उम्र महज 22 साल, किसी ने सोचा न था कि जिस पिता के गोद में बड़ी हुई थी लाडली दीक्षा, उसी पिता की के पास अस्पताल में आखिरी सांस लेगी. लेकिन दीक्षा के परिवार की सराहना इस वक्त पूरा लखनऊ शहर कर रहा है जिसने बेटी की मौत के सदमे में भी ऐसा इंसानियत भरा फैसला लेने में वक्त नहीं गंवाया. ऑर्गन डोनेशन के फैसले के महज 1 घंटे के भीतर ही दीक्षा का लिवर, दोनों किडनियां और दोनों आंखे रिट्रीव कर ली गई.
लिवर को दिल्ली के आईएलबीएस भेजा गया जबकि दोनों किडनियों को पीजीआई लखनऊ ले जाया गया. आंखों को किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में ही सुरक्षित रख लिया गया. एक हादसे में ब्रेन डेड बेटी के ऑर्गन दान का फैसला परिवार के लिए आसान नहीं था. वो भी तब जब उसी हादसे में घायल पिता भी अस्पताल में भर्ती हो लेकिन वर्ल्ड ऑर्गन ट्रांसप्लांट डे के एक शाम पहले दीक्षा परिवार ने बेटी के 5 ऑर्गन दान किए. इस पहल ने एक मिसाल कायम कर दी है.
सड़क हादसे में घायल हुए थे पिता-बेटी
शनिवार को जब दीक्षा ने ट्रामा सेंटर में अपनी आखिरी सांस ली तो परिवार ने उसके ऑर्गन दान करने का फैसला लिया. पिता अनिल कुमार श्रीवास्तव जो खुद बेटी के साथ सड़क हादसे में घायल हो गए थे. उन्होंने कांपते हांथो से ऑर्गन डोनेशन के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किए.
18 मिनट में लिवर लखनऊ एयरपोर्ट पहुंचा
जैसे ही अनिल श्रीवास्तव के परिवार ने अपनी सहमति दी, वैसे ही एक तरफ डॉक्टरों की टीम ऑर्गन रिट्रीव करने में जुटी तो उसी वक्त लखनऊ प्रशासन शहर का ग्रीन कॉरिडोर बनाने में जुट गया. एक घंटे में ऑर्गन रिट्रीव हुआ तो अगले 18 मिनट में लिवर को लखनऊ एयरपोर्ट पहुंचा दिया गया. जहां से देर रात ऑर्गन आईएलबीएस पहुंचा.
दो हफ्ते में दूसरा मामला
पिछले दो हफ्ते में यह दूसरा मामला है जब लखनऊ में ब्रेन डेड किसी शख्स का ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराया गया हो. पिछले दो हफ्तों में दूसरी बार शहर में ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया और तय सीमा के भीतर इसे एयरपोर्ट तक पहुंचा भी दिया गया. दीक्षा खुद बीटेक इंजीनिरिंग की छात्रा थी जो अपने पिता के साथ लखनऊ के फन मॉल के एक बाइक सवार के धक्के से बुरी तरह जख्मी हो गई थी. शनिवार को शहर के ट्रामा सेंटर में उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था.
प्रियंका झा / कुमार अभिषेक