NRC: राजीव गांधी के इस कदम से शुरू हुआ था घुसपैठियों की पहचान का अभियान

असम में छात्र आंदोलन को बढ़ता देख अगस्त 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच 'असम समझौता' हुआ. राजीव गांधी ने अवैध बांग्लादेशियों से निजात दिलाने का वादा किया था.

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1985 में राजीव गांधी-असम गण परिषद समझौता (फाइल फोटो) 1985 में राजीव गांधी-असम गण परिषद समझौता (फाइल फोटो)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 10:36 AM IST

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के दूसरे और आखिरी ड्राफ्ट के आने के बाद करीब 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं. जबकि 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है. जिन्हें अवैध करार दिया गया हैं वे अपनी नागरिकता के वैध दस्तावेज पेश नहीं कर सके.

देश में सबसे ज्यादा घुसपैठ वाला राज्य असम है, जहां बांग्लादेश से अवैध रूप से लोग आकर बस गए हैं. राज्य में घुसपैठ के खिलाफ लगातार आंदोलन और आवाज उठाई जाती रही है. इसी के मद्देनजर घुसपैठियों की पहचान के लिए एनआरसी अपडेट करने का काम शुरू हुआ. असम में 1951 के बाद एनआरसी अपडेट का काम 2005 में शुरू हुआ था, जिसका ड्राफ्ट अब जारी हुआ.

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बता दें कि देश के बंटवारे के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से घुसने वाले अवैध अप्रवासियों की पहचान के लिए असम में पहला नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) 1951 में बनाया गया था. इसमें राज्य के हर गांव में रहने वाले लोगों के नाम, उनकी संख्या, घर, संपत्तियों का विवरण था. बावजूद इसके बांग्लादेश से घुसपैठ जारी रही, 1971 के बाद बड़ी तादाद में लोग आकर बस गए.

असम में 1980 में बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य से बाहर करने के लिए एनआरसी को अपडेट करने की मांग को लेकर आंदोलन जोर पकड़ने लगा. इसका इसका नेतृत्व अखिल असम छात्र संघ (आसू) और असम गण परिषद ने किया.

आंदोलन को बढ़ता देख अगस्त 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच 'असम समझौता' हुआ. राजीव गांधी ने अवैध बांग्लादेशियों से निजात दिलाने का वादा किया था. इसी का नतीजा था कि उन्होंने समझौते में कहा था कि 25 मार्च 1971 तक असम में आकर बसे बांग्लादेशियों को नागरिकता दी जाएगी. बाकी लोगों को राज्य से निर्वासित किया जाएगा.

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असम में आंदोलन के दम पर विधानसभा चुनावों में पहुंची असम गण परिषद और उसके मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने समझौते के ज्यादातर प्रावधानों को भुला दिया. महंत की सरकार दो बार सत्ता में रही, लेकिन अवैध बांग्लादेशियों को भूल गए.

2005 में एक बार फिर इसी मुद्दे को लेकर आंदोलन हुआ. इसके बाद केंद्र की मनमोहन सरकार और राज्य की तरुण गोगोई सरकार के बीच समझौता हुआ. गोगोई सरकार ने एनआरसी अपडेट करने का काम राज्य के कुछ जिलों में शुरू किया. लेकिन राज्य में हिंसा के बाद ये प्रक्रिया रुक गई.

असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित विभिन्न संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की थी. असम के चुनाव में बीजेपी ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया. 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह काम शुरू हुआ.

असम में वैध नागरिकता के लिए 3 करोड़ 29 लाख 91 हजार 384 लोगों ने एनआरसी में आवेदन किया था.  बीते जनवरी माह में असम में सरकार ने एनआरसी का पहला ड्राफ़्ट जारी किया था. इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया है. इसके बाद दूसरी लिस्ट मंगलावर को जारी की गई है. दोनों लिस्ट मिलकर 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है. जबकि 40 लाख 7 हजार 707 लोग अवैध करार दे दिए गए हैं.  

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