लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए चेहरे के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर सभी सहयोगी दल एकमत हैं. जबकी विपक्ष की ओर पीएम पद का दावेदार कौन होगा, इस पर अभी एक राय नहीं बन पा रही है.
कांग्रेस जहां राहुल गांधी के नाम को आगे बढ़ा रही है. वहीं, बसपा प्रमुख मायावती अपनी मजबूत दावेदारी के लिए राज्यों में पैर पसार रही हैं. इसके लिए मायावती ने कांग्रेस की बजाय क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिलाने की रणनीति अपनाया है.
यूपी में पिछले तीन चुनावों में मायावती बुरी तरह हारी हैं. लोकसभा में बसपा का एक भी सांसद नहीं है, जिस यूपी में 11 साल पहले मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, आज उनके महज 19 विधायक हैं. बावजूद इसके वे प्रधानमंत्री पद पर मजबूज दावा ठोंक रही हैं.
बसपा प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने इंडिया टुडे से कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तुलना में मायावती ज्यादा बेहतर हैं. इसके अलावा चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं. पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के रूप में मायावती का लंबा अनुभव है. यही वजह है कि विपक्षी दलों के नेता भी उन्हें पीएम के रूप में देखना चाहते हैं.
बता दें कि बीजेपी और कांग्रेस के बाद बसपा देश की तीसरी पार्टी है, जिसका आधार राष्ट्रीय स्तर पर है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद बसपा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. बसपा ने 2 करोड़ 29 लाख वोटों के साथ 4.1 फीसदी मत हासिल किया था. हालांकि देश के कई राज्यों में बिखरे इस वोट से पार्टी लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर-फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत हासिल की तो मायावती को गठबंधन की ताकत का एहसास हुआ. इसी के बाद ही बसपा अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया.
गठबंधन फॉर्मूले का मायावती ने पहला प्रयोग कर्नाटक में किया. उन्होंने कांग्रेस की बजाय क्षेत्रीय दल जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और एक सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थीं. इसी रणनीति के तहत बसपा ने हरियाणा में इनेलो के साथ गठबंधन किया है. वहीं छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के साथ मिलने के बजाय अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
मायावती को इसका सियासी फायदा मिलता भी दिख रहा है. क्षेत्रीय दलों से गठबंधन के ठोस शक्ल लेने के साथ दलित संगठनों और क्षत्रपों की ओर से मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की मांग तेज होती जाएगी.
बसपा ने जिन क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिलाया है उन पार्टियों के नेता मायावती को पीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं. अजीत जोगी ने शनिवार को बिलासपुर की रैली में मायावती को 2019 में पीएम बनने की बात कही. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की तरह दूसरे राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे और मायावती को पीएम बनाएंगे.
इधर हरियाणा में पैरोल पर दो सप्ताह के लिए जेल से बाहर आए इनेलो अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला ने रविवार को कहा कि बसपा सुप्रीमो मायावती को 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए उनकी पार्टी विपक्षी दलों को एकसाथ लाने की दिशा में काम कर रही है.
राजनीति संभावनाओं का खेल है. ऐसे में क्षेत्रीय दलों के गठबंधन को अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ कामयाबी मिलती है तो मायावती अपनी नई छवि के बूते प्रधानमंत्री पद के लिए दावा करने से पीछे नहीं हटेंगी. इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि ज्यादातर क्षेत्रीय दल गैर कांग्रेसवाद की ही राजनीति करते आए हैं.
दरअसल बसपा अध्यक्ष इस बात को बखूबी समझती हैं कि 2019 में विपक्ष की ओर से किसी भी दल को इतनी ज्यादा सीटें नहीं मिलने जा रही है, जिसके दम पर वे सरकार बना लें. ऐसे में नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्ष एकजुट हो सकता है. ऐसे में वो ज्यादा से ज्यादा सीटें और क्षत्रपों का सहयोग हासिल करने में कामयाब रहती है तो ऐसी स्थिति में उनके पीएम बनने की सबसे मजबूत दावेदारी हो सकती है.
कुबूल अहमद