देश में नई तरह की ईवीएम मशीनें लाने की तैयारियां जोरों पर हैं. इन्हें रिमोट वोटिंग मशीन के नाम से जाना जाएगा. नए जमाने की नई रिमोट वोटिंग मशीन कई कदम आगे की होगी. देश में फिलहाल किसी भी ईवीएम के बैलेट यूनिट में सिर्फ उसी इलाके और चुनाव के उम्मीदवारों की लिस्ट रहती है जहां उसका इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन डायनामिक ईवीएम में डाटा सेव करने की ज्यादा क्षमता होगी. नई ईवीएम में इतना डाटा सेव हो सकेगा कि दिल्ली में बैठा प्रवासी मतदाता बिहार के मधेपुरा, केरल के पलक्कड़ या फिर उत्तराखंड के केदारनाथ में अपने गृह क्षेत्र की लोकसभा या विधानसभा सीट को सर्च कर अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दे सकता है.
इसके लिए जरूरी है कि उम्मीदवार का अपने क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम दर्ज होना चाहिए और उसी के हिसाब से वोटर आईडी कार्ड भी होना जरूरी है. फिलहाल ऐसा होता है कि कोई प्रवासी या तो वोट देने अपने गृह क्षेत्र में जाता है या फिर दिल्ली में अपना वोटर कार्ड बनवा कर यहीं के चुनाव में वोट डालता है. फिलहाल किसी दूसरे शहर में बैठकर किसी दूसरे शहर के उम्मीदवार को चुनने का कोई नियम नहीं है.
2024 के लोकसभा चुनावों तक प्रयोग में आ सकती हैं नई EVM
निर्वाचन आयोग के मुताबिक 10 हजार ऐसी डायनामिक ईवीएम से यह बदलाव संभव है. क्योंकि हर एक जिले में अगर ऐसी 5-6 मशीनें दूरदराज और शहरी इलाकों में तैनात करा दी जाएं और बड़े शहरों में उसी अनुपात में इनकी तादाद बढ़ा दी जाए तो यह संभव है. हालांकि महानगरों में नई ईवीएम की संख्या बढ़ानी होगी. क्योंकि वहां प्रवासियों की संख्या बहुत ज्यादा रहती है. अगर सब कुछ प्लानिंग के तहत ठीक तरीके से चलता रहा तो कोई आश्चर्य नहीं है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नया बदलाव देखने को मिलेगा. इसके जरिए वोटर देश में कहीं भी रहते हुए अपने गृह क्षेत्र में वोट डाल सकेगा.
इस साल ट्रायल होने की उम्मीद
बता दें कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका रन थ्रू यानी पायलट प्रोजेक्ट पर ट्रायल होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट पर पिछले दो सालों से काम चल रहा है. पिछले साल अप्रैल से आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञता के दिग्गज और सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस कम्प्यूटिंग के महानिदेशक रजत मूना, आईआईटी मद्रास, दिल्ली और बॉम्बे के विशेषज्ञों की सात सदस्यीय टीम रिमोट वोटिंग फ्रेमवर्क पर लगातार अनुसंधान में जुटी है. इसका प्रोटोटाइप प्रदर्शन संतोषजनक है.
कानूनी प्रशासनिक और तकनीकी चुनौतियां
इन नई EVM को कानूनी चुनौतियों में जन प्रतिनिधित्व कानून 1950 और 1951 में समुचित और सुसंगत बदलाव करना होगा. आम चुनावों का प्रबंधन और संचालन के साथ-साथ मतदाताओं के मतदाता सूची में रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया में बदलाव को मंजूरी देकर कानून का अंग बनाना होगा. दोहरीकरण यानी मूल आवास और प्रवास दोनों जगह पर नाम न होने को सुनिश्चित करने का पुख्ता इंतजाम करना होगा. प्रवासी मतदाता को परिभाषित करना, स्थायी रूप से प्रवासी या मतदान के दिन या उन दिनों में अस्थायी प्रवास का अंतर, मूल क्षेत्र या मतदान केंद्र से दूरी भी बड़ा मसला होगी. यानी न्यूनतम कितनी दूरी पर रहने वाला इस सेवा सुविधा का लाभ उठाने का हकदार होगा. निर्वाचन क्षेत्र से, जिले से या फिर राज्य से बाहर.
इन सवालों के जवाब पाना बेहद जरूरी
इसके अलावा कुछ प्रशासनिक चुनौतियां भी रहेंगीं. अन्य राज्यों या महानगरों में प्रवासी मतदाताओं के लिए बूथ सहित अन्य नागरिक सुविधाओं, कर्मचारियों अधिकारियों की ड्यूटी कौन लगाएगा? उन पर आने वाला खर्च कौन सी सरकार वहन करेगी, जहां चुनाव हो रहा है वो या जहां प्रवासी वोटर वोट डाल रहे हैं वो? इस काम में लगे कर्मचारियों को भत्ते आदि का भुगतान कौन करेगा? रिमोट से वोट करने वाले प्रवासी वोटरों की गणना कौन करेगा, कैसे करेगा या फिर वोटर की स्व घोषणा से ही मान्य होगा? जब आज के दौर में कई वोटर्स पर तीन-तीन वोटर कार्ड हैं तो उसके असली चुनाव क्षेत्र की पहचान कैसे होगी? रिमोट लोकेशन पर मतदान की गोपनीयता की सुरक्षा कैसे फुलप्रूफ होगी? रिमोट पोलिंग बूथ पर पोलिंग एजेंट की व्यवस्था कैसे होगी? यानी तस्दीक का जरिया क्या होगा? सबसे बड़ा मुद्दा चुनावी आदर्श आचार संहिता का होगा. चुनावी राज्य से बाहर उसकी क्या स्थिति रहेगी? प्रवासी मतदाताओं को कोई उम्मीदवार फ्रीबीज दे जाय? अपत्तिजनक भाषण दे जाए ता फिर किसी भी तरीके से आचार संहिता का उल्लंघन करने वाला कोई काम कर जाए तो?
इसके बाद नंबर आता है तकनीकी चुनौतियां का. प्रवासी मतदाताओं और पोलिंग कराने वाले कर्मचारियों को रिमोट वोटिंग की ट्रेनिंग कैसे दी जाएगी? रिमोट बूथों पर डाले गए अलग-अलग चुनाव क्षेत्रों के वोटों की गिनती का इंतजाम कैसे होगा? यानी मशीन का काम तो तकनीकी कसौटी पर खरा उतरने के बावजूद अभी भी बहुत से सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब संसद और सरकार ही दे सकती है.
संजय शर्मा