साहित्य आजतक: 'यंगिस्तान' को पसंद है नई वाली हिंदी

‘साहित्य आज तक’ के दूसरे दिन ‘यंगिस्तान मांगे मोर’ सत्र में सत्या ने कहा कि हमने अभी लिखना शुरू किया है. आज बेशक ये निगलेक्ट हो रही, लेकिन फिर ये रिजेक्ट होगी और रिजेक्ट तभी होगी जब ये पढ़ी जाएगी.

Advertisement
साहित्य आजतक के मंच पर गीताश्री, इंदिरा दांगी और सत्या व्यास. साहित्य आजतक के मंच पर गीताश्री, इंदिरा दांगी और सत्या व्यास.

राहुल विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST

देश की 70 फीसदी आबादी अभी युवा है. इस यंगिस्तान को लेकर हमारे युवा लेखक क्या महसूस करते हैं? ‘साहित्य आजतक’ के दूसरे दिन ‘यंगिस्तान मांगे मोर’ सत्र में इस विषय पर चर्चा के लिए गीता श्री, सत्या व्यास और इंदिरा दांगी मौजूद रहीं. कार्यक्रम का संचालन सईद अंसारी ने किया.

गीताश्री औरत की आजादी और पहचान के लिए लड़ने वाली लेखिका हैं. हाल में ही में आया उनका 'हसीनाबाद' नामक उपन्यास काफी चर्चित रहा. कहानी संग्रह 'प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियां'; कविता संग्रह 'कविता जिनका हक'; आधी दुनिया के सवालों पर 'स्त्री आकांक्षा के मानचित्र' और 'औरत की बोली'; आदिवासी लड़कियों की तस्करी पर 'सपनों की मंडी' और बैगा आदिवासियों की गोदना कला पर छपी 'देह राग' उनकी चर्चित किताबों में शामिल हैं. वह रामनाथ गोयनका पुरस्कार सहित कई अन्य सम्मानों से नवाजी जा चुकी हैं.

Advertisement

वहीं सत्य व्यास आज के जमाने के लेखक हैं. उनकी पहली किताब 'बनारस टॉकिज' खूब बिकी. वह नई वाली हिंदी के लेखक हैं और आज की पीढ़ी की तरह ही सोचते हैं. उनके खुद के शब्दों में अस्सी के दशक में बूढ़े हुए, नब्बे के दशक में जवान, इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में बचपना गुजरा और अब नई सदी के दूसरे दशक में पैदा हुए हैं. अब जब पैदा ही हुए हैं तो खूब उत्पात मचा रहे हैं. इनके दूसरे उपन्यास ‘दिल्ली दरबार’ ने भी ख़ूब धमाल मचाया और तीसरा उपन्यास ‘चौरासी’ जल्द ही आने वाला है.

इंदिरा दांगी हिंदी युवा लेखकों में एक जाना-पहचाना नाम हैं. उन्होंने 'हवेली सनातनपुर' और 'रपटीले राजपथ' जैसे उपन्यास और 'एक सौ पचास प्रेमिकाएं' व 'शुक्रिया इमरान साहब' जैसी किताबों से खासी शोहरत अर्जित की है. इनके कलम की खासियत यह है कि इन्होंने औरत के मनमिजाज को ऐसे उभारा कि वह शरीर से जुड़ी बहस से ऊपर उठ अपने आपमें सवाल बन गईं.

Advertisement

युवाओं से मुखातिब होते हुए गीता श्री ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी बोलचाल की भाषा पढ़ना चाहती है. युवा पीढ़ी इनफॉर्मल राइटिंग चाहती है. युवाओं की भाषा को लेकर बहुत ज्यादा मतभेद है. भाषा को लेकर बहुत आग्रही नहीं होना चाहिए. नई वाली हिंदी के विरोध में बहुत सारे लोग खड़े हैं. साहित्य में आचार संहिता बहुत ज्यादा है. इसका अघोषित संविधान है. आज का युवा अपनी पीढ़ी की जुबान में बात करता है. इसे नहीं रोका जा सकता. मैं इस नई वाली हिंदी के खिलाफ नहीं हूं.

इंदिरा ने कहा कि लेखन की शुरुआत में बहुत लोग शाबाशी देते हैं. पर इस पर बहुत ज्यादा उत्साहित होने की बजाए और अभ्यास करना चाहिए. इस पर इंदिरा ने एक पाकिस्तानी शायर का शेर कहा-

इस तरह पीठ सहला गए कुछ लोग...

रीढ़ को दुम बना गए कुछ लोग...

कितना मुश्किल होता है किसी युवा का साहित्य में आना, इस सवाल पर गीताश्री ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी के सामने कई तरह के संकट हैं. एक युवा ने सवाल किया कि आज के साहित्य में जितनी गाली उतनी ताली का हिसाब है. इस पर गीताश्री ने कहा कि आज की पीढ़ी खुद को साहित्य में अभी दर्ज कर रही है. साहित्य में मूल्यांकन तुरंत नहीं होता. 100 साल बाद भी होता. आज की युवा पीढ़ी में परिपक्वता अभी नहीं है. ये समय के साथ आएगी.

Advertisement

एक दर्शक ने कहा कि हर पीढ़ी नई बात कहती है. बिना अपने साहित्य की विरासत को जाने कालजयी रचना नहीं लिखी जा सकती. सत्या ने कहा कि हमने अभी लिखना शुरू किया है. आज बेशक ये निगलेक्ट हो रही, लेकिन फिर ये रिजेक्ट होगी और रिजेक्ट तभी होगी जब ये पढ़ी जाएगी. हमें वहां भी पहुंचना है जहां हमारी आलोचना हो.

एक युवा दर्शक ने कहा कि अंग्रेजी साहित्य के मुकाबले हिंदी साहित्य को कमतर क्यों आंका जाता है? साहित्य को समझने का रास्ता इंग्लिश लिटरेचर से होकर क्यों जाता है. इस सवाल का जवाब दर्शक दीर्घा में बैठे साहित्यकार और पत्रकार अनंत विजय ने दिया. उन्होंने कहा कि हिंदी ज्यादा ताकतवर है. गूगल के वाइस प्रेसिडेंट ने भी कहा है कि भारत में अब अंग्रेजी के विस्तार की कोई संभावना नहीं है. वे भी अब अपनी सारी रणनीति हिंदी भाषा के साथ तैयार कर रहे हैं. अनंत ने कहा कि हम साहित्य पढ़ने की शुरुआत चेतन भगत से करते हैं और फिर हिंदी के लिए शिकायत करते हैं.

अनंत विजय ने सत्य व्यास से कहा कि आप लोगों ने लेखन में उम्मीद जगाई है, लेकिन इसमें रिपीटीशन बहुत है. युवा पीढ़ी में थोड़ी पुरानी पीढ़ी के मुकाबले अनुभव कम दिखता है. इसमें गांव नहीं दिखता. सिर्फ यूनिवर्सिटी, हॉस्टल में ही कहानी सीमित हो जाती है.

Advertisement

इंदिरा ने कहा कि प्रतिभा अध्य्यन और अभ्यास, इन तीन चीजों से मिलकर ही लेखक बना जा सकता है.

मां की वजह से महिलाओं के प्रति बना मेरा दृष्टिकोण: प्रसून जोशी

दर्शक दीर्घा में बैठीं वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने कहा कि युवा पीढ़ी में जो निराशा दिख रही है, वो ठीक नहीं है. युवा पीढ़ी जो लिख रही है, उसमें नयापन है, रवानगी है. उसमें बेवजह अंग्रेजी का भी समावेश नहीं है. पिछले एक साल में जो 10-12 उपन्यास मुझे अच्छे लगे, वे सभी मैं एक रात में भी पढ़ गई. ये सभी नए लेखकों के थे.

साहित्य आजतक LIVE: कविता जीवन का दस्तावेज-अशोक वाजपेयी

कार्यक्रम के अंत में गीताश्री ने कहा कि कहानी को कैंपस से बाहर निकालने की जरूरत है. आज के समय को समझने के लिए छलांग लगानी होगी. वहीं सत्या ने लोगों से आग्रह किया कि सोशल मीडिया पर लोग हिंदी में लिखें और एक-दूसरे को किताबें गिफ्ट करें.

To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement