रविवार को उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद जो सैलाब आया उसमें कई जिंदगियां समाप्त हो गईं. लेकिन कुछ ऐसे थे जिन्होंने गजब की जीवटता दिखाई. अंधेरे सुरंग में घंटों रॉड और लोहे का सरिया पकड़ कर लटके रहे और जिंदगी की सांसों से वास्ता तब तक कायम रखा जब तक कि रेस्क्यू की टीम उनके पास पहुंच न गई.
ITBP और रेस्क्यू टीम ने रविवार शाम को ऐसे 12 लोगों को NTPC की सुरंग से बाहर निकाला था. इन्हीं में से एक शख्स ने सुरंग के अंदर गुजारे गए वक्त की कहानी आजतक के साथ साझा की है.
जोशीमठ में इस छोटे से घर में मानो जिंदगी ने आज एक बार फिर से दस्तक दे दी है. रविवार को जब इस परिवार ने तपोवन में हादसे की खबर सुनी तो यहां चीख पुकार मच गई. इस परिवार का एक बेटा एनटीपीसी के ही एक सुरंग में था.
प्रलय मचाता आया प्रवाह
27 साल के राकेश भट्ट जोशीमठ में बाबा बदरी विशाल के मंदिर से कुछ ही दूरी पर रहते हैं. हादसे के दिन तपोवन में वे सुरंग में काम कर रहे थे, तभी प्रलय मचाता सा एक प्रवाह आया और सुरंग में मिट्टी और मलबे का ढेर लग गया. राकेश ने आजतक को बताया कि उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आया और झटके में सुरंग में कीचड़ और पानी भर गया. बाहर से आवाज ऐसी आ रही थी मानो दुनिया में प्रलय आया है.
सुबह 10 बजे के लगभग हुआ हादसा
सुरंग में एक झटके में अंधकार आ गया. ये रविवार सुबह करीब 10 बजे की घटना थी. पहाड़ की कठिन जिंदगी से परिचित ये लोग कुछ ही मिनटों में समझ गए कि बाहर ग्लेशियर टूटा है. अंधकार में इन्होंने एक दूसरे को आवाज लगाई, तब राकेश को पता चला कि सुरंग में और मजदूर हैं.
आनन-फानन में सुरंग में मौजूद मजदूरों ने लोहे की रॉड मजबूती से पकड़ ली और उससे झूल गए. नीचे कीचड़ था, पानी था और पल पल मौत का खतरा था. सभी लोग घबराये थे. पानी का कचरा लगातार बढ़ता जा रहा था. ये सभी लोग रॉड से लटके हुए थे.
मोबाइल में दिखा नेटवर्क तो जगी उम्मीद
इस दौरान आपाधापी में कुछ घंटे गुजर गए. राकेश ने कहा कि इस बीच एक मजदूर ने अपने मोबाइल को किसी तरह से देखा तो पता चला कि नेटवर्क मौजूद है. सुरंग में घंटों फंसे मजदूरों को मानों जिंदगी की उम्मीद मिल गई. तुरंत उन लोगों ने बाहर मौजूद अपने अधिकारियों को फोन किया. इसके बाद युद्ध स्तर पर सुरंग के मुहाने से मलबा हटाने का काम शुरू हो गया.
वक्त गुजरता जा रहा था, मौत नजदीक थी
लेकिन सुरंग के मुहाने से मलबा हटाना आसान काम नहीं था. बाहर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा था, अंदर लोग पल-पल जिंदगी से संघर्ष कर रहे थे. राकेश और उनके साथी 6 से 7 घंटे तक सुरंग में लोहे की रॉड से लटके रहे.
नीले पड़ गए नाखून, सुन्न हुआ शरीर
राकेश भट्ट बताते हैं कि रॉड से लटके-लटके उनके नाखून नीले पड़ गए थे, शरीर के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा था. लगातार एक पोजिशन में लटके रहने की वजह से ब्लड सर्कुलेशन धीमा हो गया था. अगर रॉड छोड़ते तो नीचे मलबे में समाने का डर था.
जब आई एक साल के बेटे की याद
राकेश बताते हैं कि जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा था जिंदा रहने की आशा कम होती जा रही थी. इसी बीच उन्हें अपने एक साल के बेटे की याद आई. इतना बताते-बताते राकेश रोने लगते हैं. इसी के साथ परिवार में सबकी आंखें भीग जाती हैं. राकेश की मां और पत्नी बदरी विशाल को याद करते हैं.
उनके घर से मात्र 10 कदम की दूरी पर बदरी विशाल का मंदिर है. राकेश और उनका परिवार कहता है कि वो तो सिर्फ भगवान की कृपा से बच गए हैं.
कीचड़ के अंदर था शरीर, सर था बाहर
अधिकारी बताते हैं जब रेस्क्यू टीम अंदर पहुंची तो इन 12 मजदूरों के शरीर का कुछ ही हिस्सा मलबे से बाहर था, ये लोग एक दूसरे बात कर रहे थे और भरोसा बंधा रहे थे. आखिरकार लगभग 7 घंटे के बाद इन्हें सुरंग से निकाला गया.
उस सुरंग का क्या जहां 35 लोग फंसे हैं
NTPC की दूसरे सुरंग में अभी भी 35 लोग फंसे हुए हैं. हादसे के बाद लगभग 60 घंटे गुजर चुके हैं. रेस्क्यू ऑपरेशन लगातार जारी है. जिनके अपने इस सुरंग में फंसे हैं उन्हें ऊपर वाले से बस एक चमत्कार की उम्मीद है.
मीनाक्षी कंडवाल