आजकल ज्यादातर घरों में खाने-पीने का ध्यान सिर्फ कैलोरी पर रहता है, यानी कि लोग ये देख रहे हैं कि कितनी एनर्जी मिल रही है, लेकिन ये नहीं देखा जाता कि खाने में पोषण की गुणवत्ता कैसी है. नॉट-फॉर-प्रोफिट थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा की गई एक नई स्टडी के अनुसार भारत में घर पर मिलने वाला लगभग आधा प्रोटीन अब केवल चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसी चीजों से ही आ रहा है.
यानी कि लोग प्रोटीन तो ले रहे हैं, लेकिन वह प्रोटीन कम गुणवत्ता वाला है और शरीर को सही फायदा नहीं पहुंचा पा रहा. इसका मतलब यह हुआ कि हमारा शरीर जरूरी पोषक तत्वों से वंचित रह रहा है, जिससे सेहत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. इस वजह से पोषण में असमानता और ज्यादा बढ़ रही है और लोगों को सही तरीके से एनर्जी नहीं मिल रही है. इसके साथ ही उनकी मसल्स की ग्रोथ नहीं होती है और इम्यूनिटी भी अच्छी नहीं रहती है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये सिर्फ एक डाइट की समस्या नहीं, बल्कि पूरे परिवार की हेल्थ और आने वाली पीढ़ियों की सेहत की चुनौती बनती जा रही है. हमें अपने खाने में ऐसे प्रोटीन शामिल करने की जरूरत है जो उच्च गुणवत्ता वाले हों, जैसे दालें, बीन्स, अंडे, दूध, पनीर, नट्स और बीज होते हैं. इस तरह आप अपनी सेहत बेहतर रख सकते हैं और शरीर को जरूरी पोषण सही तरीके से मिल सकता है. आइए जानते हैं न्यूट्रिशन की यह चुनौती और क्या कहना है विशेषज्ञों का.
घट रही है प्रोटीन की गुणवत्ता
2023–24 के घरों के खाने से जुड़े सर्वे में सामने आया कि भारतीय परिवार रोजाना औसतन 55.6 ग्राम प्रोटीन ले रहे हैं, जो मात्रा के हिसाब से तो पर्याप्त है. लेकिन चिंता की बात ये है कि इस प्रोटीन का लगभग आधा हिस्सा सिर्फ अनाज. जैसे चावल, गेहूं, सूजी और मैदा से मिल रहा है.
राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) के अनुसार, कुल प्रोटीन में अनाज का योगदान 32% से ज्यादा नहीं होना चाहिए, लेकिन मौजूदा स्थिति इससे कहीं ज्यादा है. इसका सीधा असर ये हो रहा है कि दाल, दूध, अंडा, मछली और मांस जैसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन सोर्सेज की खपत कम होती जा रही है. नतीजा यह कि लोग प्रोटीन तो ले रहे हैं, लेकिन शरीर को मिलने वाला उसका असली फायदा काफी कम हो जाता है.
अमीर और गरीब के बीच पोषण का बड़ा अंतर
स्टडी में यह भी सामने आया कि भारत में अमीर और गरीब घरों के बीच पोषण का फासला काफी बड़ा है. सबसे गरीब परिवारों में एक व्यक्ति सप्ताह में सिर्फ 2–3 गिलास दूध पीता है और फल के रूप में केवल दो केले के बराबर खाता है. इसके उलट, सबसे अमीर घरों में यही मात्रा बढ़कर 8–10 गिलास दूध और 8–10 केले तक पहुंच जाती है. ये अंतर साफ दिखाता है कि कैलोरी भले सभी को मिल रही हो, लेकिन पोषण की गुणवत्ता में असमानता बहुत ज्यादा है.
बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ी प्रोटीन की खपत
स्टडी में पता चला कि पिछले 10 वर्षों में भारत में प्रोटीन की खपत बढ़ी तो है, लेकिन बेहद धीमी गति से. ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रोटीन सेवन 60.7 ग्राम से बढ़कर सिर्फ 61.8 ग्राम हुआ, जबकि शहरी क्षेत्रों में ये 60.3 ग्राम से 63.4 ग्राम तक पहुंचा. इसके साथ एक और बात सामने आई कि अमीर परिवार गरीबों की तुलना में करीब डेढ़ गुना ज्यादा प्रोटीन खाते हैं और उनका ज्यादातर प्रोटीन मांस, अंडे और डेयरी जैसी एनिमल प्रोटीन से आता है.
ये चिंता की बात है कि दालें, जो सबसे सस्ती और बढ़िया प्लांट-बेस्ड प्रोटीन हैं, अब आपकी प्रोटीन खपत का सिर्फ 11% हिस्सा रह गई हैं. जबकि हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये हिस्सा कम से कम 19% होना चाहिए. यानी लोग दालें कम खा रहे हैं, इसलिए उन्हें पूरा और बैलेंस्ड प्रोटीन नहीं मिल पा रहा.
अनाज और तेल पर ज्यादा निर्भरता
भारत में अनाज हमेशा से भोजन का मुख्य हिस्सा रहा है, लेकिन अब इसकी अधिकता से पोषण में असंतुलन बढ़ रहा है. भारतीयों के कुल कार्बोहाइड्रेट का लगभग 75% हिस्सा सिर्फ अनाज से आता है. लोग लोग जरूरत से 1.5 गुना ज्यादा अनाज खा रहे हैं. इसके साथ ही घरेलू तेल का इस्तेमाल भी बढ़ गया है, खासकर उन परिवारों में जिनकी आय अधिक है.
सब्जियों और फाइबर की कमी
भले ही फाइबर का सेवन 28.4 ग्राम से बढ़कर 31.5 ग्राम हुआ है, लेकिन यह अभी भी जरूरी मात्रा (32.7 ग्राम) से कम है. समस्या ये है कि ज्यादातर फाइबर अनाज से मिलता है, जबकि दालें, फल और सब्जियां फाइबर के असली और बेहतर सोर्स हैं. हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन भी बहुत कम है, जिससे पाचन और लंबे समय तक स्वस्थ रहने में दिक्कतें आती हैं. इसके अलावा, भारतीय औसतन 11 ग्राम नमक रोज खाते हैं, जो WHO के बताए गए मानक से लगभग दोगुना है.
प्रोटीन की कमी और उसके नुकसान
ICMR की रिपोर्ट बताती है कि 83% भारतीय एडल्ट्स में कम से कम एक मेटाबोलिक रिस्क फैक्टर मौजूद है जैसे हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, मोटापा या डायबिटीज. इसकी बड़ी वजह कार्बोहाइड्रेट से भरा भोजन, तला-भुना खाना और पैसिव लाइफस्टाइल है. ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाला खाना टाइप 2 डायबिटीज का खतरा 30%, प्रीडायबिटीज का खतरा 20%, मोटापे का खतरा 22% और पेट की चर्बी का खतरा 15% बढ़ा देता है.
विशेषज्ञों के अनुसार भारत को अपने खाने की आदतों और सरकारी फूड इवेंट में बदलाव की जरूरत है. सिर्फ चावल और गेहूं पर निर्भर रहने के बजाय ज्वार, बाजरा, रागी, दालें, दूध, अंडे, फल और सब्जियां शामिल करनी चाहिए. भोजन में प्रोटीन और फाइबर का बैलेंस बेहद जरूरी है. साथ ही, तला-भुना खाना और ज्यादा तेल का इस्तेमाल कम करना चाहिए. इन बदलावों से लोगों की सेहत बेहतर होगी और भविष्य में मेटाबोलिक बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाएगा.
आजतक लाइफस्टाइल डेस्क