माना जाता है कि यूपी के ज्यादातर मतदाता अपनी जाति देखकर वोट डालते हैं, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की. इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के नतीजों ने उत्तर प्रदेश में दशकों से जाति के सहारे सियासत साधने वालों पर कई सवाल खड़े किए हैं.
1. सवाल: क्या यूपी में सपा-बसपा का जातीय समीकरण फेल हो गया? क्या है प्रदेश का जातीय समीकरण?
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम, यादव और दलित आबादी मिला दें तो ये प्रदेश की कुल जनसंख्या का 49 फीसदी है. अगर इसमें से 10 फीसदी गैर जाटव दलितों को निकाल दें तो यह आंकड़ा 39 फीसदी बैठता है. सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन के ये कोर वोटर हैं. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यदि सपा और बसपा दोनों के वोट आराम से महागठबंधन को पड़ते हैं तो फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में मुकाबला बेहद कड़ा हो सकता है.
2.सवाल: इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के अनुमान क्या कहते हैं?
इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के अनुमान में कहा गया है कि भाजपा एकतरफा जीत हासिल करने जा रही है. क्या इसका मतलब है कि जातीय समीकरण फेल हो गया? नहीं. जाति इस चुनाव में भी प्रमुख भूमिका निभाएगी.
जानें कैसे:
74 फीसदी जाटव, 76 फीसदी मुस्लिम, 72 फीसदी यादव मतदाताओं ने महागठबंधन के लिए वोट किया है, जो कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के कोर वोटर हैं. 72 फीसदी गैर-यादव ओबीसी, 74 फीसदी सवर्ण, 57 फीसदी गैर-जाटव दलित और 55 फीसदी जाट मतदाताओं ने बीजेपी के लिए वोट किया है. बीजेपी इसी सामाजिक गठजोड़ पर काम कर रही थी.
3.सवाल: अगर लोगों ने जातीय आधार पर वोटिंग की है, तो इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया का एक्जिट पोल यूपी में महागठबंधन को नुकसान कैसे दिखा रहा है?
इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल का महागठबंधन की हार का अनुमान सीट-वार जातीय समीकरण पर आधारित है. एक्सिस माई इंडिया के चैयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप गुप्ता के मुताबिक, अगर यूपी में आप सीट दर सीट देखते हैं तो पाएंगे कि सभी जातियों की उपस्थिति वैसी ही नहीं है, जैसा आंकड़ों में दिखती है. इसका मतलब है कि महागठबंधन का वोट शेयर 39 फीसदी तक नहीं पहुंचा.
सवाल 4. आखिर इसका क्या मतलब हुआ?
अगर प्रदीप गुप्ता की मानें तो महागठबंधन का जातीय गणित उतना मजबूत नहीं है जितना कि पहले इसके बारे में अनुमान लगाया जा रहा था. जातीय समीकरण फेल नहीं हुआ है. इसने काम किया है, लेकिन बीजेपी के पक्ष में काम किया है, जैसा कि एक्जिट पोल के नतीजे दिखा रहे हैं.
कैसे बीजेपी ने साधा जातिगत समीकरण?
महागठबंधन कागज पर बेहद मजबूत दिखता है, जाति का गणित भी उनके पक्ष में है और ऐसा लगता है कि वो अपनी जाति के वोट ट्रांसफर कराने में भी कामयाब हुए हैं. इसके बावजूद सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव इस बार मैनपुरी से अपनी चुनावी राजनीति की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं, वो भी तब जब बीएसपी उनके साथ है. यही हाल उनकी बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव का है. माना जा रहा है कि मैनपुरी में यादव, जाटव और मुसलमानों ने नेताजी के पक्ष में वोट डाले लेकिन बाकी सभी ओबीसी वोट बीजेपी को चले गए.
मिसाल के तौर पर फूलपुर गोरखपुर और कैराना की सीटों को लें तो सभी उपचुनावों में बीजेपी की हार हुई थी लेकिन इस बार के एक्जिट पोल में बीजेपी ये तीनों सीटें जीत रही है. पिछली बार बीजेपी इन सीटों को मामूली अंतर से हार गई थी, इस बार पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और ये सुनिश्चित किया कि सभी पिछड़ी जातियां, अति पिछड़ी जातियां और सवर्ण उसके खाते में आ जाएं.
बीजेपी ने इसके लिए सपा और निषाद पार्टी का गठबंधन न सिर्फ तुड़वा दिया बल्कि निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को गोरखपुर से सटे संतकबीर नगर से टिकट भी दे दिया. सूत्रों की मानें तो इस बार योगी आदित्यनाथ ने ब्राह्मणों को खुश करने के इरादे से भोजपुरी स्टार रवि किशन शुक्ला को गोरखपुर से टिकट दिलवाया और उनकी जीत भी पक्की करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
कैराना में मुसलमानों की तादाद करीब 5 लाख है और ये बहुमत में हैं, बीजेपी ने ये सीट 2014 में जीती थी लेकिन उपचुनाव में वो हार गए. इस बार यहां भी पार्टी ने रणनीति में बदलाव किया है. बीजेपी ने पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका का टिकट काटकर जाट समुदाय से ही प्रदीप चौधरी को टिकट दे दिया. माना जा रहा है कि यहां के वोट को एकजुट करने में इस फैसले की बड़ी भूमिका रही.
एक और ऐसी ही सीट है फूलपुर जिसे 2014 के अलावा बीजेपी कभी नहीं जीत पाई. तब मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यहां से जीत दर्ज की थी. उपचुनाव की हार से सबक लेकर बीजेपी ने यहां से भी कुर्मी समुदाय की मजबूत नेता केसरी देवी को टिकट दे दिया. केशव प्रसाद मौर्य ने भी इस सीट को वापस जीतने के लिए पूरा दम लगाया है. इस सभी कोशिशों के अलावा अगर बीजेपी को जीत मिली तो इसके हकदार नरेंद्र मोदी होंगे क्योंकि मोदी के नाम पर तमाम जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए.
कुमार अभिषेक / समीर चटर्जी