साहित्य आजतक मुशायरा: 'कलेजा चाहिए अखबार देखने के लिए'

साहित्य आजतक 2018 के आखिरी दिन शायरी की महफिल सजी. इस महफिल में देश के जाने-माने शायर आए और लोगों का दिल जीत लिया.

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साहित्य आजतक, 2018 साहित्य आजतक, 2018

मोहित ग्रोवर

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 9:08 AM IST

साहित्य आजतक 2018 के तीसरे और आखिरी दिन देश के बड़े शायरों ने अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया. साहित्य आजतक पर हुए इस मुशायरे में मशहूर शायर राहत इंदौरी, वसीम बरेलवी, मंजर भोपाली, आलोक श्रीवास्तव, शीन काफ निजाम, डॉ नवाज देवबंदी, डॉ लियाकत जाफरी, तनवीर गाजी शामिल हुए.

पढ़ें सभी शायरों के शेर...

राहत इंदौरी 

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे

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जो परदेस में वो किससे रजाई मांगे

अपने हाकिम की फकीरी पर तरस आता है

जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे

सफर में आखिरी पत्थर के बाद आएगा

मजा तो यार दिसंबर के बाद आएगा

मेरा जमीर मेरा ऐतबार बोलता है

मेरी जुबान से परवरतिगार बोलता है

कुछ और काम तो जैसे उसे आता ही नहीं

मगर वो झूठ बहुत शानदार बोलता है

बचा के रखी थी कुछ रोशनी जमाने से

हवा चराग उड़ा ले गई सिरहाने से

बहकते रहने की आदत है मेरे कदमों को

शराबखाने से निकलूं कि चायखाने से

जिंदगी सवाल थी जवाब मांगने लगे

फरिश्ते आकर ख्वाब में हिसाब मांगने लगे

इधर किया करम किसी पे इधर जता दिया

नमाज पढ़कर आए और शराब मांगने लगे

मैं जुगनुओं को मुंह लगाकर उलझनों में पड़ गया

ये बेवकूफ मुझसे आफताब मांगने लगे

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सुखनवरों ने खुद बना दिया सुखन को एक मजाक

जरा सी दाद क्या मिली खिताब मांगने लगे

खड़े हैं मुझको खरीदार देखने के लिए

मैं घर से निकला था बाजार देखने के लिए

कतार में कई नाबिना लोग शामिल हैं

अमीर-ए-शहर का दरबार देखने के लिए

हजारों बार हजारों की सम्त देखते हैं

तरस गए तुझे एक बार देखने के लिए

हर एक हर्फ से चिंगारियां निकलती हैं

कलेजा चाहिए अखबार देखने के लिए

वसीम बरेलवी

तुम्हारा साथ भी छूटा, तुम अजनबी भी हुए

मगर जमाना तुम्हें अब भी मुझमें ढूंढता है

तुम मेरी तरफ देखना छोड़ो तो बताओ

हर शख्स तुम्हारी ही तरफ देख रहा है

जवां नजरों पर कब उंगली उठाना भूल जाते हैं

पुराने लोग हैं अपना जमाना भूल जाते हैं

कोई टूटी सी कश्ती ही बगावत पर उतर आए

तो कुछ दिन को ये तूफां सर उठाना भूल जाते हैं

जिन्हें आपस में टकराने से ही फुर्सत नहीं मिलती,

उन्हीं शाखों के पत्ते लहलहाना भूल जाते हैं

इतना बिखराव संभाला नहीं जाता मुझसे

खुद को यूट्यूब पर डाला नहीं जाता मुझसे

पांव जख्मों के हुए जाते हैं ऐसे आदि

अब तो कांटा भी निकाला नहीं जाता मुझसे

हवा के सामने सीनासिपर तो रहता है

मगर चराग है बुझने का डर तो रहता है

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दरिया का सारा नशा उतरता चला गया

मुझको डुबाया और मैं उभरता चला गया

वो पैरवी तो झूठ की करता चला गया

लेकिन उसका चेहरा उतरता चला गया

मंजर भोपाली

खूबसूरत ये मोहब्बत में सजा दी उसने,

फिर गले मिलकर मेरी उम्र बढ़ा दी उसने

दुश्मनी उसकी तबीयत रची है मंजर

कोई चिंगारी जहां देखी हवा दी उसने

मैंने पूछा उनसे कि मोहब्बत है क्या

वो गजल मेरी मुझको सुनाने लगे

जिंदगी काट देंगे गली में तेरी

जानेमन हमको तेरी गली तो मिले

वो कहीं तो मिले, वो कभी तो मिले

हम भी कह देंगे घर में बहार आई है

कोई डाली चमन में हरी तो मिले

मुझको रावण ही रावण मिले हैं मगर

जिंदगी में कभी राम भी तो मिले

तुम भी पियो हम भी पिये रब की मेहरबानी

प्यार के कटोरे में गंगा का पानी

तुमने भी सवारी है हमने भी सवारी है

ये जमी तुम्हारी है ये जमी हमारी है

होलियों के रंगों सी ईद की सेवियों से

मंदिरों की फूलो सी -सुबहो की अजानो सी

इस जमी में लिखना है प्यार की कहानी

प्यार के कटोरे में गंगा का पानी

धर्म जो तुम्हारा है कर्म जो हमारा है

धर्म सबका प्यारा है बस भ्रम ने मारा है

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धर्म पर झगड़ते है धर्म पर जो लड़ते है

अपनी इस लड़ाई से अपनी इस बुराई से

शर्म से ना हो जाए धर्म पानी-पानी

कश्मीर वाले हो, दिल्ली के जियाले हो,

यूपी के हो मतवाले, या बिहार के पाले

गीत गाते गुजराती, बन के रहे साथी,

कोई धर्म वाले हो गोरे हो या काले हो

जाति हम सभी की है हिंदुस्तानी,

प्यार के कटोरे में गंगा का पानी

आलोक श्रीवास्तव

बात करो तो लफ्जों से भी खुशबू आती है,

लगता है इस लड़की को भी उर्दू आती है

तन्हाई में दिल से अक्सर खुशबू आती है

याद हमें अम्मा आती है या तू आती है

नवाज देवबंदी

तू ही बता हमें दिल ए बर्बाद क्या करें

उसको करें ना याद तो फिर याद क्या करें

तुझे याद करने के शोक में यूं हुआ कि खुद को भूला दिया

मेरा नाम पूछा किसी ने तो उसे तेरा नाम बता दिया

मैं चराग था तू चराग था मगर अपना-अपना नसीब है

तुझे आंधियों ने जला दिया, मुझे आंधियों ने बुझा दिया

जफा के किस्से वफा के किताब में लिखे, सितम भी सब उसके अपने हिसाब में लिखे

सवाल भेजे थे कल खत में लिखके उसको, हमारे शेर ही उसने जवाब में लिखे

कहानी भी हकीकत हो गई क्या, मेरे ऊपर इनायत हो गई क्या

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शिकायत पर शिकायत कर रहे हो, तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या

जब मैंने उसे खास निगाहें नाज से देखा, आइना फिर उसने नए अंदाज से देखा

महफिल में जिसे गौर से सब देख रहे थे, देखा ना उसे मैंने तो उसने मुझे देखा

लियाकत जाफरी

दर्द ने मीर तकी मीर बना रखा है

मुझको इस इश्क ने कश्मीर बना रखा है

हाय अफसोस कि किस तेजी से दुनिया बदली

ये जो सच है कभी झूठ हुआ करता था

कितना दुश्वार है जज्बों की तिजारत करना

एक ही शख्स से दो बार मोहब्बत करना

अजीब लोग थे वो तितलियां बनाते थे,

समुंदरों के लिए मछलियां बनाते थे,

मेरे कबीले में तालीम का रिवाज ना था,

मेरे बुजुर्ग मगर तख्तियां बनाते थे

हमारे गांव में दो-चार हिंदू दर्जी थे,

नमाजियों के लिए टोपियां बनाते थे

तनवीर गाजी

दुखी मौसम में एक लम्हे की खुशहाली निकाली,

मेरे तकिये से तेरे कान की बाली निकल आई

तुम्हारे नाम कच्ची कब्र की मिट्टी पर लिखा था

जहां थे शब्द उस हस्से पर हरियाली निकल आई

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