दिल्ली हाई कोर्ट ने आधार कार्ड से वोटर आईडी को जोड़ने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि इस मसले पर चुनाव आयोग आठ हफ्ते में निर्णय करे. दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से अपने ज्यूरिडिक्शन के तहत इस पर फैसला करने को कहा है. अगर चुनाव आयोग सहमत हुआ तो वोटर आईडी को आधार कार्ड से जोड़ा जा सकता है. जिससे बड़ी संख्या में अवैध वोटर मतदाता सूची से हटेंगे. चुनाव में भी पारदर्शिता आएगी.
दरअसल, बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्निनी उपाध्याय चुनाव सुधारों की मांग लंबे समय से उठाते रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को आधार कार्ड से जुड़ीं दो अलग-अलग याचिकाएं दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल कीं. एक याचिका में वोटर आइडी कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की मांग उठाई और दूसरी याचिका में आधार से संपत्तियों को जोड़ने की मांग की. वोटर आईडी को आधार से जोड़ने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह अश्निनी उपाध्याय की ओर से 11 मार्च को दिए प्रजेंटेशन पर उचित निर्णय ले.
इसके लिए कोर्ट ने आठ हफ्ते का चुनाव आयोग को वक्त दिया. अश्निनी उपाध्याय ने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर चुनाव आयोग के फैसले से वह सहमत नहीं होंगे तो फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. वहीं संपत्तियों को आधा कार्ड से जोड़ने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र, गृह मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है.
अश्निनी उपाध्याय ने बताया कि वोटर आईडी के आधार कार्ड से जुड़ने पर फर्जी वोटर्स की संख्या कम होगी. देश में भारी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या भी वोटर्स बन गए हैं. वहीं तमाम लोगों का नाम कई शहरों की वोटर लिस्ट में होता है. ऐसे में आधार और वोटर आइडी के जुड़ने से फेक वोटर्स की समस्या से निजात मिलेगी. उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक ही याचिका दाखिल की थी, जिसमें संपत्तियों और वोटर आईडी कार्ड को जोड़ने की मांग की थी.
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में आधार की वैधता को लेकर सुनवाई चल रही थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसले का इंतजार करने को कहा था. जब सितंबर 2018 में आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया तो संबंधित याचिका पर आठ मार्च 2019 को सुनवाई हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मैंने वोटर आईडी के मामले में चुनाव आयोग और संपत्तियों के मामले में गृह मंत्रालय और दिल्ली सरकार में प्रजेंटेशन दिया था. मगर कोई जवाब नहीं दिया गया. मजबूरन फिर से अलग-अलग याचिकाएं दाखिल करनी पड़ीं. इस बार दो याचिकाएं दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की है.
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