अंतर-धार्मिक जोड़ों की शादी से पहले नोटिस मांगना गलत: इलाहाबाद HC

अंतर-धार्मिक जोड़ों की शादी के लिए नोटिस का अनिवार्य प्रदर्शन अब से वैकल्पिक होगा. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक आदेश में कहा कि इस तरह की शादी के लिए नोटिस लगाना अनिवार्य नहीं होगा. कोर्ट के इस फैसले से अंतर-धार्मिक जोड़ों को राहत मिलेगी.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया अहम फैसला (फाइल फोटो) इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया अहम फैसला (फाइल फोटो)

शिवेंद्र श्रीवास्तव / कुमार अभिषेक

  • लखनऊ,
  • 13 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 10:21 AM IST
  • नोटिस को मौलिक अधिकारों का हनन बताया
  • 'पसंद का साथी चुनना व्यक्ति का अधिकार'
  • नोटिस का अनिवार्य प्रदर्शन अब से वैकल्पिक

अंतर-धार्मिक जोड़ों की शादी के लिए नोटिस का अनिवार्य प्रदर्शन अब से वैकल्पिक होगा. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक आदेश देते हुए कहा कि इस तरह की शादी के लिए नोटिस लगाना अनिवार्य नहीं होगा. कोर्ट के इस फैसले से अंतर-धार्मिक जोड़ों को राहत मिलेगी. 

'लव जिहाद' के मामलों के बीच शादियों के रजिस्ट्रेशन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा फैसला दिया है. हाई कोर्ट ने शादियों से पहले नोटिस प्रकाशित होने और उस पर आपत्तियां मंगाने को गलत माना है.

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अदालत ने इसे स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों का हनन बताया. अदालत ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 6 और 7 को भी गलत बताया. अदालत ने कहा कि किसी की दखल के बिना पसंद का जीवन साथी चुनना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. अदालत ने कहा कि अगर शादी कर रहे लोग नहीं चाहते तो उनका ब्यौरा सार्वजनिक न किया जाए. 

कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रकाशित कर उस पर लोगों की आपत्तियां न ली जाएं. हालांकि विवाह कराने वाले अधिकारी के सामने यह विकल्प रहेगा कि वह दोनों पक्षों की पहचान, उम्र और अन्य तथ्यों को सत्यापित कर ले. 

क्या था मामला

अदालत ने कहा कि इस तरह का कदम सदियों पुराना है, जो युवा पीढ़ी पर क्रूरता और अन्याय करने जैसा है. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस विवेक चौधरी ने यह फैसला दिया. साफ़िया सुलतान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है.

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साफिया सुल्तान ने हिंदू धर्म अपनाकर अभिषेक कुमार पांडेय से शादी की है. साफिया सुल्तान ने अपना नाम बदलकर सिमरन कर लिया है. हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद 14 दिसंबर को फैसला सुरक्षित कर लिया था. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए याचिका निस्तारित कर दी.

 

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