अखिलेश का समर्थन कर क्या BJP की बी-टीम होने का नैरेटिव तोड़ रही हैं मायावती?

उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा और बसपा के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी है. 2019 के बाद अखिलेश यादव को फिर मायावती का किसी मुद्दे पर समर्थन मिला है. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती के बदलते तेवर के बीच क्या वाकई सपा के साथ रिश्ते सुधारने की कवायद है या फिर बीजेपी के बी टीम वाले नेरेटिव को तोड़ने की रणनीति?

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अखिलेश यादव और मायावती अखिलेश यादव और मायावती

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 21 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST

उत्तर प्रदेश की सियासत 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नई करवट ले रही है. सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर की फिर से बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं तो दूसरी तरफ तीन साल के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव को किसी मुद्दे पर बसपा अध्यक्ष मायावती का साथ मिला है. इसके बाद सूबे में कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 में बसपा-सपा क्या फिर साथ आएंगे या मायावती ने बीजेपी के बी-टीम होने के नेरेटिव तोड़ने का दांव चला है? 

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अखिलेश को मिला मायावती का साथ

विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव की अगुआई में उनके पार्टी के विधायकों ने कानून व्यवस्था, महंगाई जैसे मुद्दों पर पैदल मार्च निकाला था. पुलिस ने बैरिकेडिंग करके उन्हें विधानसभा पहुंचने से पहले रोक दिया था. ऐसे में अखिलेश विधायकों के संग बीच रास्ते में धरने पर बैठक गए थे और वहीं पर डमी सदन चलाया. इस तरह अखिलेश ने मॉनसून सत्र के पहले दिन संदेश दे गए, जो वह देना चाहते थे. 

वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को एक के बाद एक तीन ट्वीट किए. इसमें उन्होंने भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया तो सपा के लिए उनकी तल्खी कम दिखाई दी. मायावती ने अपने ट्वीट में सपा और अखिलेश के नाम का जिक्र तो नहीं किया, लेकिन विरोध प्रदर्शन को लेकर इजाजत न दिए जाने पर सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों, उसकी निरंकुशता और जुल्म आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना बीजेपी सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है. साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा अति-घातक है. 

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बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद शायद पहली बार है जब मायावती ने किसी मुद्दे पर सपा का समर्थन किया है और खुलकर योगी सरकार पर हमलावर नजर आई हैं. मायावती के इस ट्वीट के बाद चर्चा तेज है कि क्या सपा और बसपा के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी है और क्या दोनों फिर से 2024 के चुनाव में साथ आ सकते हैं या फिर बीएसपी की इसके पीछे कोई और ही रणनीति है?  

सपा-बसपा क्या फिर साथ आएंगे 
अखिलेश यादव और मायावती ने 2019 में मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, बीजेपी को मात नहीं दे सके, जिसके चलते चुनाव के बाद मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया था. अखिलेश ने बसपा के कई नेताओं को अपने साथ मिला लिया था, जिसके चलते दोनों दलों के बीच सियासी रिश्ते काफी खराब हो गए थे. ऐसे में तीन साल में पहली बार है जब मायावती ने किसी मुद्दे पर अखिलेश यादव को समर्थन किया है और योगी सरकार पर हमलावर दिखी हैं.

मायावती का यह ट्वीट ऐसे समय आया है जब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के लिए कई तरह से कोशिशें की जा रही हैं. नीतीश कुमार से लेकर ममता बनर्जी और केसीआर तक अपने-अपने स्तर से कवायद कर रहे हैं. यही वजह है कि मायावती के ट्वीट ने सपा और बसपा के फिर से साथ आने की चर्चाओं को बल दे दिया है. हालांकि, सपा नेता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि मायावती केवल संविधान के प्रावधानों का जिक्र कर रही थीं. उनके ट्वीट को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए संभावित सपा-बसपा गठबंधन के साथ जोड़ना सही नहीं है. 

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राजनीतिक विश्वलेषक सैय्यद कासिम कहते हैं कि मायावती अभी तक सपा पर तीखे हमला करती रही हैं, लेकिन अब उन्होंने जिस तरह सपा के विरोध प्रदर्शन को योगी सरकार के द्वारा इजाजत न दिए जाने का विरोध किया है. उससे एक बात साफ है कि सपा को लेकर कहीं न कहीं सॉफ्ट कॉर्नर अपना रही हैं. सियासत में कुछ भी हो सकता है. बिहार में जब नीतीश और लालू फिर से साथ आ सकते हैं तो मायावती और अखिलेश यादव क्यों नहीं हाथ मिला सकते हैं. हालांकि, इस बार सपा और बसपा के बीच ही गठबंधन नहीं होगा बल्कि विपक्ष की तमाम पार्टियां साथ आ सकती हैं. यूपी में विपक्षी एकता को मजबूत बनाने के लिए बसपा का साथ लेना मजबूरी है. 

बता दें कि नीतीश कुमार 2024 के चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे हैं. नीतीश कुमार साफ कह चुके हैं कि बिहार की तरह ही सभी विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ एकजुट हों. एक तरह से यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना चाहते हैं. जेडीयू महासचिव केसी त्यागी ने भी कहा था कि 2024 के चुनाव में जो भी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ लड़ना चाहती हैं, उन सभी को एक साथ आना होगा. 

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बीजेपी की बी-टीम के नैरेटिव को तोड़ने का दांव
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि बसपा प्रमुख मायावती यूं ही सपा के समर्थन और बीजेपी के खिलाफ मुखर नहीं हुई बल्कि इसके पीछे उनकी सोची समझी रणनीति भी है. मायावती अपने सियासी बेस वोटों को जोड़ने के बाद भी यह बात समझ रही हैं कि 2024 के चुनाव में तब तक बड़ी ताकत नहीं बन सकती जब तक मुस्लिम उनके साथ नहीं आता. मुस्लिम वोटों को जोड़ने के लिए लगातार मायावती सक्रिय हैं, लेकिन उनकी पार्टी पर बीजेपी की बी-टीम होने का जो नेरेटिव सेट हो गया है, उससे मुस्लिमों का विश्वास कायम नहीं हो पा रहा है. 

मायावती इन दिनों इसी कोशिश में लगातार जुटी हैं कि कैसे बीजेपी के बी-टीम होने के आरोप से बसपा को बाहर निकाला जाए. इसीलिए मायावती बीजेपी के प्रति अपने सॉफ्ट रवैए में भी तब्दील लाई हैं और इन दिनों मुस्लिमों से जुड़े हर मुद्दे पर मुखर हैं और योगी सरकार पर हमलावर हैं. मदरसा के सर्वे का मामला हो या फिर अन्य दूसरे मामले. ऐसे में मायावती ने सपा के प्रति सॉफ्ट कार्नर और बीजेपी के खिलाफ आक्रमक रुख अपना कर मुस्लिम व अपने अन्य वोटर्स को ये संदेश देना चाहती हैं कि वह बीजेपी और योगी-मोदी सरकार के खिलाफ हैं? 

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