दिल्ली में इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक हुई. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये बैठक बुलाई थी. कांग्रेस की ओर से बुलाई गई इस बैठक में बात सीट शेयरिंग को लेकर होनी थी. बैठक से ठीक पहले शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए पीएम मोदी के खिलाफ चेहरे, संयोजक की मांग उठा दी तो जेडीयू ने पोस्टर लगाकर नीतीश को चेहरा घोषित करने की मांग कर दी. इंडिया गठबंधन की बैठक जब शुरू हुई, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए इंडिया गठबंधन की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर दिया.
ममता बनर्जी ने कहा है कि हर कोई पूछता है कि एक फेस तो होना चाहिए, इंडिया गठबंधन का पीएम फेस कौन है? मैंने इसी सवाल के जवाब में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे बढ़ाया है. ममता बनर्जी ने ये भी कहा कि उनके प्रस्ताव का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी समर्थन किया है. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने खड़गे पर दांव चल दिया है तो सवाल ये भी उठने लगे हैं कि इंडिया गठबंधन की मीटिंग में टीएमसी और आम आदमी पार्टी के खड़गे कार्ड से कांग्रेस को लेने के देने पड़ गए हैं?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा बताते रहे हैं. बात इसे लेकर भी होती रही है कि क्या ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतीश कुमार जैसे अनुभवी और दिग्गज नेता क्या राहुल का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? ममता बनर्जी के खड़गे पर दांव को इस चर्चा पर विराम लगाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है तो साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि खड़गे पर दांव से कांग्रेस फंस गई है.
कांग्रेस कैसे फंस गई
मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं. ममता बनर्जी ने अब अगर उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए बढ़ा ही दिया है तो ये भी कांग्रेस के पक्ष में ही नजर आ रहा है, कांग्रेस की स्वीकार्यता ही बताता है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि कांग्रेस फंस कैसे गई है?
दरअसल, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा बताते ही रहे हैं, पिछले एक-डेढ़ साल में चीजें इसी तरफ बढ़ती नजर आई हैं. भारत जोड़ो यात्रा हो या फर्नीचर की दुकान में पहुंच मेज बनाना, युवाओं के बीच पहुंच बात करना हो या ट्रक में सवार होकर सफर करना या आजादपुर सब्जी मंडी पहुंच जाना, पिछले एक साल में कांग्रेस की रणनीति राहुल की इमेज कॉमन मैन की तैयार करने की रही है.
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अब अगर प्रधानमंत्री पद के लिए खड़गे का नाम आगे आया तो कांग्रेस के लिए मुश्किल ये होगी कि इसे ठुकराएं कैसे और अगर अपनाएं तो अपनाएं कैसे? खड़गे को प्रधानमंत्री बनाने से इनकार कर राहुल का नाम आगे करने के मायने यही निकाले जाएंगे कि कांग्रेस नेहरू गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को प्रधानमंत्री बनने देना नहीं चाहती. एंटी दलित इमेज बनेगी सो अलग.
क्या कहते हैं जानकार
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने कहा है कि खड़गे पर वंशवाद के आरोप नहीं चलते और वह उस क्षेत्र में मजबूती से खड़े हैं जहां बीजेपी कमजोर है. संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, केंद्र सरकार में मंत्री का अनुभव भी खड़गे को प्रधानमंत्री पद के लिए आदर्श उम्मीदवार बनाते हैं. हो सकता है कि गांधी परिवार पार्टी के अंदर एक पावर सेंटर के रूप में उनके उभार को लेकर गांधी परिवार सहज न हो.
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि कांग्रेस ऐसे दोराहे पर आ खड़ी हुई है जहां से उसके लिए एक राह चुन पाना आसान नहीं होने वाला. कांग्रेस चुनाव बाद प्रधानमंत्री चुनने की बात कर रही है तो वह भी एक रणनीति का हिस्सा है. खड़गे के चेहरे में वह करिश्मा नहीं है जो वोट आकर्षित कर सके और ना ही उनकी शैली ही आक्रामक है. खड़गे के पक्ष में जो एक बात जाती है, वह है उनका दलित होना.
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उन्होंने ये भी कहा कि एनडीए के पास नरेंद्र मोदी के रूप में करिश्माई नेता है जो एक बहुत ही अच्छा वक्ता भी है और पैन इंडिया लोकप्रियता रखता है. इंडिया गठबंधन में खड़गे हों या राहुल गांधी या कोई और नेता, कम से कम अभी लोकप्रियता के मामले में नरेंद्र मोदी के आसपास भी नहीं नजर आते. जब आपके पास विरोधी के कद का कोई नेता न हो तो प्रेसिडेंशियल स्टाइल वाली पिच पर उतरना रणनीतिक लिहाज से सही फैसला बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता.
कांग्रेस को इतनी उलझन क्यों है
अब कांग्रेस की उलझन इसे लेकर भी होगी कि खड़गे को चेहरा घोषित कर प्रेसिडेंशियल स्टाइल वाली पिच पर उतरे, चुनाव मोदी बनाम खड़गे हुआ तो बीजेपी को हरा पाना मुश्किल होगा. अगर बगैर पीएम फेस के चुनाव में गए तो परिवारवाद का टैग पीछा नहीं छोड़ेगा. इसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति से जोड़कर देखा जाएगा. इंडिया गठबंधन की चौथी मीटिंग में ममता के इस दांव से कांग्रेस 'आगे कुआं, पीछे खाई' वाली स्थिति में पहुंच गई है.
बिकेश तिवारी