दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े बिल को कैबिनेट की मंजूरी, इसी संसद सत्र में होगा पेश

दिल्ली में ग्रुप-ए के अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ा अध्यादेश केंद्र सरकार लेकर आई थी. इसका आम आदमी पार्टी ने विरोध किया था. अब इस विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. अब यह मॉनसून सत्र के दौरान संसद में पेश होगा.

Advertisement
 अध्यादेश पर सीएम केजरीवाल और उपराज्यपाल आमने-सामने हैं अध्यादेश पर सीएम केजरीवाल और उपराज्यपाल आमने-सामने हैं

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 10:58 PM IST

ट्रांसफर-पोस्टिंग के जिस अध्यादेश पर दिल्ली और केंद्र सरकार में ठनी है, उसको केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. अब इसे बिल के रूप में संसद में पेश किया जाएगा. बता दें कि आम आदमी पार्टी और दूसरी विपक्षी पार्टियां संसद के दोनों सदनों में इसका विरोध करने वाली हैं.

दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने की घोषणा इस अध्यादेश के जरिए की गई थी. इसे दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन बताया था.

Advertisement

अब इस अध्यादेश को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट मीटिंग में पेश किया गया. यहां इसे बिल के रूप में पेश करने की मंजूरी मिल गई. मॉनसून सत्र में ही इस बिल को संसद में पेश किया जा सकता है.

बता दें कि अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर लाया जाता है. अगर संसद नहीं चल रही, उस दौरान सरकार कोई नया कानून बनाना चाहती है तो इसे अध्यादेश के रूप में लाया जाता है, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने के अंदर कानून की शक्ल देनी होती है जिसके लिए इसे अगले ही सत्र में संसद में पेश करना होता है.

क्या है अध्यादेश पर विवाद?

मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने LG बनाम दिल्ली सरकार के मामले पर सुनवाई की थी. इसमें पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सभी तरह की सेवाओं पर अधिकार चुनी हुई दिल्ली सरकार को दिया गया था.

Advertisement

लेकिन फिर केंद्र सरकार 19 मई को यह अध्यादेश ले आई. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया.

दिल्ली के लिए लाए गए इस अध्यादेश से दिल्ली सरकार की शक्तियां कम हो गईं ऐसा कहा गया. दिल्ली सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के सिविल सर्विसेज के ऊपर अधिकार को खत्म करता है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अध्यक्ष तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वो हमेशा अल्पमत में रहेंगे. समिति में बाकी दो अधिकारी कभी भी उनके खिलाफ वोट डाल सकते हैं, सीएम की अनुपस्थिति में बैठक बुला सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं. यहां तक कि एकतरफा सिफारिशें करने का काम किसी अन्य संस्था को सौंप सकते हैं.

AAP ने किया विरोध, मिला विपक्षी दलों का साथ

अध्यादेश आने के बाद से आम आदमी पार्टी ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी. सीएम केजरीवाल ने इसे दिल्ली के साथ धोखा बताया था. अध्यादेश किसी भी तरह कानून ना बने इसकी तैयारी में AAP पार्टी पहले से लगी हुई है. सीएम केजरीवाल चाहते हैं कि राज्यसभा में विपक्षी दलों की मदद से बिल को पास ना होने दिया जाए. कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों का AAP को सपोर्ट मिल चुका है.

Advertisement

बता दें कि दिल्ली अध्यादेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है. इस मामले को कोर्ट ने पांच जजों की बेंच को भेज दिया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement