राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शह-मात का खेल जारी है. पायलट खेमा अपनी सदस्यता बचाने के लिए हाई कोर्ट की शरण में है. गहलोत खेमा भले पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने में सफल रहा है, लेकिन अगर अदालत से उनकी सदस्यता बची रहती है तो कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल छाए रहेंगे. ऐसे में गहलोत सरकार का सियासी भविष्य स्पीकर सीपी जोशी के हाथों में होगी, जिनके साथ सीएम गहलोत के कभी छत्तीस के आंकड़े रहे हैं. हालांकि, इन दिनों दोनों नेताओं के बीच रिश्ते बेहतर हैं.
राजस्थान की मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे में विधायकों की वफादारी सबसे अहम हो जाती है, लेकिन सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के 18 बागी विधायकों का मजबूती के साथ खड़ा होना गहलोत के लिए परेशानी का सबब बन गया है. ऐसे में अगर सचिन पायलट और बीजेपी गहलोत खेमे के कुछ अन्य विधायकों को अपने साथ लाने में कामयाब रहते हैं तो सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी.
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सचिन पायलट इस तरह से गहलोत के खिलाफ बागी रुख अख्तियार किए रहे तो बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर गहलोत की सत्ता का तख्तापलट करने में कामयाब हो सकते हैं. बीजेपी के पास फिलहाल अपने 72 विधायक हैं और आरएलपी के तीन विधायकों का समर्थन हासिल है. इसके अलावा एक निर्दलीय विधायक भी उनके साथ हैं, जिन्हें मिलाकर आकड़ा 76 पहुंचता है. वहीं, पायलट के साथ कुल 22 विधायक हैं, जिनके समर्थक से यह संख्या 98 पहुंचती है. ऐसे में उन्हें गहलोत को सत्ता से बेदखल करने के लिए महज 3 विधायकों की जरूरत है.
यही वजह है कि कांग्रेस बेचैन है और मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान की सरकार को नहीं गंवाना चाहती है. यही वजह है कि पायलट को लेकर गहलोत आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं. हालांकि, इस तरह की सियासी स्थिति उत्पन्न होती है तो स्पीकर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. कर्नाटक और मध्य प्रदेश में हाल में ही हम देख चुके हैं कि स्पीकर ने सरकार बचाने के लिए अंत तक प्रयास किए थे. अब राजस्थान में गहलोत सरकार का सारा दारोमदार विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के निर्णय के ऊपर निर्भर करेगा.
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जयपुर हाई कोर्ट ने मंगलवार को बागी विधायकों पर कोई एक्शन लेने से स्पीकर को 24 तारीख तक रोक लगा दी थी, लेकिन अब बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इसपर सवाल खड़े कर दिए हैं. सीपी जोशी का कहना है कि किसी विधायक को अयोग्य करार देने का हक स्पीकर को है, ऐसे में अदालत उनके कामकाज में दखल नहीं दे सकती है. इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे. इस तरह से गहलोत सरकार का भविष्य अब पूरी तरह से सीपी जोशी के निर्णय के ऊपर निर्भर करेगा.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सीपी जोशी का सियासी सफर एक ही दौर में शुरू हुआ था. सीपी जोशी जब राजनीति में आए तो अशोक गहलोत की सरपरस्ती में निखरना शुरू हुए. गहलोत 70 के दशक में एनएसयूआई नेता के तौर पर अपना सफर शुरू किया था जबकि सीपी जोशी पहली बार 1973 में अपनी जन्म भूमि नाथद्वारा से विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक बने थे.
1979 में गहलोत एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष बन गए थे और 1980 में जोधपुर सीट से सांसद चुने गए. वहीं, सीपी जोशी 1980, 1985, 1998 और साल 2003 में लगातार नाथद्वारा से विधायक बनते रहे जबकि दूसरी ओर गहलोत 1980,1991, 1996 और 1998 में लगातार जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल करते रहे. इसके बाद 1998 में जब गहलोत के नेतृत्व में राजस्थान में सरकार बनाई तो सीपी जोशी उनकी कैबिनेट का हिस्सा थे.
सीपी जोशी भले ही आज अशोक गहलोत की सरकार के तारणहार की भूमिका में दिख रहे हैं, लेकिन उनके बीच छत्तीस के आंकड़े भी देखने को मिले थे. सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कुछ दिन तक अशोक गहलोत के कहे में रहे लेकिन धीरे-धीरे उनके आसपास के लोग उनकी महत्वाकांक्षा को जगाने लगे और वो मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर उभरने लगे थे. राहुल गांधी का कांग्रेसी राजनीति में प्रभाव बढ़ा तो सीपी जोशी बहुत अच्छी तरह से अंग्रेजी बोलते हैं और राहुल गांधी उस वक्त अशोक गहलोत की हिंदी भाषा को ठीक से समझ नहीं पाते थे.
सीपी जोशी ने अपने अंग्रेजी ज्ञान से राहुल गांधी के भरोसेमंद बन गए. तब राहुल गांधी राजस्थान आते तो अशोक गहलोत के साथ ऐसे बर्ताव करते जैसे कोई दूसरे दर्जे का नेता हो और सीपी जोशी राजस्थान के कांग्रेस के भविष्य हों. गहलोत ने उस दौर को काट लिया, जिस तरह से राहुल गांधी आज सचिन पायलट के साथ सहज दिखते हैं उसी तरह से 2008 में हुए चुनाव प्रचार के दौरान वह गहलोत के बजाए सीपी जोशी के साथ ज्यादा सहज दिखते थे.
हालांकि तब अशोक गहलोत प्रतिभा के कायल नहीं बने थे. सीपी जोशी 2008 में एक वोट से चुनाव हार गए लेकिन कांग्रेसी आलाकमान की पूरी सहानुभूति उनके साथ रही, लेकिन सत्ता की कमान गहलोत को मिली. इसके बाद सीपी जोशी 2009 के लोकसभा चुनाव में जीतकर केंद्रीय मंत्री बने. इस तरह उनका कद बढ़ा और कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, सीपी जोशी कांग्रेस के आर्थिक प्रस्ताव को पढ़ने के लिए चुने गए. केंद्र में अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी उनके कंधो पर थी.
राहुल के करीबी नेता के तौर पर वो अपनी जगह बना चुके थे. 26 जून, 2013 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सीएम अशोक गहलोत के सामने ही सीपी जोशी ने तल्ख तेवर दिखाते हुए कहा था कि मैं फिर कह रहा हूं कि मैं फॉलोअर नहीं बल्कि कोलोब्रेटर बन गया हूं. सीपी के इस बयान को लेकर खूब चर्चा हुई थी. जोशी ने विरोध जारी रखा तो गहलोत ने ऐसे दांव चला कि वो चारों खाने चित हो गए.
हालात, ऐसे बन गए कि राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में भ्रष्टाचार के एक मामले में सीपी जोशी फंस गए और इसी बाद उन्होंने अपने आपको सरेंडर कर दिया. सीपी जोशी ने पिछले साल वरिष्ठ पत्रकार प्रवीणचंद्र छाबड़ा की पुस्तक 'धम्मम शरणम' के विमोचन समारोह में कहा था कि उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया को है, लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने में सीएम अशोक गहलोत का अहम योगदान है. 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से गहलोत और सीपी जोशी के बीच रिश्ते बेहतर नजर आए हैं. अब देखना है कि सीपी जोशी अपने फैसले से गहलोत या फिर पायलट किसके लिए अहम रोल प्ले करते हैं.
कुबूल अहमद