बॉलीवुड भी है जरदोजी का दीवाना, कारीगरों को नहीं मिलती मेहनत की कीमत

जरदोजी का काम कर रहे शहजान कहते हैं कि फर्रुखाबाद के कारीगरों की बनाई गईं लहंगे और साड़ियां बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्रियां भी पहनती हैं फिर चाहे वह चांदनी की श्रीदेवी हों या देवदास की माधुरी दीक्षित, सबको यहां के कारीगरों का काम बेहद पसंद है.

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जरदोजी कारीगरों का हाल जरदोजी कारीगरों का हाल

सुप्रिया भारद्वाज

  • फर्रुखाबाद,
  • 19 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 7:50 AM IST

फर्रुखाबाद के रहने वाले 22 वर्षीय मोहम्मद इरशाद अपना वोट डालने के लिए दो घंटे से लाइन में लगे हैं इरशाद जरदोजी का काम करते हैं और 12 घंटे मेहनत मशक्कत करने के बाद रोज 300 रुपए घर लेकर जाते हैं.

इरशाज आज जब मतदान करने आए तो विकास का मुद्दा ही उनके दिल और दिमाग पर छाया हुआ रहा. इरशाद का कहना है कि वो अच्छी तगख्वाह चाहते हैं और सिर्फ 8 घंटे की ड्यूटी करना चाहते हैं. आलू के अलावा फर्रुखाबाद अपने ज़रदोज़ी के महीन काम के लिए भी जहां जाता है. यहां जरदोजी के लगभग 35,000 से ज्यादा कारीगर 3,000 छोटी-बड़ी इकाइयां में काम करते हैं. लहंगे, साड़ियां, दुपट्टे, सूट यहां तक कि साफों के ऊपर भी ज़रदोज़ी का काम बाखूबी किया जाता है.

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मेहनत करने वाले ज़रदोज़ी कारीगरों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है. कारीगरों का कहना है कि वो बहुत मेहनत करने के बावजूद भी खुद की जिंदगी नहीं सवार सके हैं. पिछले 6 साल से जरदोजी का काम कर रहे शहजान कहते हैं कि फर्रुखाबाद के कारीगरों की बनाई गईं लहंगे और साड़ियां बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्रियां भी पहनती हैं फिर चाहे वह चांदनी की श्रीदेवी हों या देवदास की माधुरी दीक्षित, सबको यहां के कारीगरों का काम बेहद पसंद है.

कारीगर फैजान कहते हैं घंटो-घंटो तक वहीं काम करने की वजह से उनकी आंखों पर बहुत असर पड़ रहा है और फर्रुखाबाद में कोई आंखो का अच्छा अस्पताल नहीं है. नेता आते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन ना तो किसी ने क्षेत्र में अच्छे अस्पताल बनाए और ना ही जरदोजी कारीगरों के लिए बेहतर सुविधाएं दी इस बार वोट विकास करने वाले को ही देंगे.

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