हिंदी पर बवालः कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस ने एक साथ मोदी सरकार पर किया हमला

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाओं के फॉर्मूले को लेकर कर्नाटक के सत्तारूढ़ जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन ने केंद्र सरकार पर एक साथ हमला बोला है. लोकसभा चुनाव में भाजपा से करारी हार मिलने के बाद कर्नाटक में इन दोनों पार्टियों को एनडीए सरकार को घेरने का एक मौका मिल गया है.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी. (FILE) कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी. (FILE)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2019,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाओं के फॉर्मूले को लेकर कर्नाटक के सत्तारूढ़ जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन ने केंद्र सरकार पर एक साथ हमला बोला है. लोकसभा चुनाव में भाजपा से करारी हार मिलने के बाद कर्नाटक में इन दोनों पार्टियों को एनडीए सरकार को घेरने का एक मौका मिल गया है. हालांकि, केंद्र ने इस मसौदे को वापस ले लिया है पर कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस दोनों ही इस मुद्दे पर एनडीए, भाजपा और केंद्र सरकार को घेर रही हैं.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने रविवार को ही कहा था कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य पर तीन भाषाओं के नाम पर एक भाषा नहीं थोप सकती. इसके बाद कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को उठा लिया. कांग्रेस नेता एवं कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने भी इसका जमकर विरोध किया. सिद्धारमैया ने कहा कि हिंदी भाषा को थोपना और कुछ नहीं बल्कि राज्यों पर नृशंस हमला है. हमारी राय के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जा सकता. तीन भाषाओं की कोई जरूरत नहीं है. अंग्रेजी एवं कन्नड़ पहले से हैं, वे काफी हैं. कन्नड़ हमारी मातृभाषा है, इसलिए प्रमुखता कन्नड़ को दी जानी चाहिए.

कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ हिंदी बोलने वाले लोगों की सरकार की तरह पेश न आए. जबकि, कर्नाटक के भाजपा नेता इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं.

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दक्षिण बेंगलुरु से भाजपा के नवनिर्वाचित सांसद तेजस्वी सूर्या ने हिंदी के विरोध को भारत को तोड़ने वाली ताकतों की हरकत बताया. सूर्या ने ट्वीट कर कहा कि लोग इन ताकतों को नहीं जीतने देंगे. कुछ लोगों ने इसके पीछे की मंशा को गलत तरीके से लिया. उसे तोड़मरोड़कर पेश किया गया. हालांकि, प्रदेश भाजपा ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मसौदे को वापस लेने वाले ट्वीट को रीट्वीट किया है.

भाषा का ये विवाद पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है. दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है, तो वहीं सरकार सफाई दे रही है कि अभी ये सिर्फ ड्राफ्ट है, फाइनल नीति नहीं है. सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया है कि किसी पर भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, हर किसी से बात करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.

इस मसौदे को लेकर मचे हो-हल्ले के बीच उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी रविवार को सभी से आग्रह किया था कि वे जल्दबाजी में अपनी राय देने के बदले पूरी रिपोर्ट को पढ़ें. उन्होंने कहा, "हमें भाषा पर लड़ाई नहीं करनी चाहिए." वेंकैया ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय एकता के लिए उत्तर भारतीयों को एक कोई दक्षिण की भाषा सीखनी चाहिए और दक्षिण भारतीयों को उत्तर भारत की कोई एक भाषा सीखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मसौदा नीति में प्रस्ताव किया गया है कि कम से कम कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को और आदर्श रूप में कक्षा आठवीं तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "बच्चे अपनी मातृभाषा में बेसिक बातों को समझ पाते हैं. अंग्रेजी भी सीखने की जरूरत है लेकिन वह बुनियाद मजबूत होने के बाद."

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