EXCLUSIVE: गोविंदाचार्य बोले- धरातल पर नहीं दिखता मोदी सरकार का सुशासन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और बीजेपी के पूर्व नेता के एन गोविंदाचार्य ने मोदी सरकार के नीतियों पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि ये सुशासन की सरकार है तो धरातल पर भी इसका असर होना चाहिए.

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के एन गोविंदाचार्य के एन गोविंदाचार्य

अमित कुमार दुबे / अहमद अजीम

  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2016,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और बीजेपी के पूर्व नेता के एन गोविंदाचार्य ने मोदी सरकार के नीतियों पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि ये सुशासन की सरकार है तो धरातल पर भी इसका असर होना चाहिए. पूर्व बीजेपी नेता से 'आज तक' के संवाददाता ने खास बातचीत की.

सवाल: कॉल ड्रॉप मामले पर सरकार के अब तक उठाए कदम को आप कैसे देखते हैं?
गोविंदाचार्य: पिछले 5 साल में 60 करोड़ से 100 उपभोगता हो गए हैं, उन्हें सुविधाएं भी उसी तरह से मिलनी चाहिए, चीन में टेलिकॉम कंपनियों ने 48 फीसदी पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर लगाया है. जबकि भारत में इसपर 4 फीसदी भी खर्च नहीं हुआ है. इसी वजह से कॉल ड्रॉप हो रहा है. जो वकील टेलिकॉम कंपनियों के लिए लड़ते थे वो मिनिस्टर बन जाते हैं. कोई सरकारी वकील बन जाता है जो कभी कंपनियों के लिए केस लड़ता था. ये सीधे तौर पर कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट है. रविशंकर प्रसाद टेलिकॉम मंत्री हैं, उन्होंने भी कंपनियों का प्रतिनिधित्व किया है.

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सवाल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार को पुनर्विचार याचिका डालनी चाहिए?
गोविंदाचार्य: इसके दो रास्ते हैं. सरकार अगर फैसले से सहमत है तो नया कानून आर्डिनेंस के जरिए लाए. अगर असहमत हैं तो पुनर्विचार याचिका डालें. इतना दिन हो गया कहीं से कोई सुगबुगाहट नहीं है.

सवाल: क्या आपको रविशंकर जी की नीयत में खोट लगता है?
गोविंदाचार्य: मैं सीधे तौर पर आरोप नहीं लगाता. लेकिन जो चीजें दिखती हैं उससे कई लोगों को कई तरह का संदेह होता है. आप लोगों के लिए कमिटेड हैं तो उनका इंटरेस्ट आपके लिए सबसे अहम होना चाहिए न कि कंपनियों के लिए.

सवाल: आपने जो चिट्ठी लिखी थी प्रधानमंत्री जी को उसका कोई जवाब आया?
गोविंदाचार्य: नहीं, अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. संदेह होता है कि चिट्ठियां पहुंचती हैं तो क्या हो जाती हैं. सुशासन है इसलिए जल्दी जवाब मिलने की उम्मीद है. लोग कहते हैं कि पीएमओ बेहद सक्रिय हैं.

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सवाल: सरकार ने डिफेंस समेत कई क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई का फैसला किया है. इस पर आप क्या सोचते हैं?
गोविंदाचार्य: अभी के वित्त मंत्री जब विपक्ष में थे तो उन्होंने कहा था कि हम आखिरी सांस तक एफडीआई को नहीं आने देंगे. अब क्या कर रहे हैं? अभी तो ये भी स्पष्ट नहीं है कि डिफेंस के किन-किन सेक्टर्स को ओपन कर रहे हैं. सिविल एविएशन और फूड प्रोसेसिंग में किया गया है ये एक बड़ी गलती है.

सवाल: सरकार के आंकड़े तो बता रहे हैं कि GDP बहुत अच्छी बढ़ रही है, तरक्की हो रही है, क्या धरातल पर वैसा सब कुछ हो रहा है?
गोविंदाचार्य: सवाल खड़ा होता है कि GDP बढ़ रही है तो कहां जा रही है? कौन-सी GDP बढ़ रही है? रोजगार नहीं बढ़ रहा है. कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा निवेश की जरूरत है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है? धरातल पर अभी बहुत कुछ आना बाकी है.

सवाल: क्या ये एक यू-टर्न सरकार है?
गोविंदाचार्य: सरकार की साख पर तब बट्टा लगता है जब वो विपक्ष में होती है तो कुछ और बात करती है और सत्ता में आने के बाद कुछ और करती हो.

सवाल: एस्सार कंपनी ने महत्वपूर्ण लोगों की कॉल रिकॉर्ड की. क्या इस पर मोदी सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए?
गोविंदाचार्य: मुझे लगता है कि सरकार को सभी विषयों को गंभीरता से लेनी चाहिए, जैसे NPA विषय है, सिर्फ माल्या के खिलाफ ही क्यों इस तरह के सभी मामलों में एक्शन होना चाहिए.

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सवाल: न्यायिक सुधार पर क्या सोचते हैं?
गोविंदाचार्य: मैं मानता हूं कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अनावश्यक टकराव है. देश के हित में ये है कि दोनों को इससे बचना चाहिए. मुझे ऐसा लगता है कि जजों की संख्या बढ़ाई जाए. 10 लाख पर 50 जज होने चाहिए. जजों की एकाउंटबिलिटी हो इसके लिए उनकी नियुक्ति के समय एक हलफनामा उनसे लिया जाए. कचहरी वाले भी तो हलफनामा दें, आम जनता तो देती ही है. ज्यादा संकट साख का है.

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