गंगा नदी की स्वच्छता के लिए लंबे समय से संघर्षरत संत समाज इसके लिए अब अपनी परंपराओं में भी बदलाव कर रहा है. उत्तराखंड के संतों को ब्रह्मलीन होने के बाद जल समाधि देने की परंपरा थी. अब संतों ने निर्णय लिया है कि ब्रह्मलीन होने के बाद जल नहीं, भू समाधि दी जाएगी.
संतों ने यह निर्णय कुंभ मेले की तैयारियों को लेकर हुई बैठक में किया. कई अखाड़ों में संतों के शरीर त्याग करने पर उन्हें जल समाधि दिए जाने की परंपरा थी. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी महाराज के इस प्रस्ताव पर संतों ने मुहर लगा दी. संतों के मुहर लगाने के बाद अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कुंभ की तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री टीएस रावत से मुलाकात की.
इस मुलाकात के दौरान भी नरेंद्र गिरी ने मुख्यमंत्री से इस विषय पर चर्चा की. उन्होंने संतों को भू समाधि दिए जाने के लिए सरकार की ओर से जमीन आवंटित किए जाने की मांग की. अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को बताया कि यह निर्णय सभी अखाड़ा और संतों ने कुंभ मेले की बैठक में लिया है.
मुख्यमंत्री टीएस रावत ने संतों के इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने अखाड़ा परिषद अध्यक्ष को आश्वस्त किया कि सरकार इसके लिए भूमि आवंटित करेगी. गौरतलब है कि संत समाज में भू समाधि की प्रथा पहले से ही है. लेकिन अलग-अलग अखाड़े और पंथ की अलग-अलग परंपराएं हैं. कहीं भू समाधि का चलन रहा है, तो कहीं जल या अग्नि समाधि का.
अब उत्तराखंड के संपूर्ण संत समाज ने जल समाधि की परंपरा का त्याग कर भू समाधि का निर्णय ले लिया है. उत्तर प्रदेश के बाद ऐसा करने वाला उत्तराखंड महज दूसरा राज्य होगा, जहां संतों ने भू समाधि का निर्णय लिया है.
दिलीप सिंह राठौड़