पंचायत चुनावः इलाहाबाद HC के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में नई आरक्षण पॉलिसी जारी

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को अपने फैसले में कहा था कि पूरी प्रक्रिया को 27 मार्च तक पूरा किया जाए और चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी जाए. सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार को पंचायत चुनाव में 2015 को बेस ईयर बनाने में कोई दिक्कत नहीं है.

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पंचायत चुनाव से पहले आरक्षण पॉलिसी जारी (सांकेतिक-पीटीआई) पंचायत चुनाव से पहले आरक्षण पॉलिसी जारी (सांकेतिक-पीटीआई)

कुमार अभिषेक

  • लखनऊ,
  • 18 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 1:50 AM IST
  • सोमवार को HC ने कहा-2015 को ही बेस ईयर बनाया जाए
  • HC ने पिछले हफ्ते आरक्षण की फाइनल सूची पर लगाई थी रोक
  • सरकार के 11 फरवरी के फैसले के खिलाफ लगाई गई थी याचिका

उत्तर प्रदेश में आगामी पंचायत चुनाव को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार की ओर से नई आरक्षण पॉलिसी जारी कर दी गई है. पंचायत चुनाव में आरक्षण का आधार वर्ष 2015 तय किया गया है. अब इस संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग गुरुवार को पीसी कर सकता है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को अपने आदेश में कहा था कि प्रदेश में सीटों के आरक्षण में साल 2015 को ही बेस ईयर बनाया जाए. साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राज्य में 25 मई तक सभी चुनाव करा लिए जाएं.

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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि इस पूरी प्रक्रिया को 27 मार्च तक पूरा किया जाए और चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी जाए. सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार को पंचायत चुनाव में 2015 को बेस ईयर बनाने में कोई दिक्कत नहीं है.

बीते दिनों उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण की सूची जारी की थी, जिस पर कई तरह की आपत्ति जताई गई थीं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते शुक्रवार को पंचायत चुनाव आरक्षण की फाइनल सूची पर रोक लगा दी थी. 

किसने लगाई थी याचिका?
याचिकाकर्ता अजय कुमार की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव की फाइनल सूची पर रोक लगाई थी. हाईकोर्ट ने यूपी सरकार और चुनाव आयोग से इस संबंध में जवाब मांगा था.

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हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की दलील थी कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में 1995 को बेस वर्ष ना माना जाए और इसमें बदलाव करते हुए 2015 को ही बेस वर्ष बनाया जाए. याचिकाकर्ता की ओर से उत्तर प्रदेश सरकार के 11 फरवरी के फैसले पर आपत्ति जताई गई थी.

 
 

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