किसानों की हड़ताल से पंजाब में जरूरी वस्तुओं की बढ़ी किल्लत! ये है मांग

नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों की हड़ताल का असर अब आम लोगों पर भी पड़ने लगा है. राज्य में खाद, कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हुई है.

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नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों की हड़ताल (फोटो-PTI) नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों की हड़ताल (फोटो-PTI)

मनजीत सहगल

  • चंडीगढ़,
  • 12 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 4:42 PM IST
  • हड़ताल का मालगाड़ियों की आवाजाही पर असर
  • कोयले की आपूर्ति न होने से कई थर्मल पावर प्लांट बंद
  • पंजाब में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर असर

नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों की हड़ताल का असर अब आम लोगों पर भी पड़ने लगा है. राज्य में खाद, कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हुई है.  

पेट्रोलियम उत्पाद का स्टॉक केवल 10 दिनों के लिए उपलब्ध है, लेकिन सबसे ज्यादा असर कोयले की आपूर्ति पर पड़ा है. इसकी वजह से अधिकारियों को तापीय ऊर्जा से चलने वाली कई पावर जेनरेशन यूनिट्स बंद करनी पड़ी हैं. 

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खेतों में बिजली की आपूर्ति में कटौती की जा रही है. बिजली आपूर्ति 5 घंटे की जगह 2 घंटे की जा रही है. रेल से सामान की ढुलाई पर भी असर पड़ा है. कई स्थानों पर मालगाड़ियां फंसी हुई हैं, जिसकी वजह से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर असर पड़ा है. 

विभिन्न एजेंसियों की ओर से खरीदा गया धान विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर अटका हुआ है. किसानों ने रेलवे पटरियों को कई जगह ब्लॉक कर रखा है. पंजाब सरकार ने किसान यूनियनों से संपर्क करने के लिए वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाई है. साथ ही राज्य सरकार ने किसानों से अपील की है कि वो रेल पटरियों से धरने को हटाएं और ट्रेनों की आवाजाही होने दें.  

रेलवे पटरियों को ब्लॉक करने से रेलवे को पिछले 17 दिनों के दौरान 12 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है. प्रदर्शनकारी किसानों ने टोल प्लाजा को भी ब्लॉक कर दिया जिससे 4 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है. 

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इस बीच, जिन 31 किसान यूनियनों ने आज जालंधर में एक जरूरी बैठक बुलाई थी, उसे मंगलवार तक के लिए टाल दिया गया है. ये बैठक अब चंडीगढ़ में आयोजित होगी. इस बैठक में विरोध प्रदर्शनों को लेकर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी.  

केंद्रीय सचिव (कृषि) ने 14 अक्टूबर को बातचीत के लिए पहले ही किसान यूनियनों को आमंत्रित किया है. जबकि भारतीय किसान यूनियन (उगराहा) जैसी कुछ किसान यूनियनों ने साफ तौर पर कहा है कि वे सिर्फ प्रधानमंत्री से मिलना चाहते हैं और उनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और पारंपरिक मंडी प्रणाली पर लिखित आश्वासन चाहते हैं.  

जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भी पंजाब के किसानों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. उन्होंने सभी किसान यूनियनों से अपील की है कि वे विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए एक ही छत के नीचे आएं.


 

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