विधानसभा चुनावः कृषि कानून और आंदोलन बनेगा पंजाब का सियासी मुद्दा? किसानों ने कही ये बात

आज भी पंजाब का कोई ऐसा जिला नहीं है, जहां सड़कों पर किसान संगठनों का प्रदर्शन न किया जा रहा हो. मौसम की मार झेलते रहे लेकिन किसान अपने मोर्चों से हटे नहीं. त्रिपाल की छत, लकड़ियों की दीवार और राष्ट्रीय राजमार्गों के बीच पिछले साल अक्टूबर से किसानों ने आशियाना बनाया हुआ है.

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पंजाब में किसान आंदोलन की अहम भूमिका है पंजाब में किसान आंदोलन की अहम भूमिका है

आशुतोष मिश्रा

  • पंजाब,
  • 23 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:14 AM IST
  • विधानसभा चुनावों की बिछने लगी चौसर
  • एक साल से पंजाब आंदोलन का केंद्र बना

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों को 2024 के महा मुकाबले से पहले सत्ता का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. हर राज्य में चुनावी चौसर बिछ चुकी है. जनता मूड बना रही है कि किसके सिर पर ताज सजाया जाए. इसे लेकर अनाज का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब के लोगों की नब्ज टटोली गई. पिछले एक साल से पंजाब आंदोलन का केंद्र बना हुआ है. 

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संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक इस आंदोलन में अब तक 700 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है. किसान नेता कहते हैं कि किसानों की मौत नहीं, बल्कि उनकी शहादत हुई है. आज भी पंजाब का कोई ऐसा जिला नहीं है, जहां सड़कों पर किसान संगठनों का प्रदर्शन न किया जा रहा हो. मौसम की मार झेलते रहे लेकिन किसान अपने मोर्चों से हटे नहीं. त्रिपाल की छत, लकड़ियों की दीवार और राष्ट्रीय राजमार्गों के बीच पिछले साल अक्टूबर से किसानों ने आशियाना बनाया हुआ है. 

77 साल के जगजीत सिंह बताते हैं कि पिछले 1 साल में उन्होंने अपने इस मोर्चे पर सांप भी देखे, जंगली सूअर भी झेले और कुदरत की मौसमी मार भी बर्दाश्त की, लेकिन हौसला नहीं छूटा. जगजीत सिंह बताते हैं खाने-पीने से लेकर सुबह की चाय और ठंड में बचने के लिए बिस्तर का इंतजाम भी गांव वालों ने खुद मिलकर किया है.

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कमालपुर टोल प्लाजा पर बैठे किसान कहते हैं कि इस आंदोलन में उन्होंने भी अपने दो साथियों को खो दिया. इकबाल सिंह कहते हैं कि हमारे साथी जो डॉक्टर भी थे और पेशे से किसान थे, वह किसानों की सेवा करते करते सड़क हादसे का शिकार हो गए. अब उनके परिवार की सुध लेने वाला और कोई नहीं है, बस किसान ही मदद करते हैं

पंजाब में किसान आंदोलन की भूमिका अहम

कंगना के बयान से नाराज हैं किसान
रोपड़ के किसान बलबीर सिंह का कहना है कि भले ही हम पर तमाम आरोप लगाए गए कि किसानों को बाहर से पैसा आता है, इनकी फंडिंग हो रही है, हमें उग्रवादी खालिस्तानी तक कहा गया, लेकिन इस आंदोलन के लिए कनक से लेकर दूध तक का इंतजाम पंजाब के किसानों ने खुद से किया. किसान कंगना रनौत के उस बयान से भी नाराज हैं, जिसमें उन्होंने किसानों के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. बलबीर सिंह कहते हैं कि कंगना को लगता है कि आजादी 2014 के बाद मिली है, उन्हें आकर देखना चाहिए कि आजादी के लिए पंजाब के लोगों ने कितनी लड़ाइयां लड़ी हैं, कितनी शहादत दी हैं और कितना खून बहाया है.

आंदोलन के लिए किसान दिल्ली भेजते थे सामान
पपराली गांव में गन्ने की फसल तैयार हो चुकी है, किसान अब उसे देसी मिलों तक लाने में लगे हैं. जहां गुड़ तैयार होगा. इस गांव के सरदार लखविंदर सिंह कहते हैं गुड़ ही नहीं, बल्कि दूध अनाज और जो कुछ भी जरूरत थी, किसान इकट्ठा करते थे और उसे दिल्ली भेजते थे. सरदार लखविंदर के युवा बेटे मनदीप कहते हैं कि मैंने अपने पिता को भी कई बार सिंधु और टिकरी बॉर्डर पर भेजा, क्योंकि हमारे गांव के लोग भी कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुए. इसलिए मैं चाहता था मेरा परिवार भी इसका हिस्सा बने.

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सभी दल सिर्फ सियासत ही करते हैं
पपराली के किसान कहते हैं कि जब तक एमएसपी पर सरकार गारंटी नहीं देती तब तक आंदोलन जारी रहेगा. सरदार देवेंद्र सिंह कहते हैं कि एमएसपी हमारे लिए ज्यादा जरूरी है और कृषि कानून वापस होना हमारे लिए जीत जरूर है, लेकिन अब सरकार को एमएसपी पर फैसला लेना है क्योंकि वही हमारी जरूरत है. पंजाब में अगर आंदोलन खत्म नहीं होगा तो जब 2 महीने बाद विधानसभा चुनाव दरवाजा खटखटाएंगे तो क्या कृषि कानून और इनके खिलाफ चला आंदोलन पंजाब का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन जाएगा? इस सवाल के जवाब में किसान सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि हमारे आंदोलन में कोई सुध लेने नहीं आया, ना ही मदद की बल्कि सभी दल सिर्फ सियासत करते रहे. 

बादलों के लिए पंजाब में सत्ता के दरवाजे खुलेंगे?
किसान कहते हैं कि बादलों ने भी बीजेपी का दामन तब छोड़ा, जब किसी कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई इसलिए भरोसा उन पर भी नहीं करेंगे. तो क्या किसान आंदोलन का फायदा आम आदमी पार्टी को होगा? किसानों की राय इस पर भी अलग है, जो कहते हैं कि किसानों के लिए बात हर कोई करता है, लेकिन उनके लिए खड़ा कोई नहीं होता.

किसान बोले- कैप्टन ने भी नहीं ली हमारी सुध
अगर बीजेपी कैप्टन अमरिंदर को आगे करके उनके साथ गठबंधन करती है तो क्या चुनावी समीकरण बदलेगा, इस पर बीजेपी के प्रति किसानों की नाराजगी दिखाई पड़ी. कहा कि कैप्टन ने तो कभी किसानों की सुध नहीं ली, ऐसे में वह कहीं भी खड़े हो जाएं, कुछ नहीं बदलेगा.

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संयुक्त किसान मोर्चा ही करेगा फैसला
रोपड़ जिले की चमकौर साहिब विधानसभा मुख्यमंत्री चन्नी का चुनाव क्षेत्र है. यहां डुकरी गांव में रोज़ चौपाल लगती है. किसानों का कहना है कि हम चुनाव में हर पार्टी का स्वागत करेंगे, लेकिन वोट का फैसला संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा लिए गए फैसले के बाद ही होगा.

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