सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार ने बिलकिस बानो मामले में एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि रिहाई का आदेश ‘‘घिसा पिटा’’ था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था. जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया.
दोषियों के पास क्या है आगे का रास्ता
बिलकिस बानो के दोषियों के पास अभी कानूनी रास्ते बचे हुए हैं. सभी 11 दोषी आज के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिव्यू पिटीशन दायर कर सकते हैं. दोषी जेल में कुछ समय बिताने के बाद माफी के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए महाराष्ट्र सरकार से अपील करनी होगी.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 137 सुप्रीम कोर्ट को अपने किसी भी पिछले फैसले या आदेश की समीक्षा करने की अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार एक रिव्यू पिटीशन 30 दिनों के भीतर दायर करनी होती है. जिस निर्णय या आदेश की समीक्षा की मांग की गई है उसे उसी पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए जिसने निर्णय सुनाया था. जिन आधारों पर समीक्षा याचिका पर विचार किया जा सकता है उनमें शामिल है:
1. किसी भी नई जानकारी या सबूत का मिलना, जो कोर्ट की सुनवाई के दौरान कोर्ट के समक्ष नहीं रखा जा सका था या फिर याचिकाकर्ता इसे कोर्ट के सामने पेश नहीं कर पाया था. हालांकि, यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर करेगा कि वो इस जानकारी को पेश करने के लायक माने.
2- कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने के दौरान हुई कोई त्रुटि या गलती हुई हो.
3. अन्य कोई ऐसा कारण जो कोर्ट के हिसाब से फिट बैठता है.
कोर्ट ने सरकार को सुनाई खरी-खरी
इससे पहले शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था, क्या आप संतरे और सेब की तुलना करेंगे? क्या आप एक व्यक्ति की हत्या की तुलना 10 से ज्यादा लोगों की हत्या से करेंगे? मुकदमे को दूसरे राज्य में ट्रांसफर करना पड़ा. कोर्ट ने गुजरात और केंद्र से सजा माफी से संबंधित फाइलें पेश करने के लिए कहा और ऐसे मामलों पर निर्णय लेने में मानकों की जरूरत पर जोर दिया.
पीठ ने 100 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है. कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया. उस आधार पर भी सजा से माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.’
शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने संबंधी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ माना और कहा कि यह ‘अदालत को गुमराह’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ हासिल किया गया.पीठ ने कहा कि यह एक विशेष मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल सजा में छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया.
क्या था मामला
आपको बता दें कि जिस वक्त यह गैंगरेप की घटना हुई थी उस समय बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. बानो से गोधरा ट्रेन में आग लगाए जाने की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था. दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था.
कनु सारदा