25 दिसंबर 2010 की सुबह 10.30 बजे श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के मिशन कंट्रोल सेंटर में वैज्ञानिकों की सांसें थमी हुई थीं. जीएसएलवी-एफ06 रॉकेट पर संचार उपग्रह जीसैट-5पी रखा था. ठीक चार मिनट बाद 10.34 बजे रॉकेट को लॉन्च किया गया. लेकिन, लॉन्च के 53.8 सेकंड बाद लोगों ने देखा कि रॉकेट धमाके के साथ आसमान में ध्वस्त हो गया. लोगों और वैज्ञानिकों के चेहरे पर मायूसी छा गई. इसरो को करीब 325 करोड़ (175 करोड़ का जीएसएलवी-एफ06 और 150 करोड़ रुपये का जीसैट-5पी) का नुकसान हुआ था. साथ ही हजारों वैज्ञानिकों की महीनों की मेहनत भी व्यर्थ हो गई.
हालांकि, इस बात को बेहद कम लोग जानते हैं कि इसरो वैज्ञानिकों का काम सिर्फ रॉकेट लॉन्च करना ही नहीं है. अगर रॉकेट दिशा से भटक जाए या उड़ान के बाद उसमें कोई बड़ी खामी दिखाई दे तो उसे हवा में ही विस्फोट करके ध्वस्त करना भी उसकी जिम्मेदारी है. 2010 में भी जीएसएलवी-एफ06 को इसी तरह लॉन्च के बाद हवा में ध्वस्त कर दिया गया था. आइए आपको बताते हैं उस पूर्व इसरो वैज्ञानिक के बारे में जिन्होंने इस रॉकेट को हवा में खत्म किया था. ताकि, दिशा से भ्रमित हो रहे रॉकेट से जान-माल का नुकसान न हो.
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इसरो के इतिहास में रॉकेट को हवा में ध्वस्त करने के 2 ही मामले हैं. पहला 2006 में और दूसरा 2010 में. इस रॉकेट साइंटिस्ट ने पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक, भारत रत्न दिवंगत डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ अग्नि मिसाइल के प्रक्षेपण में बतौर संरक्षा अधिकारी काम किया था. इनका नाम है- विनोद कुमार श्रीवास्तव. AAJTAK.IN से विशेष बातचीत में उन्होंने अपने जीवन, काम, उपलब्धियों और दुख के कई रोचक किस्से बयां किए. इन्हीं रोचक किस्सों के जरिए जानिए कि कैसे एक इसरो वैज्ञानिक अपना काम करता है....
'5-7 सेकंड में रॉकेट को ध्वस्त करने का फैसला लिया था मैंने'
जब जीएसएलवी-एफ06 की लॉन्चिंग होनी थी तब मैं सतीश धवन स्पेस सेंटर में रेंज सेफ्टी ऑफिसर था. मेरा काम था रॉकेट और रेंज की सेफ्टी. मैं बता दूं कि यहां सेफ्टी का मतलब सुरक्षा नहीं है. वैज्ञानिक इसे 'संरक्षा' कहते हैं. यानी किसी अवांछनीय परिणाम से बचाव. जीएसएलवी-एफ 06 की लॉन्चिंग के बाद 47.5 सेकंड तक सब ठीक था. 47.8 सेकंड में हमें उसकी दिशा में गड़बड़ी दिखाई दी. इसके बाद रॉकेट में खामियों की संख्या में तेजी से इजाफा होने लगा. वह दिशा बदल रहा था. रॉकेट के रास्ते, सेहत और खामियों की सभी जानकारी हमें सेकंड के दसवें हिस्से में सबसे पहले मिलती है.
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अगर वह कहीं गिरता तो बड़ा नुकसान हो सकता था. इसलिए, मैंने 53.8 सेकंड में डिस्ट्रक्शन का कमांड दिया. मैंने कहा- कमांड एग्जीक्यूटेड. तब रेंज ऑपरेशन डायरेक्टर ने कहा- रॉजर. इसके बाद विस्तृत रिपोर्ट तत्कालीन इसरो चेयरमैन के. राधाकृष्णनन को सौंपी गई. पूरा मिशन कंट्रोल सेंटर सन्नाटे में था. मैं खुद हैरान था कि मुझे रॉकेट को ध्वस्त करना पड़ रहा है. दुख होता है ऐसा करने के लिए. लेकिन, हमारे लिए लोगों की जान बेहद जरूरी होती है. क्योंकि हवा में जाने के बाद रॉकेट में कोई बड़ी खामी होती है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि मिशन सफल नहीं हो रहा है. वह किसी को नुकसान पहुंचाए, उससे पहले उसे नष्ट कर दो. इसके बाद मैंने अपने इस काम की एक रिपोर्ट बनाकर इसरो के आलाकमान को सौंपी. उसमें मैंने बताया कि किन परिस्थितियों में रॉकेट को ध्वस्त करना पड़ा.
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रॉकेट के रास्ते में आने वाले सभी इलाकों का अध्ययन किया जाता है
विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि रॉकेट को छोड़ने से पहले उसके रास्ते का अध्ययन किया जाता है. उसके रास्ते के नीचे आने वाले इलाकों और वहां रहने वाली आबादी की डिटेल ली जाती है. फिर लॉन्च से पहले देहरादून स्थित नेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस और दिल्ली स्थित नागरिक विमानन विभाग को रॉकेट का रास्ता बताया जाता है. ये दोनों संगठन लॉन्च के पहले समुद्र और हवा में मौजूद जहाज और विमान को इसकी सूचना देते हैं. ताकि वे सुरक्षित तरीके से अपने मार्ग में रहें या थोड़ा बहुत बदलाव कर लें. साथ ही रॉकेट के रास्ते में आने वाले इलाकों के प्रशासन को सूचना दी जाती है. जब ये दोनों लॉन्च से एक घंटे पहले हमें कहते हैं कि सब ओके है, तब लॉन्च किया जाता है. आमतौर पर कोशिश यही रहती है कि रॉकेट के रास्ते में कोई शहर न आए. लेकिन श्रीहरिकोटा से लेकर अंडमान-निकोबार तक के ऑयल रिग्स, ऑयल टैंकर्स, जहाज आदि पड़ते हैं. जिन्हें लॉन्च से पहले सूचना दे दी जाती है.
29 साल तक इसरो में, उससे पहले डीआरडीओ में कलाम साहब के साथ काम किया
विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि कानपुर के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से 12वीं की शिक्षा पूरी की. फिर वीएसएसडी कॉलेज कानपुर से ही एमएससी किया. इसके बाद थोड़े समय तक फिरोज गांधी कॉलेज रायबरेली में केमिस्ट्री का लेक्चरर रहा. इस बीच, पुणे स्थित डीआरडीओ के एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब में वैज्ञानिक की जॉब लग गई. फिर हैदराबाद स्थित डीआरडीओ के सेंटर में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल पर काम किया. इसे डेविल मिशन नाम दिया गया था. कलाम साहब के नेतृत्व में 6 महीने उनके साथ काम करने का मौका मिला. बालासोर में शुरुआती तीन अग्नि मिसाइलों में कलाम साहब को असिस्ट किया. इसरो के एसएलवी-3 के चौथे रॉकेट के प्रक्षेपण में बतौर संरक्षा अधिकारी ज्वाइन किया. रिटायरमेंट तक 450 रॉकेट का प्रक्षेपण कराया. सिर्फ एक रॉकेट को ध्वस्त करना पड़ा
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2011 में रिटायर हुए, लेकिन इसरो नहीं खोना चाहता था इनका अनुभव
विनोद कुमार श्रीवास्तव 2011 में इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से बतौर जीएम रेंज सेफ्टी रिटायर हुए. लेकिन इसरो इनके अनुभव को खोना नहीं चाहता था इसलिए उन्हें एक साल तक ब्रह्मप्रकाश वैज्ञानिक की श्रेणी में रहे. इसके बाद से विनोद कुमार श्रीवास्तव 4 साल तक इसरो में कैटेगरी-1 के साइंटिफिक एडवाइजर रहे. अभी इसरो के ओवरऑल रिव्यू कमेटी के सदस्य हैं जो लॉन्च के पहले सभी प्रक्रियाओं का रिव्यू करती है.
अब इसरो के लॉन्चिंग की करते हैं हिंदी में कमेंट्री, ताकि लोग आसानी से समझ सकें
19 दिसंबर 2018 को जीएसएलवी-एफ11/जीसैट-7ए की लॉन्चिंग से पहले विनोद कुमार श्रीवास्तव से इसरो के रेंज ऑपरेशन डायरेक्टर ने कहा कि श्रीवास्तव जी हमारा हिंदी कमेंटेटर आज नहीं आया है. लॉन्चिंग की हिंदी कमेंट्री आप करेंगे. तब विनोद कुमार श्रीवास्तव ने इस ऑफर को तत्काल मान लिया. तब से अब तक विनोद कुमार श्रीवास्तव ने पांच मौकों पर हिंदी में लॉन्चिंग की कमेंट्री की है. चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग की हिंदी कमेंट्री भी विनोद कुमार श्रीवास्तव के कंधों पर थी.
चंद्रयान-2 के रॉकेट जीएसएलवी-एमके3 की आखिरी बूंद तक के ईंधन का हुआ उपयोग
विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 22 जुलाई को चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग इस वजह से हुई क्योंकि जीएसएलवी-एके3 रॉकेट ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. रॉकेट के चलने का जो गणित इसरो वैज्ञानिकों ने लगाया था, उससे 18 सेकंड ज्यादा चला. यह तय सीमा से 6000 किमी आगे चला गया. क्योंकि इसे लंबे सफर पर जाना था, इसलिए वैज्ञानिकों ने इसे रोका नहीं. रॉकेट के आगे जाने से चंद्रयान-2 के ईंधन की बचत हुई है. जो आगे फायदेमंद होगी.
ऋचीक मिश्रा