इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन की कठिनाइयों के बारे में बताया था. इसमें बताया था कि भारतीय वैज्ञानिक चंद्रयान-2 को लॉन्च करने के बाद उसे चांद पर लैंड कराने तक सात तरह की समस्याओं से रूबरू होने वाले हैं. हालांकि, चंद्रयान-2 अंतरिक्ष के सात चक्रव्यूह में से 4 को भेद चुका है, अब सिर्फ 3 ही बाकी है. 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरते ही इसरो का विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर अंतरिक्ष में आने वाली सभी समस्याओं के चक्रव्यूह को तोड़ देगा. इसरो वैज्ञानिकों की निपुणता और चंद्रयान-2 की तकनीक 7 सितंबर को देश का नाम और सम्मान पूरी दुनिया में ऊंचा करने वाले हैं.
अंतरिक्ष की समस्याओं के ये 4 चक्रव्यूह भेद चुका है चंद्रयान
पहला चक्रव्यूहः सटीक रास्ते पर ले जाना
लॉन्च के समय धरती से चांद की दूरी करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी थी. इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना था. क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती, चांद और रास्ते में आने वाली अन्य वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा. चंद्रयान-2 ने पहला चक्रव्यूह पार सफलतापूर्वक भेद लिया है.
दूसरा चक्रव्यूहः गहरे अंतरिक्ष में संचार
धरती से ज्यादा दूरी होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचने की आशंका थी. लेकिन चंद्रयान-2 की सभी संचार प्रणाली सही तरीके से काम कर रही है. वह बीच-बीच में अपनी सेहत के बारे में संदेश देता रहता है. ये चक्रव्यूह भी चंद्रयान-2 भेद चुका है.
तीसरा चक्रव्यूहः चांद की कक्षा में पहुंचना
चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाना आसान नहीं था. लेकिन, इसरो के वैज्ञानिकों ने लगातार बदलते ऑर्बिटल मूवमेंट के बावजूद चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में 20 अगस्त को पहुंचा दिया था. यह करने में वैज्ञानिकों इतनी सटीकता दिखाई कि कम ईंधन में ही यह काम पूरा हो गया. तीसरा चक्रव्यूह भी चंद्रयान-2 ने भेद डाला.
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चौथा चक्रव्यूहः चांद की कक्षा में घूमना
चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं है. इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी बराबर नहीं है. इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है. लेकिन, चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और विक्रम लैंडर दोनों चांद के चारों तरफ कुशलतापूर्वक चक्कर लगा रहे हैं. चौथा चक्रव्यूह भी चंद्रयान-2 ने तोड़ डाला.
अब बस ये 3 चक्रव्यूह तोड़ना बाकी है...
पांचवां चक्रव्यूहः चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर चंद्रयान-2 के रोवर और लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है. चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा. ये सभी काम ऑटोमैटिकली होंगे. यही वो चक्रव्यूह हैं जिसके लिए इसरो वैज्ञानिकों की सांसें थमी हैं, लेकिन उनकी आंखें सजग और दिमाग सतर्क हैं.
छठा चक्रव्यूहः लैंडिंग के समय चांद से उड़ने वाली धूल
चांद की सतह पर ढेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है. जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी. धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई बाधित हो सकती है. ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसर्स पर असर पड़ सकता है. हांलाकि, इसरो वैज्ञानिकों ने इस चक्रव्यूह को भेदने के लिए सारी तैयारी कर ली है. उपाय खोजा है कि लैंडिंग के समय 6 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद पांचों इंजन के बजाय सिर्फ एक इंजन चालू रखा जाएगा. ताकि धूल उड़कर दूर चली जाए.
सातवां चक्रव्यूहः चांद की सतह पर बदलता तापमान
चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है. इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है. इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी. लेकिन, इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि रोवर और लैंडर दोनों ही चांद के तापमान को आराम से झेल लेंगे.
ऋचीक मिश्रा