बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को तगड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 13 लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है. आइये समझते हैं आखिर क्या था पूरा मामला...
ये था मामला?
6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराने के मामले में भाजपा नेता आडवाणी , जोशी और 19 अन्य के खिलाफ साजिश के आरोप खत्म करने के आदेश के विरुद्ध हाजी महबूब अहमद (अब मृत) और सीबीआई ने अपील दायर की थी. सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि पूरक आरोप पत्र आरोप मुक्त किये गये 13 व्यक्तियों के खिलाफ नहीं बल्कि आठ व्यक्तियों के खिलाफ दायर किया गया था. भाजपा नेताओं आडवाणी, जोशी, उमा भारती के अलावा कल्याण सिंह (इस समय राजस्थान के राज्यपाल), शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और विश्व हिन्दू परिषद के नेता गिरिराज किशोर (दोनों अब मृत) के खिलाफ भी साजिश के आरोप खत्म कर दिये गये थे.
दूसरी एफआईआर में था इनका नाम
बाबरी मस्ज़िद विध्वंस के बाद दो एफआईआर दर्ज की गई थी. एफआईआर नंबर 197/1992 उन अनाम कारसेवकों के ख़िलाफ थी जिन्होंने विवादित ढांचे को गिराया था, तो दूसरी एफआईआर 198/1992 अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, एल के आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, अशोक सिंघल और साध्वी ऋतम्भरा पर दर्ज की गई थी. जिसमें इन आरोपियों पर उकसाने वाला भाषण देने के लिए आरोप के अलावा समुदायों में द्वेष फैलाने जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.
CBI ने फाइल की थी चार्जशीट
सीबीआई ने दोनों मामलों में 5 अक्टूबर 1993 को लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में ज्वाइंट चार्जशीट फाइल की थी. चार्जशीट में आडवाणी और संघ परिवार के दूसरे नेताओं के खिलाफ विवादित ढांचा गिराये जाने की साजिश रचे जाने का आरोप लगाया गया था. इसी बीच फरवरी 2001 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एफआईआर नंबर 198 को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर किये जाने को तकनीकी तौर पर गलत कहा क्योंकि इसके लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश से अनुमति नहीं ली थी. हालांकि आपराधिक साजिश की धारा हटाये जाने को लेकर हाइकोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की थी.
यूपी सरकार ने तकनीकी गलती दुरस्त नहीं की और एफआईआर नंबर 198 का मामला वापस रायबरेली कोर्ट चला गया. 4 मई 2001 में लखनऊ की सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज श्रीकांत शुक्ला ने आडवाणी और 20 अन्य नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा हटा दी क्योंकि एफआईआर 197 सिर्फ बाबरी मस्जिद के विध्वंस को लेकर थी ना कि आपराधिक साजिश को लेकर.
बाद में मई 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. इस फैसले के नौ महीने के बाद ,फरवरी 2011 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की. आडवाणी और बाकी नेता याचिका दायर में हुई देरी का आधार मानकर याचिका खारिज किये जाने की मांग कर रहे थे लेकिन कोर्ट ने ये मांग खारिज कर दी.
सीबीआई के अलावा एक याचिकाकर्ता हाजी महबूब ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर कहा था कि 2014 में केंद्र में सरकार बदलने के बाद सीबीआई अपना रुख बदल सकती है. बीजेपी और संघ से जुड़े आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए. अब सीबीआई और हाजी मेहबूब की याचिका पर सुनवाई पूरी हो गयी है और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा.
मोहित ग्रोवर