मोहन भागवत ने की प्राइवेट स्कूलों की तारीफ, कहा- इनके प्रयास से मिले जादुई नतीजे

RSS के इस तीन दिन के कार्यक्रम में देश की कई बड़ी हस्तियों ने हिस्सा लिया. तीन दिन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोगों को संबोधित किया.

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संघ प्रमुख मोहन भागवत (File Pic) संघ प्रमुख मोहन भागवत (File Pic)

मोहित ग्रोवर / विजय रावत

  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:04 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की 3 दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि देश में शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थाओं का बड़ा योगदान है. भागवत ने कहा कि निजी संस्थाओं ने कई अहम प्रयोग किए हैं और इन प्रयोगों का जादुई असर देश की शिक्षा में देखने को मिला है. लिहाजा, देश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हमें सरकार की पहल या शिक्षा नीति का इंतजार किए बगैर सार्थक पहल करते रहने की जरूरत है.

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मोहन भागवत ने धर्मपाल के ग्रंथ के आधार पर दावा किया कि अंग्रेजों ने भारत पर अधिपत्य के बाद एक सर्वे कराया और उसे चौकाने वाले आंकड़े मिले. भागवत के मुताबिक अंग्रेजी हुकूमत को सर्वे में पता चला कि भारत की तत्कालीन शिक्षा पद्दति परंपरा में निहित थी. वहीं यह शिक्षा पद्दति ज्यादा प्रभावी और अधिक लोगों को साक्षर बनाने वाली थी. भागवत ने यह भी कहा कि अंग्रेजों को सर्व में यह भी पता चला कि भारतीय शिक्षा जीवन को अधिक योग्य बनाने में कारगर थी और इसलिए अंग्रेजों ने परंपरा पर आधारित भारतीय शिक्षा प्रणाली की जगह अपनी अयोग्य प्रणाली को देश पर थोपने का काम किया.

मोहन भागवत ने कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में जो कुछ लेने लायक है उसे शामिल करते हुए अपनी परंपरा से जो लेना है उसे लेते हुए नई शिक्षा नीति को तैयार करने की जरूरत है. भागवत ने कहा कि नई शिक्षा नीति जल्द आने वाली है और उम्मीद जाहिर की कि इस नीति में उनकी कही सभी बातों का ध्यान रखा गया होगा.

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वहीं अन्य धर्मों की शिक्षा पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में बाहर से संप्रदायों का आगमन हुआ और लिहाजा ऐसे संप्रदायों के मूल्यों का बोध शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए.

हालांकि, भागवत ने स्कूलों में धर्म की शिक्षा देने से परहेज करने की बात कही. भागवत ने कहा कि शिक्षा में धर्मों के मूल बोध का ज्ञान देना ही पर्याप्त है. देश में शिक्षा के घटते स्तर पर मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा का स्तर नहीं घटता बल्कि शिक्षा ग्रहण करने और शिक्षा देने वालों के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है.

भागवत ने कहा कि दोनों छात्रों और शिक्षकों को यह बात स्पष्ट तौर पर समझने की जरूरत है कि वह शिक्षा लेने और देने का काम क्यों कर रहे हैं. उन्हें शिक्षा को महज आय के माध्यम के तौर पर ग्रहण करने से परहेज करने की जरूरत है.

हालांकि मोहन भागवत ने माना कि देश में डिग्रियां बड़े स्तर पर दी जा रही हैं लेकिन रिसर्च के काम में सुस्ती है. लिहाजा, सरकार को चाहिए कि वह नई शिक्षा में रीसर्च को बढ़ावा देने के उपायों को अपनी नई शिक्षा नीति में शामिल करे.

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