जमीन फटी, मकान दरके, बेघर हुए लोग... अब जोशीमठ में नया संकट, सूखने लगे प्राकृतिक जल स्रोत

उत्तराखंड के जोशीमठ में पहले जमीन फटने और मकानों में दरारें आने की घटना सामने आई, इसके बाद अब एक और संकट दस्तक दे रहा है. यहां प्राकृतिक जलस्रोत सूखने लगे हैं. लोगों का कहना है कि यहां अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में लोगों को बड़ी समस्या से जूझना पड़ सकता है.

Advertisement
जोशीमठ में सूख गए प्राकृतिक जलस्रोत. जोशीमठ में सूख गए प्राकृतिक जलस्रोत.

कमल नयन सिलोड़ी

  • जोशीमठ,
  • 02 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:24 PM IST

उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन दरकने और मकानों में दरारें आने के बाद अब नया संकट दस्तक दे रहा है. यहां प्राकृतिक जल स्रोत सूखने लगे हैं. इस वजह से लोग चिंता में हैं. लोगों का कहना है कि गर्मी के मौसम में जब सुदूर इलाकों में भारी जलसंकट होता था, उस समय भी यहां पानी की समस्या कभी नहीं हुई, लेकिन इस बार यहां जलस्रोत सूख रहे हैं. अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में लोगों को भारी जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है.

Advertisement

जानकारी के अनुसार, जोशीमठ के सिंहधार वार्ड में प्राकृतिक जल स्रोत अचानक सूख गए. लोगों का कहना है कि जब गर्मियों के मौसम में कई जगहों पर जल स्रोत सूख जाते थे, इसके बाद भी यहां पानी की समस्या नहीं होती थी, लेकिन आज यहां प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं. इसके बाद से मोहल्ले के लोग परेशान हैं.

बता दें कि इसी मोहल्ले में मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें देखने को मिल रही हैं. घरों में दरारें आने की वजह से लोग परेशान हैं. कई मकानों के पास पानी निकलता हुआ दिख रहा है. लोगों का कहना है कि जो जल स्रोत सूख रहे हैं, उन्हीं से होटल संचालक और आसपास के लोग यात्रा के दौरान पानी की व्यवस्था करते थे.

जोशीमठ के सिंहधार वार्ड में जहां एक तरफ जलस्रोत सूख रहे हैं. वहीं यहां पूरे मोहले के घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आने के बाद लोग घर छोड़कर जा चुके हैं. यहां एक घर ऐसा है, जिसे कुछ समय पहले ही बनाया गया था. लोगों का कहना है कि यह घर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया है, लेकिन इस मकान में भी बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं.

Advertisement

इसके चलते यह घर अब रहने लायक नहीं रह गया है. यहां लाल निशान लगाने के बाद परिवार को कहीं अन्य जगह पर शिफ्ट कर दिया गया है. इस मोहल्ले के हर घर में यही हालत देखने को मिल रही है. इस समय जोशीमठ में घरों में नई दरारें तो नहीं आ रही हैं, लेकिन यहां जलस्रोत सूखना बड़ी समस्या साबित हो सकता है.

एनजीटी ने हिल स्टेशन में स्टडी करने के दिए निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मसूरी के हिल स्टेशन की स्टडी करने के निर्देश जारी किए हैं. पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए सुझाव देने वाली एक नौ सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया है.

ट्रिब्यूनल ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें मीडिया रिपोर्ट के मद्देनजर स्वत: कार्यवाही शुरू की थी. इसमें कहा गया था कि जोशीमठ आपदा के लिए अनियोजित निर्माण के बारे में लिखा गया था.

चेयरपर्सन जस्टिस एके गोयल की पीठ ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की क्षमता का समग्र अध्ययन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जरूरी है. न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल और अफरोज अहमद की पीठ ने कहा कि सभी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में स्टडी किए जाने की जरूरत है. हम मसूरी में विशेष रूप से स्टडी की जानी चाहिए.

Advertisement

पीठ ने कहा कि इस तरह की स्टडी में यह बात शामिल की जा सकती है कि इलाके में किन सुरक्षा उपायों के साथ कितने निर्माणों की अनुमति दी जा सकती है. इसके अलावा मौजूदा इमारतों के लिए कौन से सुरक्षा उपाय अपनाए जा सकते हैं. यातायात, स्वच्छता प्रबंधन, मिट्टी की स्थिरता और वनस्पतियों सहित अन्य जरूरी पहलुओं को शामिल किया जा सकता है.

नौ सदस्यीय समिति पर्यावरण संकट पर देगी अपना सुझाव

सुनवाई के दौरान पीठ ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय संयुक्त समिति का भी गठन किया. पीठ ने कहा कि समिति के अन्य सदस्यों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एसीएस पर्यावरण, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, गोविंद बल्लभ पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय एंड एनवायरनमेंट शामिल है.

इसके अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि समिति वहन क्षमता, हाइड्रो-भूविज्ञान स्टडी भू-आकृतिक स्टडी और अन्य मुद्दों को कवर करने, पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए सुझाव दे सकती है. इसके लिए समिति किसी अन्य विशेषज्ञ या संस्थान से सहायता मांग सकती है और दो सप्ताह के भीतर बैठक करनी है.

दो महीने में स्टडी पूरी कर 30 अप्रैल तक मांगी गई रिपोर्ट

Advertisement

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने समिति को दो महीने के भीतर स्टडी पूरी करने और 30 अप्रैल तक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. पीठ ने कहा कि समिति मीडिया रिपोर्ट में जताई गईं चिंताओं पर भी विचार कर सकती है.

ट्रिब्यूनल ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी ने साल 2001 में मसूरी की वहन क्षमता की स्टडी की थी. उस समय सुझाव दिया गया था कि आगे कोई निर्माण सही नहीं है. हालांकि मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण कथित तौर पर स्टडी के बाद दिए गए सुझावों को अमल में लाने में विफल रहा.

जमीन धंसने के बाद इमारतें खाली करने का दिया था आदेश

कार्यवाही के दौरान अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (प्रशासन) ने कहा कि 12 जनवरी को लंढौर बाजार में सड़क के पास बने मकानों के टपकने और भूमि धंसने के संबंध में निरीक्षण किया गया था. इस दौरान कुछ बहुमंजिला इमारतों को खाली करने का आदेश दिया था. अधिकारी ने कहा कि जमीन से सीवेज लाइन गुजर रही है, जो धंस गई है. इमारतों के 50 मीटर क्षेत्र में बारिश के पानी की निकासी के लिए नालियां नहीं हैं. उचित जल निकासी का अभाव है. सीवर लाइनों और सड़कों के धंसने का कारण ऐसा हो रहा है.

Advertisement

मसूरी में आपदा की आशंका से नहीं कर सकते इनकार

इस दौरान ट्रिब्यूनल ने अधिकारी के बयान को ध्यान में रखते हुए कहा कि मसूरी में आपदा की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है, जब तक कि सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते. इस तरह की क्षमता देश के अन्य पहाड़ी शहरों में भी है. विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र में, जहां ट्रिब्यूनल के कुछ (पूर्व) आदेशों में देखा गया है.

(एजेंसी के इनपुट के साथ)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement