तमिलनाडु के मंत्री ईवी वेलु ने शुक्रवार को एक जनसभा में हिंदू विवाहों में पढ़े जाने वाले संस्कृत श्लोकों की नकल करते हुए उनका मजाक उड़ाया और सवाल उठाया कि जब यह भाषा आम लोगों को समझ नहीं आती, तो केंद्र सरकार इसे इतना भारी बजट क्यों देती है.
वेलु ने कहा कि आखिर इसे समझता कौन है? यह कहते हुए उन्होंने संस्कृत मंत्रों की नकल की और पूछा, "क्या दो प्रेमी अपने प्यार का इज़हार संस्कृत में कर सकते हैं? नहीं. वो तमिल में कर सकते हैं."
उन्होंने आगे कहा कि तमिल एक जीवित और जनसामान्य द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, जिसे समाज के हर वर्ग के लोग समझते हैं, जबकि संस्कृत का दायरा सीमित है.
वेल्लोर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वेलु ने केंद्र सरकार द्वारा संस्कृत के विकास के लिए 2,500 करोड़ रुपये आवंटित किए जाने, जबकि तमिल के लिए केवल 167 करोड़ रुपये दिए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई.
उन्होंने कहा, "हमसे जीएसटी के जरिए पैसा लेकर ये संस्कृत के विकास पर खर्च करते हैं. कोई समझता भी है क्या संस्कृत? शादी में जाइए, वहां सब संस्कृत में बोलते हैं. आखिर समझता कौन है ये सब?"
वेलु ने पूछा, "जिस भाषा को कोई नहीं समझता, उसके विकास पर 2,500 करोड़ रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैं?"
उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह तमिल जैसी प्राचीन और व्यापक भाषा की उपेक्षा कर रही है, जबकि एक सीमित वर्ग द्वारा बोले जाने वाली भाषा को प्राथमिकता दी जा रही है.
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ने शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में देश को नेतृत्व दिया है और उसकी भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए अधिक मान्यता और निवेश की आवश्यकता है.
वेलु ने जोर दिया, "हमें अपनी भाषा की रक्षा करनी होगी."
इससे पहले, पिछले महीने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी केंद्र सरकार पर भाषा फंडिंग में पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा था कि वह संस्कृत को तरजीह देती है और तमिल व अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं की उपेक्षा कर रही है.
एक पोस्ट में स्टालिन ने लिखा था, "संस्कृत को मिलते हैं करोड़ों, तमिल और अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं को मिलते हैं मगरमच्छ के आंसू. तमिल के लिए झूठा प्रेम, और संस्कृत के लिए सारा पैसा!"
तमिलनाडु के एक और मंत्री अनबिल महेश ने भी इसी मुद्दे पर केंद्र की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था, "भारत में संस्कृत के अलावा पांच अन्य शास्त्रीय भाषाएं हैं, लेकिन सिर्फ संस्कृत को ही अनुचित प्राथमिकता दी जा रही है. ये निरंतर पक्षपात है."
अनघा