ण है, वह कह सकते हैं कि जो जयप्रकाश ने नारा दिया था कि संपूर्ण क्रांति समाज में हो तो उसको आगे बढ़ने वालों में उनके अनुयायी जितने निकले उनमें सबसे प्रामाणिक चेहरा आज वही हैं. अपने परिवार के किसी व्यक्ति को दूर-दूर तक सत्ता में नहीं रखा. उन पर आज इतने पदों पर रेल मंत्री से लेकर यहां तक रहते हुए कोई एक दाग नहीं लगा. आज की राजनीति में आप इसको मामूली बात मानती हैं.
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