हाल ही में हुए जनगणना में सामने आया है कि भारत में हर छठी महिला को बाल विवाह की ओर धकेला जाता है. यूं तो कानून के मुताबिक लड़कियोंकी शादी 18 और लड़कों की 21 में होनी चाहिए, लेकिन सब कानून फेल है. जनगणना में कम उम्र में लड़के और लड़कियों की शादियां होने के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में सामने आए हैं.
जनगणना डाटा के मुताबिक भारत में 587.58 मिलियन महिलाओं की जनसंख्या में 102.61 मिलियन महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है.
नेशल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरा (एनसीआरबी) 2011-12 के मुताबिक, दस वर्ष के सर्वेक्षण में सामने आया है कि देशभर में बाल विवाह को लेकर सिर्फ 948 केस दर्ज हुए हैं. इनमें सिर्फ 157 व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की सजा को तीन महीने की जेल से बढ़ाकर दो साल जेल और 2 लाख रुपयों की जुर्माना किया था, लेकिन इससे भी कुछ बहुत फर्क नहीं पड़ा. बाल विवाह के मामलों में कमी नहीं आई.
जनगणना के मुताबिक, 37.62 मिलियन महिलाओं ने बातचीत में कहा कि वह सिर्फ चार साल के लिए शादी की थी. इनमें 6.5 मिलियन ने कहा कि अपनी शादी के समय उनकी उम्र 18 साल से कम थी. जनणना के मुताबिक, चार साल या उससे कम समय के लिए शादी करने वाली कम उम्र की महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा राजस्था (31.38 प्रतिशत), इसके बाद पश्चिम बंगाल (29.23 प्रतिशत), झारखंड (27.90 प्रतिशत), बिहार (22.99 प्रतिशत) और मध्यप्रदेश (22.49 प्रतिशत) है.
राजस्थान में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाला समभाली ट्रस्ट के फाउंडर गोविंद सिंह राठौर ने कहा, 'लड़कियों को हमेशा से परिवार में बोझ समझा जाता रहा है. उनका भाग्य हमेशा बस घर का कामकाज करना रहा है. उनकी जिंदगी सिर्फ शादी करना और ससुराल वालों की सेवा करना ही सोचा जाता है. यही वजह है कि उनकी शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं किया जाता है.'
नई दिल्ली के यूनीसेफ ऑफिस का मानना है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 बहुत कमजोर है. सबको पता है कि बाल विवाह के खिलाफ कानून है, लेकिन समाज में ये अब भी हो रहा है.
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