रेप केस में फंसे MLA कुलदीप सेंगर की कुंडली: नाना से सियासत सीखी, राजा भैया से रुतबा

उन्नाव का ये दबंग विधायक दलबदल का भी माहिर खिलाड़ी है. सेंगर का सियासी सफर भले ही 20 साल का हो लेकिन इन दो दशकों में ही वो चार पार्टियों में रह चुके हैं. सेंगर को विरासत में अपने नाना से जमीन जायदाद ही नहीं, सियासत भी मिली है.

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बलात्कार के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर बलात्कार के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 12 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 3:40 PM IST

उत्तर प्रदेश के उन्नाव के बांगरमऊ से बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर इन दिनों बलात्कार के आरोप से चर्चा के केंद्र में हैं. उन्नाव का ये दबंग विधायक दलबदल का भी माहिर खिलाड़ी है. सेंगर का सियासी सफर भले ही 20 साल का हो लेकिन इन दो दशकों में ही वो चार पार्टियों में रह चुके हैं. सेंगर को विरासत में अपने नाना से जमीन जायदाद ही नहीं, सियासत भी मिली है. वे यूपी के बाहुबली निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के करीबी हैं. यही वजह है कि सूबे में हर दिन तीन एनकाउंटर करने वाली योगी की यूपी पुलिस के हाथ विधायक के गिरेबान तक नहीं पहुंच पा रहे.

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नाना से मिली सियासत

उन्नाव शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर बसा माखी गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है. कुलदीप सिंह सेंगर मूलरूप से फतेहपुर के रहने वाले हैं,  लेकिन उनकी परवरिश ननिहाल उन्नाव के इसी माखी गांव में हुई. सेंगर का उन्नाव और कानपुर में गहने का कारोबार है. राजा शंकर सहाय इंटर कॉलेज से वो 12वीं तक पढ़े हैं.

आजादी के बाद गांव की प्रधानी सेंगर परिवार के पास

आजादी के बाद से ही माखी गांव की प्रधानी सेंगर परिवार के पास रही. महज दो बार गांव की प्रधानी उनके हाथों से गई है. आजादी के बाद उनके नाना बाबू सिंह गांव के प्रधान बने और 36 साल तक रहे. नाना की उंगली पकड़कर बड़े हुए कुलदीप सिंह सेंगर ने उनकी सियासी विरासत को संभाला. सेंगर पहली बार 1987 में  गांव के प्रधान बने और साढ़े सात साल तक उन्होंने प्रधानी की.

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गांव की सियासत मां के हाथ

विधायक बनने से पहले सेंगर ने अपनी मां चुन्नी देवी को 2000 में गांव का प्रधान बनवा दिया. इसके बाद वो लगातार दो बार प्रधान रहीं. वर्तमान में हत्या के आरोप में जेल में बंद भाई अतुल सिंह की पत्नी अर्चना सिंह गांव की प्रधान हैं. खुद कुलदीप सिंह की पत्नी संगीता सेंगर जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. एक भाई मनोज सिंह ब्लॉक प्रमुख हैं.

बसपा से पहली बार बने विधायक

सेंगर ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के साथ की. वे लंबे समय तक यूथ कांग्रेस से जुड़े रहे. राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने 2002 में कांग्रेस का दामन छोड़कर बसपा के हाथी की सवारी की. बसपा उम्मीदवार के तौर पर 2002 में उन्नाव सदर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उतरे और जीत हासिल करके विधायक बने.

राजा भैया के प्रेम में छोड़ा बसपा का साथ

मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए राजा भैया पर शिकंजा कसा तो सेंगर को ये बात रास नहीं आई. मायावती के सत्ता में रहते हुए वो बगावत नहीं कर सके. लेकिन बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद राजा भैया के कहने पर उन्होंने बसपा के बागी विधायकों के साथ पार्टी छोड़कर मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन किया.

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कुलदीप सिंह सेंगर 2007 में सपा से बांगरमाऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और दोबारा विधायक बने. पांच साल के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपना क्षेत्र बदलकर उन्नाव के भगवंत नगर से चुनाव लड़ने का फैसला किया.

बीजेपी का दामन थामा

सपा से एक बार फिर विधायक बने और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में सत्ता सुख का आनंद लिया. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने सपा का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. सेंगर ने भगवंत नगर सीट को बीजेपी के हृदय नारायण दीक्षित के लिए छोड़ दिया और अपनी पुरानी सीट बांगरमऊ से विधायक बने. यही वजह है कि हृदय दीक्षित का भी हाथ उनके सिर पर है.

इन विधायकों का हाथ सेंगर के साथ

ब्राह्मण बहुल उन्नाव में सेंगर राजपूत चेहरा हैं. जिले के ठाकुरों को एकजुट करने वाले नेताओं में सेंगर का नाम आता है. सेंगर के सूबे के ठाकुर नेताओं से रिश्ते जगजाहिर हैं. इनमें राजा भैया और सपा के अरविंद सिंह गोप ही नहीं बल्कि कई और भी नाम शामिल हैं. यही वजह रही कि सेंगर जब बुधवार को लखनऊ में एसएसपी ऑफिस पहुंचे, तो उनके साथ प्रतापगढ़ के एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह, बसपा के बागी विधायक अनिल सिंह, विधायक शैंलेंद्र सिंह शैलू और पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह थे. बलिया के बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने उनके पक्ष में यहां तक कह दिया कि तीन बच्चों की मां के साथ कौन बलात्कार करेगा. 

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अपराधिक मामले

कुलदीप सिंह सेंगर सहित उनके तीनों भाइयों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. अतुल के खिलाफ करीब पांच मामले दर्ज हैं-चार उन्नाव में जबकि एक कानपुर में. यही वजह है कि अतुल सिंह का इलाके में खौफ है. 2004 में उनपर उन्नाव के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रामलाल वर्मा पर गोलीबारी करने का इल्जाम लगा था. पुलिस अधिकारी ने उन्हें अवैध खनन से रोकने की कोशिश की थी. इसके बाद 2014 में, अतुल पर उन्नाव में एक पत्रकार के पिता पर गोली मारने का आरोप लगा था. फिलहाल अतुल सिंह गैंगरेप पीड़िता के पिता से मारपीट के मामले में जेल में हैं और कुलदीप सिंह पर इसी गैंगरेप के मामले में गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.

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