पुलवामा हमले के बाद विपक्ष की चुप्पी में छुपे हैं ये 5 सियासी संदेश

सत्ताधारी दल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को भरोसा दिला चुके हैं कि हमले के पीछे जो भी ताकतें हैं उनसे बदला लिया जाएगा. लेकिन इस बार सर्जिकल स्ट्राइक की तरह न तो किसी विपक्षी दल ने सरकार से सवाल किए और न ही सुरक्षा में चूक का मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने की कोशिश की.

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (PTI फोटो) कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (PTI फोटो)

अनुग्रह मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 8:35 AM IST

जम्मू कश्मीर के पुलवामा में बीते गुरुवार को हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है. इस वक्त शहर-शहर गम और गुस्से का माहौल है और लोग चाहते हैं कि सरकार इस कायराना हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे. साथ ही आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और उनके पनाहगाह पाकिस्तान के खिलाफ भी कठोर कदम उठाए जाएं. हमले के बाद देश के सभी राजनीतिक दलों ने इसकी निंदा की और सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आतंक के खिलाफ लड़ाई में साथ खड़े होने की बात कही.

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सत्ताधारी दल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को लगातार भरोसा दिला रहे हैं कि हमले के पीछे जो भी ताकतें हैं उनसे बदला लिया जाएगा. लेकिन इस बार सर्जिकल स्ट्राइक की तरह न तो किसी विपक्ष दल ने सरकार से सवाल किए और न ही सुरक्षा में चूक का मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने की कोशिश की. पुलवामा हमले के बाद मुख्य विपक्ष कांग्रेस समेत अन्य दल भी सरकार के साथ खड़े दिखे. यहां तक कि कांग्रेस ने तो हमले के बाद अपने दो बड़े राजनीतिक कार्यक्रमों को भी टाल दिया. लेकिन विपक्ष की इस चुप्पी की वजह भी है, क्योंकि वह इस नाजुक वक्त में बीजेपी को कोई मुद्दा नहीं देना चाहते और चुनाव से पहले देश के लिए एकजुटता भी दिखाना चाहते हैं.

सर्जिकल स्ट्राइक से सबक

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए थे, जिसका खामियाजा इन दलों को भुगतना पड़ा. बीजेपी के नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वाले नेताओं को अपनी चुनावी रैलियों में जमकर कोसा. साथ ही इसे सेना के शौर्य और पराक्रम का अपमान भी बताया. इसके बाद सरकार के इस कदम पर सवाल उठाने वाले उल्टे सवालों के घेरे में आ गए. अब कोई विपक्षी दल चुनाव से पहले ऐसी गलती नहीं दोहराता चाहते ताकि लोकसभा चुनाव से पहले उनकी छवि देश विरोधी दल की बन जाए, क्योंकि बीजेपी अगर ऐसा प्रचारित करती है तो इसका असर लोकसभा चुनाव में पड़ सकता है.

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जवानों की शहादत का गुस्सा

जम्मू कश्मीर में आए दिन एनकाउंटर और सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं होती हैं, जिनमें हमारे जवानों की शहादत हुई है. लेकिन इस बार आतंकियों ने एक बड़े हमले को अंजाम दिया है जिसमें CRPF के 40 जवान एक साथ शहीद हुए हैं. आतंकियों की इस कायराना हरकत से देश सदमे में है. ऐसे में विपक्षी दल जनभावनाओं का सम्मान करते हुए इस वक्त सरकार पर किसी तरह के सियासी हमले से बच रहे हैं. आम तौर पर जवानों की शहादत पर सरकार को आड़े हाथों लेने वाले विपक्षी दल इस बड़े आतंकी हमले के बाद बने आक्रोश के माहौल से अवगत हैं. अभी अगर कोई भी दल इस पर सियासी बयानबाजी करता है तो उसे जवानों की शहादत का गुस्सा भी झेलना पड़ेगा.

बीजेपी को न दें सियासी हथियार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी जनसभाओं में हमले का बदला लेने के बयान लगातार दे रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पूर्व की यूपीए को मजबूर सरकार बताकर कांग्रेस पर निशाना साधते आए हैं. अगर इस वक्त कोई भी विपक्षी दल सरकार को घेरने की कोशिश करेगा तो यह दांव उल्टा पड़ सकता है क्योंकि बीजेपी उसे मुद्दा बना लेगी और वही बयान चुनावी रैलियां का एजेंडा सैट करने का काम करेंगे. विपक्षी नेताओं के बयानों को पहले भी प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता चुनावी मुद्दा बना चुके हैं. ऐसे में कोई दल नहीं चाहेगा कि बीजेपी को पुलवामा हमले के बाद कोई सियासी हथियार दिया जाए.

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आतंक के खिलाफ एकजुटता

मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई करके दिखाई है. केंद्र सरकार शुरू से ही आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है. ऐसे में विपक्षी नेता इस चुप्पी के जरिए संदेश देना चाहते हैं कि इस बड़ी लड़ाई में वह सरकार के साथ खड़े हैं. साथ ही वैश्विक स्तर पर भी दुनिया को ऐसी एकजुटना दिखाने की जरूरत है. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ संबंध हो या फिर कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रयास, इन सभी में विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े दिखना चाहते हैं.

चुप्पी में छुपा चैलेंज

विपक्षी दलों की इस चुप्पी में मोदी सरकार के लिए एक चुनौती भी छुपी हुई है. विपक्ष के तमाम नेता अभी सरकार पर सवाल भले ही न खड़े करें लेकिन बार-बार आंतकवाद पर एक्शन की मांग जरूर दोहरा रहे हैं. टीवी पर कांग्रेस के नेता बार-बार 'एक के बदले 10 सिर' वाले बयान की याद बीजेपी को दिला रहे हैं. इसके अलावा पाकिस्तान से सभी तरह के रिश्ते खत्म करने का दवाब भी सरकार पर बनाया जा रहा है. इसी दबाव का नतीजा था कि केंद्र सरकार ने हमले के अगले ही दिन पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस ले लिया. अब विपक्षी दलों की ओर से सरकार को सीधा चैलेंज है कि हम आपके साथ खड़े हैं लेकिन आप आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाएं.

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आज के माहौल में इस चुप्पी के कई सियासी मायने हैं. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा विपक्षी दलों की यह चुप्पी तीखे हमलों का रूप धारण कर लेगी, क्योंकि तब माहौल अलग होगा. आज चुप रहने वाले नेता उस वक्त चुनावी मंचों से सरकार से जवाब मांगने को तैयार दिखेंगे, उस वक्त में सरकार को विपक्ष के सवाल का जवाब भी देना पड़ेगा और जमीन कर एक्शन के जरिए जनता का भरोसा भी जीतना पड़ेगा.

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