12वीं की परीक्षा रद्द करने का फैसला स्कूल-छात्रों पर छोड़ना था, वकील की दलील पर SC ने कहा- बेतुकी सलाह न दें

सीबीएसई और आईसीएसई की 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द होने के मसले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि परीक्षा रद्द करने का फैसला स्कूलों और छात्रों पर छोड़ देना चाहिए था. इस पर कोर्ट ने कहा कि कृपया बेतुकी सलाह न दें.

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बोर्ड एग्जाम रद्द करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुई हैं. (फाइल फोटो) बोर्ड एग्जाम रद्द करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुई हैं. (फाइल फोटो)

संजय शर्मा / अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2021,
  • अपडेटेड 4:49 PM IST
  • 12वीं के एग्जाम रद्द होने पर SC में सुनवाई
  • कोर्ट ने कहा, ये जनहित में लिया गया फैसला

सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड की 12वीं परीक्षाएं रद्द होने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. इस दौरान 12वीं के बोर्ड एग्जाम रद्द होने के मसले पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एग्जाम कैंसिल करने का ये फैसला स्कूलों और छात्रों पर छोड़ देना चाहिए था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कृपया बेतुकी सलाह न दें.

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कोरोना संक्रमण के चलते सीबीएसई और आईसीएसई ने 1 जून को 12वीं के एग्जाम रद्द करने का फैसला लिया था. 

इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के वकील अंशुल गुप्ता ने कहा, "जो बच्चे 12वीं क्लास में शामिल होने थे, वही एनडीए और दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं में पेश होंगे, क्या सिर्फ 12वीं परीक्षा कोविड खतरे का कारण बन सकती है, दूसरी नहीं. ये तो सम्भव नहीं है. फिर 12वीं परीक्षा को रद्द करने का क्या औचित्य है?"

इस पर जस्टिस एमएम खानविलकर ने कहा, "छात्रों ने कोर्ट में याचिका दायर की कर परीक्षा में पेश होने के लिए अपनी असमर्थता जाहिर की थी. इसके बाद परीक्षा रद्द हुई. क्या आप चाहते हैं कि ये फैसला पलटकर फिर से 20 लाख छात्रों को अधर में डाल दें?" उन्होंने आगे कहा, "हर एक परीक्षा अलग है. हर एक का अलग बोर्ड है. सीबीएसई ने जनहित में परीक्षा रद्द करने का फैसला लिया है. स्थिति लगातार बदल रही है. ये पता नहीं कि एग्जाम कब होंगे. ये बच्चों की मनोदशा पर असर डालेगा. क्या आप 20 लाख छात्रों की और उनको परीक्षा में बैठाने की तैयारियों की जिम्मेदारी लेंगे?" 

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सुप्रीम कोर्ट ने आगे पूछा, "क्या छात्रों को शुरू में ही मौका नहीं दिया जा सकता कि वो लिखित परीक्षा या  आंतरिक मूल्यांकन में से एक विकल्प चुन लें. जो ये विकल्प चुनें, उनका मूल्यांकन न हो."

इस पर अटॉर्नी जनलर केके वेणुगोपाल ने कहा, "ये सुझाव छात्रों के हित में नहीं है. स्कीम के तहत छात्रों को दोनों विकल्प मिल रहा है. अगर वो आंतरिक मूल्यांकन में मिले नंबर से संतुष्ट नहीं होंगे, तो लिखित परीक्षा का विकल्प चुन सकते हैं. लेकिन अगर वो सिर्फ लिखित परीक्षा चुनते हैं तो फिर आंतरिक मूलयांकन में मिले नंबर नहीं गिने जाएंगे."

बाद में जस्टिस महेश्वरी ने भी कहा कि "शुरुआत में छात्रों को ये अंदाजा ही नहीं होगा कि उन्हें आंतरिक मूल्यांकन में कितने नम्बर मिलेंगे. लिहाजा लिखित परीक्षा या आतंरिक मूलयांकन में से एक को चुनना उनके लिए भी मुश्किल होगा."

'कृपया बेतुकी सलाह न दें...'
यूपी पेरेंट्स एसोसिएशन की ओर से पेश विकास सिंह ने कहा, "आईसीएसई का कहना है कि वैकल्पिक परीक्षा को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. मेरे ख्याल से दोनों बोर्ड को एकतरफा परीक्षा रद्द करने के बजाए ये फैसला स्कूलों और छात्रों पर छोड़ देना चाहिए कि वो फिजिकल एग्जाम में पेश होना चाहते हैं या नहीं."

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इस पर कोर्ट ने कहा, "स्कूल कैसे अपने स्तर पर फैसला ले सकते हैं? कृपया बेतुकी सलाह न दें. जो छात्र मार्किंग के तरीके से सहमत नहीं, वो आगे चलकर होने वाले फिजिकल एग्जाम में पेश हो सकते हैं. खुद स्कीम में इसका प्रावधान है. किसी छात्र को इस मार्किंग स्कीम से दिक्कत हो तो वो हमारे सामने अपनी बात रख सकते हैं."

वहीं, एजी वेणुगोपाल ने कहा, "स्कूलों के पास फैसला लेना का अधिकार नहीं है, पर छात्रों के पास जरूर है. उनके पुराने परफॉर्मेंस के आधार पर उन्हें आंका जाएगा. अगर वो इससे संतुष्ट नहीं तो आगे परीक्षा में बैठ सकते हैं. उनके लिए वैकल्पिक परीक्षा में आए अंक ही फाइनल होंगे."

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि सीबीएसई और आईसीएसई की परीक्षा रद्द करने के फैसले को किसी की व्यक्तिगत अवधारणा से तय नहीं किया जा सकता. ये बड़े जनहित में लिया गया फैसला था. हम प्रथम दृष्टया सरकार के इस फैसले से सहमत थे.

 

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