'साहित्य आज तक' के हल्ला बोल मंच पर हिंदी कविता को समर्पित सत्र ‘कविता के बहाने’ आयोजित हुआ. इस सत्र में समकालीन काव्य जगत की तीन शख्सियत मदन कश्यप, अरुण देव और तेजेंदर सिंह लूथरा ने अपनी कविताएं पढ़ीं साथ ही हिन्दी साहित्य को लेकर दर्शकों के साथ अपने विचार साझा किए.
पेशे से पुलिस अफसर और दिल से कवि तेजिंदर लूथरा ने कहा कि मैं अक्सर भूल जाता हूं कि मैं एक पुलिसवाला हूं. उन्होंने कहा पुलिस अपना वक्त जुर्म के पीड़ितों के साथ बिताती है लेकिन फिर भी उसे संवेदनहीन नहीं माना जाता है, ये बिल्कुल गलत है. कवि लूथरा ने अपनी कविताएं 'जो नहीं मरा है' और 'एक बूंद' पढ़ीं. इस कविता के बारे में तेजिंदर ने बताया कि इसके जरिए उन्हें अपने मुश्किल वक्त से उबरने में काफी मदद मिली थी.
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तेजिंदर लूथरा ने कहा कि विद्यार्थी जीवन में जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी होगा तब सोचा भी नहीं था कि आईपीएस अफसर बनूंगा. खुशी तब भी हुई थी और आज भी कविता लिखकर होती है. उन्होंने कहा कि रचना का धर्म में एक अलग ताकत है और वह किसी भी भौतिक शक्ति से ज्यादा बलवान है. लूथरा ने अपनी कविता 'जैसे मां ठगी गई थी'. कवि ने बताया कि यह कविता तीन पीढ़ियों के बीच के संवाद को बयान करती है.
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अनुग्रह मिश्र