156 साल पुराना है मुगलसराय जंक्शन, इसलिए बदला गया नाम

जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमयी मौत 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय जंक्शन पर हुई थी और मुगलसराय जंक्शन के यार्ड के खंभा नंबर 1276 के पास उनका शव मिला था.

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आज मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर हो जाएगा दीन दयाल उपाध्याय आज मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर हो जाएगा दीन दयाल उपाध्याय

परमीता शर्मा / कुमार अभिषेक

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 12:06 PM IST

उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जंक्शन का नाम आज से बदल जाएगा. अब यह ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम जाना जाएगा. गदर के बाद 1862 में पूर्वी भारत के दूसरे सबसे बड़े रेलवे स्टेशन का नाम मुगलसराय जंक्शन पड़ा, यानी यह 156 साल पुराना है, इसे पूरे पूर्वी भारत का रेलवे का द्वार माना जाता था. लेकिन आज पूरी तरह से इस नाम खत्म हो जाएगा और दीनदयाल उपाध्याय जो बीजेपी के वैचारिक प्रणेता माने जाते हैं, उनके नाम पर अब यह रेलवे स्टेशन जाना जाएगा.

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पहले भी हुई थी नाम बदलने की कोशिश

1992 में भी मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलने की कोशिश की गई थी लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने तब इसे मानने से मना कर दिया था. कल्याण सिंह के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए पहली बार इसका नाम बदलने की कोशिश वर्ष 1992 में हुई थी.

इस बार BJP के प्रदेश अध्यक्ष और चंदौली से सांसद महेंद्र पांडे ने यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था जिसके बाद BJP ने अपनी इस पुरानी मांग को परवान चढ़ाया.

इसलिए उठी नाम में बदलाव की मांग

जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमयी मौत 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय जंक्शन पर हुई थी और मुगलसराय जंक्शन के यार्ड के खंभा नंबर 1276 के पास उनका शव मिला था, जिसके बाद से मुगलसराय जंक्शन संघ और बीजेपी के समर्थकों के लिए एक तीर्थ जैसा बन गया था और लंबे समय से इसकी मांग चल रही थी कि मुगलसराय जंक्शन का नाम दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा जाए.

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बीजेपी ने इस नामकरण के लिए बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया है जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, रेल मंत्री पीयूष गोयल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित दर्जनों बीजेपी के बड़े नेता मौजूद होंगे और इसी बहाने BJP पूर्वांचल में अपनी सियासत साधेगी.

नाम बदले जाने पर मिल रही अलग-अलग प्रतिक्रिया

मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलना बीजेपी को इसलिए भी मुफीद है क्योंकि यह नाम मुगलों के नाम पर रखा गया था. मुगलकाल में यह मुगल राजाओं का सराय हुआ करता था, जहां वो आते जाते अपना पड़ाव डालते थे. नाम बदलने से बीजेपी जहां एक तरफ अपने संस्थापक का नाम पूर्वी भारत के द्वार पर लिख रही है, वहीं दूसरी तरफ इसी बहाने मुगल नाम मिटा भी रही है और यह BJP की  सियासत का हिस्सा भी है.

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