झुर्रियों का नाम आते ही लोगों के दिलों-दिमाग में सबसे पहले जो चीज आती है वो बढ़ती उम्र होती है. बहुत से लोग सोचते हैं कि झुर्रियां सिर्फ उम्र बढ़ने या धूप में ज्यादा समय बिताने की वजह से ही पड़ती हैं. लेकिन बिंगहैमटन यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च से पता चलता है कि झुर्रियां स्किन के शारीरिक व्यवहार के कारण बनती हैं.
रिसर्चर्स ने 16 से 91 साल के लोगों से लिए गए स्किन सैंपल्स की जांच की और पाया कि उम्र बढ़ने के साथ स्किन पहले की तरह बराबर खिंचती और सिकुड़ती नहीं है. यह साइड की ओर ज्यादा खिंचती है और जब स्किन रिलैक्स होती है तब भी हल्का स्ट्रेस/खिंचाव बना रहता है. जब यह खिंचाव बहुत बढ़ जाता है, तो स्किन सिकुड़कर झुर्रियां बना लेती है.
इसी साल (2025) जुलाई में जर्नल ऑफ द मैकेनिकल बिहेवियर ऑफ बायोमेडिकल मैटेरियल्स में छपी ये स्टडी साबित करती है कि झुर्रियों का मुख्य कारण फिजिक्स है, जबकि उम्र बढ़ने और धूप से होने वाला डैमेज इसे और तेज कर देता है.
स्किन फिजिक्स कैसे बनती है झुर्रियों का कारण?
वैज्ञानिकों ने स्किन सैंपल्स को टेंसोमीटर नामक एक मशीन में रखा ताकि इस बात पर रिसर्च की जा सके कि वो कैसे खिंचते हैं. उन्होंने देखा कि जब आपकी उम्र कम होती है तो आपकी स्किन आसानी से खिंचती है और आसानी से अपने ओरिजनल साइज में आ जाती है. हालांकि, अगर आपकी उम्र ज्यादा है तो स्किन अनइवेनली सिकुड़ती है, जिससे अंदर खिंचाव पैदा होता है और आखिर में स्किन मुड़ जाती है, बिल्कुल ऐसे जैसे कागज को मोड़ने पर सिलवटें पड़ जाती हैं. इस मुड़ने के प्रॉसेस को बकलिंग कहते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ स्किन की इलास्टिसिटी कम हो जाती और कोलेजन फाइबर कमजोर होकर ढीले हो जाते हैं, जिससे स्किन पर परमानेंट सिलवटें और झुर्रियां नजर आने लगती हैं.
सन डैमेज से बढ़ती हैं झुर्रियों
सूरज के कॉनटैक्ट में आने से झुर्रियां जल्दी दिखाई दे सकती हैं. यूवी किरणें कोलेजन और इलास्टिन को नुकसान पहुंचाती हैं, ये वे प्रोटीन हैं जो स्किन को मजबूत और लचीला बनाए रखते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि धूप में ज्यादा समय बिताने वाले युवाओं में भी उम्र से पहले झुर्रियां पड़ सकती हैं. यही कारण है कि बाहर काम करने वाले, जैसे किसानों के चेहरे पर अक्सर घर के अंदर काम करने वालों की तुलना में ज्यादा झुर्रियां दिखती हैं.
झुर्रियों के इलाज के नए तरीके
ज्यादातर स्किनकेयर प्रोडक्ट्स कोलेजन बढ़ाने या हाइड्रेश बनाए रखने पर ध्यान देते हैं, लेकिन ये रिसर्च बताती है कि स्किन के स्ट्रेस को कम करना ज्यादा प्रभावी हो सकता है. वैज्ञानिक अब माइक्रोमेश पैच का टेस्ट कर रहे हैं, जो स्किन के खिंचाव को बराबर कर सकते हैं.
इस बीच रिसर्चर्स ऐसे पेप्टाइड्स (प्रोटीन के छोटे हिस्से) पर काम कर रहे हैं, जो स्किन सेल्स को उनके फाइबर्स को फिर से सीधी लाइन में लगाने में मदद करते हैं. इससे स्किन की इलास्टिसिटी और मजबूती बढ़ सकती है. इन नए तरीकों का टारगेट झुर्रियों के असली कारण यानी स्किन के स्ट्रेस को कम करना है, ताकि झुर्रियों को केवल छिपाने के बजाय उनकी बनने की प्रक्रिया को धीमा किया जा सके.
आजतक लाइफस्टाइल डेस्क