आरक्षण पर बदला संघ का रुख, बिहार चुनाव के वक्त समीक्षा पर था जोर

कभी आरक्षण का विरोध कर चुका संघ अब यह मानता है कि सामाजिक विषमता दूर करने के लिए आरक्षण जरूरी है. क्रीमी लेयर को लेकर संघ का मानना है कि इसे बनाएं रखें या हटाएं, इसका फैसला उसी वर्ग को लेना चाहिए.

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मोहन भागवत की फाइल फोटो मोहन भागवत की फाइल फोटो

रविकांत सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:09 PM IST

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने समाज के पिछड़े वर्ग की उन्नति का पक्ष लेते हुए संविधान के तहत लागू आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखने की बात कही है. उनकी बात को संघ के स्टैंड में बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि यही संघ पूर्व में आरक्षण हटाने की मांग कर चुका है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरक्षण के खिलाफ संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के बयान ने बवाल मचा दिया था. जयपुर साहित्योत्सव में भाग लेने गए वैद्य ने आरक्षण के मुद्दे पर कहा था कि आरक्षण से अलगाववाद बढ़ता है और उसे समाप्त कर देना चाहिए. वैद्य के इस बयान पर काफी विवाद हुआ. हालांकि वैद्य बाद में पलट गए. उन्होंने कहा कि उनकी बातों का अलग अर्थ निकाला गया. वैद्य ने कहा कि संघ हमेशा से आरक्षण का पक्षधर रहा है.

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ऐसा ही मामला बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी हुआ था जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक इंटरव्यू में आरक्षण की खिलाफत की थी. भागवत ने अपने ही संगठन की एक पत्रिका को इंटरव्यू दिया था. भागवत ने आरक्षण की समीक्षा किए जाने की बात कही थी और इसका तर्क दिया था कि यह वर्षों पुरानी व्यवस्था है.

भागवत के इस विचार में अब तब्दीली आ गई है. दिल्ली में संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आखिरी दिन बुधवार को संघ प्रमुख ने कहा कि सामाजिक विषमता दूर करने के लिए संविधान में जहां जितना आरक्षण दिया गया है, संघ उसका समर्थन करता है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि समाज में बराबरी की व्यवस्था लागू करने के लिए ही संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है, संविधान सम्मत सभी आरक्षणों को संघ का पूरा समर्थन है और रहेगा.

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वहीं, क्रीमीलेयर वर्ग के तहत आने वाले लोगों को आरक्षण जारी रखने पर मोहन भागवत ने कहा कि आरक्षण कब तक चलेगा, इसका निर्णय वही लोग करेंगे जिन्हें यह दिया गया है.

भारत में फिलहाल अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और ओबीसी यानी पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी आरक्षण है. बाकी बची 50.5 फीसदी नौकरियां सामान्य जातियों के लिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा रखी है.

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