भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation - ISRO) के चेयरमैन डॉ. के. सिवन ने चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग से पहले ही कहा था कि चांद पर विक्रम लैंडर को उतरने में 15 मिनट लगेंगे. ये लैंडिंग बेहद कठिन और जटिल होगी. इसमें कुछ भी अनहोनी हो सकती है. इसलिए ये '15 Minutes of Terror' या 'डर के 15 मिनट' होंगे. अगर इस 15 मिनट में सब कुछ सही रहा तो हम इतिहास रचेंगे. 7 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम की लैंडिंग में सिर्फ 15 मिनट ही लगने थे. शुरुआती 13 मिनट तक सब सही रहा लेकिन आखिरी के 2 मिनट में इस भय को पुख्ता कर दिया, जिसकी आशंका थी. चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर ने 2.1 किमी की ऊंचाई पर अपने तय मार्ग से दिशा बदली और 335 मीटर की ऊंचाई पर आते-आते उसका ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया.
आइए जानते हैं कि '15 Minutes of Terror' शब्द कब और कहां से आया
ये बात है 6 अगस्त 2012 की यानी चंद्रयान-2 के चांद की लैंडिंग से करीब सात साल पहले की. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने नवंबर 2011 में मंगल ग्रह के लिए अपना क्यूरियोसिटी लैंडर लॉन्च किया था. करीब 10 महीने बाद 6 अगस्त 2012 को क्यूरियोसिटी लैंडर को मंगल की सतह पर उतरना था. इसे मंगल के ऑर्बिट (कक्षा) से उसकी सतह पर उतरने में करीब 7 मिनट लगने वाले थे. ये लैंडिंग बेहद जटिल थी. जरा सी भी चूक होती तो क्यूरियोसिटी का वही हाल होता जो आज चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का हुआ है.
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उस समय नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेट्री (JPL) के हाथ में लैंडिंग का पूरा कमांड था. जेपीएल ही क्यूरियोसिटी की लैंडिंग पर निगरानी रख रही थी. क्यूरियोसिटी की लैंडिंग भी ऑटोमैटिकली होने वाली थी. इस पूरी प्रक्रिया में सात मिनट लगने वाले थे. इसलिए जेपीएल के वैज्ञानिकों ने इसे '7 Minutes of Terror' यानी 'डर के 7 मिनट' कहकर पुकारा था. क्यूरियोसिटी एक छोटे कार की आकार वाला रोवर था. इसे एक हीट शील्ड में कवर करके मंगल की सतह पर उतारना था.
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मंगल की सतह से 12 किमी ऊपर खुल गया था पैराशूट
हीट शील्ड ने मंगल ग्रह के वायुमंडल में जब प्रवेश किया तब घर्षण की वजह से वह 1600 डिग्री सेल्सियस तापमान का सामना कर रहा था. उस समय उसकी गति 1609 किमी प्रति घंटा थी. मंगल की सतह से 12 किमी की ऊंचाई पर एक बड़ा पैराशूट खुला और हीटशील्ड को लेकर मंगल की सतह की ओर बढ़ने लगा. तब इसकी गति 1448 किमी प्रति घंटा थी. 9 किमी की ऊंचाई पर हीटशील्ड नीचे से हट गया और क्यूरियोसिटी रोवर दिखने लगा. तब इसकी गति 595 किमी प्रति घंटा थी.
स्काई क्रेन के जरिए उतारा गया था क्यूरियोसिटी रोवर
हीटशील्ड के हटने के बाद भी क्यूरियोसिटी के ऊपर एक रोबोटिक कवर था. इसे स्काई क्रेन नाम दिया गया था. यह वैसा ही था जैसा हमारे प्रज्ञान रोवर के ऊपर विक्रम का कवर था. इसके बाद शुरू हुआ पावर्ड डिसेंट. यानी रोबोट में लगे थ्रस्टर्स को ऑन करके वैसी ही लैंडिंग जैसे हमारे विक्रम लैंडर को करना था. 8 थ्रस्टर्स को ऑन करके क्यूरियोसिटी की गति को 3.21 किमी की गति पर लाया गया. करीब 25 फीट की ऊंचाई पर आने के बाद स्काई क्रेन ने क्यूरियोसिटी रोवर को तारों के जरिए मंगल की सतह के ऊपर लटका दिया. स्काई क्रेन की गति जब जीरो हो गई तब क्यूरियोसिटी रोवर को मंगल की सतह पर उतारा और तार काट दिए. इसके बाद स्काई क्रेन रोवर से थोड़ा दूर जाकर लैंड कर गया.
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12 जून को सिवन ने कहा था - विक्रम की लैंडिंग 'भय के 15 मिनट' होंगे
इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने 12 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि हमारे लिए इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है चंद्रमा की सतह पर सफल और सुरक्षित लैंडिंग कराना. चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे आएगा. उसे चंद्रमा की सतह पर आने में करीब 15 मिनट लगेंगे. यह 15 मिनट इसरो के लिए बेहद कठिन होगा. क्योंकि इसरो पहली बार ऐसा मिशन करने जा रहा है.
ऋचीक मिश्रा