कांग्रेस के विरोध में ही बनी थी TDP, 36 साल में पहली बार आए साथ

कांग्रेस के विरोध में 36 साल पहले बनी टीडीपी राहुल गांधी के साथ हाथ मिलाया है. जबकि आंध्र प्रदेश में दोनों पार्टियां पिछले 36 सालों से एक दूसरे के धुरविरोधी रहे हैं, लेकिन वक्त और सियासत ने दोनों को हाथ मिलाने के लिए मजबूर कर दिया है.

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राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडू (फोटो-Twitter) राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडू (फोटो-Twitter)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:44 PM IST

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस से दुश्मनी भुलाकर हाथ मिलाया है. हालांकि, एक दौर में टीडीपी का गठन आंध्र प्रदेश की सियासत से कांग्रेस के वर्चस्व को खत्म करने के लिए फिल्म अभिनेता से नेता बने एनटी रामाराव ने किया था. 36 साल के बाद सियासत ने ऐसी करवट ली कि टीडीपी जिसके विरोध में बनी थी, आज उसी कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आ रही है.

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आंध्र प्रदेश की राजनीति को कांग्रेस के हाथों से छीनने के लिए 29 मार्च 1982 एनटी रामाराव ने टीडीपी की स्थापना करके राजनीति में कदम रखा था. जबकि उस वक्त रामाराव तेलुगु सिनेमा के सफल और लोकप्रिय अभिनेता थे.

टीडीपी गठन के एक साल के बाद 1983  में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए, तो एनटी रामाराव के नेतृत्व में पार्टी के जीत मिली. वो प्रदेश दसवे मुख्यमंत्री बने. 1983 से 1994 के बीच वह तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

इसके बाद जब साल 1984 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रामलाल ने 19 महीने पहले बनी एनटीआर की जगह भास्कर राव को मुख्यमंत्री बना दिया. एक तरह राज्यपाल ने रामाराव की सरकार को गिराने की कोशिश की तो चंद्रबाबू नायडू ने ही गैर-कांग्रेसी ताकतों को इकट्ठा कर एनटीआर की सरकार को बचाया. रामाराव सितंबर 1984 में फिर से मुख्यमंत्री बने.

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एनटी रामाराव इतने लोकप्रिय थे कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी तब बस आंध्र-प्रदेश में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था. जबकि टीडीपी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल भी बन गया था.

टीडीपी गठन के बाद पहली बार 1989 के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के चलते हार मिली और कांग्रेस सत्ता में वापस आई. लेकिन पांच साल के बाद जब 1994 में चुनाव हुए तो टीडीपी 226 सीटों के साथ दोबारा सत्ता में लौटी. हालांकि एनटी रामाराव महज 9 महीने लिए मुख्यमंत्री रहे पाए थे कि उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने 1995 में पार्टी नेताओं को मिलाकर उन्हें सीएम और पार्टी अध्यक्ष पद से बेदखल कर दिया कर खुद काबिज हो गए थे.

चंद्रबाबू नायडू का कांग्रेस के साथ खड़े होना लोगों को अचरज भरा लग रहा है, लेकिन उन्हें याद करना चाहिए कि नायडू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1978 में कांग्रेस से किया था. 1980 में वे राज्य की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे थे.  

टीडीपी के गठन से पहले नायडू ने एनटी रामाराव की बेटी के साथ शादी भी लिया था. 1982 में रामाराव ने टीडीपी बनाया तो नायडू उनके साथ नहीं आए. वो कांग्रेस में रहे और चुनाव भी लड़े. 1984 में जब राज्यपाल ने टीडीपी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की तो वे एनटीआर के साथ खड़े नजर आए.

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टीडीपी शुरू से कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष करती रही. एनटीआर और नायडू दोनों नेताओं के जमाने में. देश में गठबंधन की राजनीति शुरू हुई तो टीडीपी कांग्रेस के बजाय बीजेपी के साथ खड़ी नजर आई. 1998 में एनडीए का हिस्सा बनी और अटल सरकार में भी रही. 2014 में आंध्र प्रदेश के दो हिस्से हो जाने के बाद नायडू नरेंद्र मोदी के साथ हाथ मिलाया, लेकिन इसी साल मई 1998 में एनडीए से अलग हो गए हैं.

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से अलग होने के बाद उन्होंने कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए विपक्ष को एकजुट करने का इन दिनों कवायद कर रहे हैं.

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