लॉकडाउन के कारण काशी महाश्मशान पर सन्नाटा, चिताओं का जलना हुआ आधे से भी कम

कोरोना वायरस का असर काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर दिखने लगा है. दरअसल, लॉकडाउन के चलते रोजाना की तुलना में चिताओं की अंत्येष्टि यहां आधे से भी कम हो चुकी है.

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मणिकर्णिका घाट (फोटो-रोशन जायसवाल) मणिकर्णिका घाट (फोटो-रोशन जायसवाल)

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी,
  • 10 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 7:05 AM IST

  • कोरोना वायरस के कारण देश में 21 दिनों का लॉकडाउन
  • काशी महाश्मशान पर चिताओं का जलना हुआ कम

कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए देश में 21 दिनों का लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन के तहत सरकार ने घरों में रहने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि इस दौरान काशी महाश्मशान पर चिताओं का जलना आधे से भी कम हो गया है.

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कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है. भारत में भी कोरोना वायरस से बीमार कई मरीज हर रोज सामने आ रहे हैं. कोरोना जैसी महामारी ने लोगों को बीमार करके उनसे मृत्यु के बाद मिलने वाले चार कंधों और पूरे विधि-विधान से अंत्येष्टि का अधिकार पहले ही छीन लिया है. वहीं अब इस महामारी का असर काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर दिखने लगा है. दरअसल, लॉकडाउन के चलते रोजाना की तुलना में चिताओं की अंत्येष्टि यहां आधे से भी कम हो चुकी है.

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धर्म नगरी काशी के महाश्मशान के साथ मान्यता है कि यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती और 24 घंटे जलती ही रहती है. साथ ही यह भी मान्यता है कि यहां मृत्यु को प्राप्त लोगों के कान में शिव खुद तारक मंत्र देते हैं, जिससे जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त मिल जाती है. इस मान्यता के कारण ही काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका पर आम दिनों में पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती.

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लॉकडाउन के बाद से कमी

हालांकि लॉकडाउन के बाद से यहां सन्नाटा पसरा रहता है. दरअसल, बॉर्डर सील होने के कारण काशी को छोड़कर आसपास और दूर-दराज से चिताओं के आने का सिलसिला थम गया है. स्थानीय लोगों को महाश्मशान तक पहुंचने में दिक्कत नहीं हैं, लेकिन बाहर से आने वालों को बॉर्डर सील होने के चलते काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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खत्म होने की कगार पर स्टॉक

साथ ही यहां शव की अंत्येष्टि के लिए लकड़ी से लेकर अन्य सामग्रियों का स्टॉक भी खत्म होने की कगार पर है. एक दुकानदार दिनेश यादव ने बताया कि पहले 60-100 शव रोजाना आम दिनों में आया करते थे, लेकिन अब 4-5 शव ही आ रहे हैं. उनके पास लकड़ी का स्टॉक भी सिर्फ लॉकडाउन की मियाद 14 अप्रैल तक ही है. हालात अगर ऐसे ही रहे तो आगे चिताएं भी नहीं जल पाएंगी और महाश्मशान की आग भी बुझने के कगार पर आ सकती है.

मणिकर्णिका घाट

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वहीं शव की अंत्येष्टि कराने वाले डोम परिवार के मनोज चौधरी बताते हैं कि आम दिनों में 60 से ज्यादा शव रोजाना जला करते थे. लेकिन लॉकडाउन में बार्डर सील होने के चलते बाहर से शव नहीं आ पा रहे हैं. जिसके चलते कुछ ही शवों की रोजाना अंत्येष्टि हो रही है. ऐसे में डोम परिवार और उनके साथ 40-50 मजदूर भी काम न होने के चलते परेशानी में आ गए हैं और रोजी-रोटी की दिक्कत भी उनके सामने खड़ी हो गई है.

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