सुखजिंदर सिंह के भाग्य में सुख आते-आते रह गया और चरणजीत सिंह चन्नी किस्मत के चैंपियन साबित हो गए. रंधावा बाजी मारते दिख रहे थे, उनका मुख्यमंत्री बनना तय लग रहा था, मिठाइयां बंटने लगी थी, जश्न का इंतजाम होने लगा था लेकिन किस्मत दगा दे गई. शाम होते होते रंधावा के चेहरे की रौनक गायब थी. खुशी मायूसी में तब्दील हो चकी थी, जुबान पर सिर्फ पार्टी से निष्ठा का नाम रह गया था. रंधावा मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने रंधावा का चैप्टर क्लोज कर दिया. सबसे सुरक्षित और संतुलित रास्ता यही था कि किसी कम दबदबे वाले नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाए. चन्नी इस चोले में फिट थे, एक तो दलित चेहरा, दूसरे उनकी शख्सियत, कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं.