'नेहरू ने जाबूझकर वंदे मातरम से मां दुर्गा के छंद हटाए', बीजेपी ने साधा निशाना

वंदे मातरम से जुड़ा विवाद मुख्य रूप से पूर्ण गीत के दूसरे भाग से जुड़ा है, जिसमें मां दुर्गा की स्तुति और हिंदू प्रतीकों का उल्लेख था. बीजेपी का आरोप है कि 1937 में नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने राष्ट्रीय एकता के लिए केवल पहले दो छंदों को ही राष्ट्रगान के रूप में अपनाया जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस पूर्ण गीत के पक्षधर थे.

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वंदे मातरम पर क्यों हो रहा है विवाद (Photo: AP) वंदे मातरम पर क्यों हो रहा है विवाद (Photo: AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:54 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सालभर चलने वाले समारोह की शुरुआत से कुछ घंटे पहले ही बीजेपी ने शुक्रवार को कांग्रेस पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में राष्ट्रीय गीत के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने एक्स पर पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने 1937 में वंदे मातरम् का केवल एक संक्षिप्त संस्करण अपनाया था, जिसमें से जानबूझकर मां दुर्गा की स्तुति करने वाले छंद हटा दिए गए थे. 

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केसवन ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि नई पीढ़ी यह जाने कि कांग्रेस ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे के लिए फैजपुर अधिवेशन में वंदे मातरम् के छोटे स्वरूप को अपनाया. गौरवशाली वंदे मातरम् हमारी राष्ट्रीय एकता और संबंध का स्वर था, जो मातृभूमि का उत्सव मनाता है, राष्ट्रीय भावना जगाता है और देशभक्ति को मजबूत करता है. लेकिन कांग्रेस ने इस गीत को धर्म से जोड़कर एक ऐतिहासिक भूल और पाप किया. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने धार्मिक आधार का हवाला देकर वंदे मातरम् के वे पद जानबूझकर हटा दिए जो मां दुर्गा की स्तुति करते थे.

बीजेपी नेता ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखा नेहरू की 1937 की चिट्ठी का भी उल्लेख किया. इस चिट्ठी में नेहरू ने कथित तौर पर कहा था कि वंदे मातरम के बैकग्राउंड से मुस्लिमों को नाराज कर सकती है. केसवन ने कहा कि नेहरू का यह दृष्टिकोण ऐतिहासिक भूल था, जिसने गीत के राष्ट्रीय प्रतीकवाद को कमजोर किया.

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बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि एक सितंबर 1937 को लिखी इस चिट्ठी में नेहरू ने कटुता से लिखा कि 'वंदे मातरम' के शब्दों को किसी देवी से जोड़कर देखना बेतुका है. उन्होंने व्यंग्यपूर्ण ढंग से यह भी कहा कि 'वंदे मातरम' राष्ट्रीय गान के रूप में उपयुक्त नहीं है. नेताजी सुभाष बोस ने 'वंदे मातरम' के पूर्ण मूल संस्करण का पुरजोर समर्थन किया था. 20 अक्टूबर 1937 को नेहरू ने नेताजी बोस को पत्र लिखकर दावा किया कि 'वंदे मातरम' की पृष्ठभूमि मुस्लिमों को नाराज कर सकती है. 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हालिया बयानों से इसकी तुलना करते हुए केसवन ने आरोप लगाया कि नेहरू की हिंदू विरोधी मानसिकता विपक्ष के नेता के वक्तव्यों में गूंज रही है. केसवन ने कहा कि नेहरू की हिंदू-विरोधी मानसिकता की गूंज राहुल गांधी के शब्दों में सुनाई देती है, जिन्होंने हाल ही में पवित्र छठ पूजा को ‘ड्रामा’ बताकर करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई.

बीजेपी पर पलटवार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग आज खुद को राष्ट्रवाद के स्वयंभू संरक्षक बताते हैं. उन्होंने अपने दफ्तरों में कभी वंदे मातरम् नहीं गाया.

खड़गे ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि यह विडंबनापूर्ण है कि जो लोग- आरएसएस और बीजेपी आज खुद को राष्ट्रवाद के स्वयंभू रखवाले कहते हैं, उन्होंने अपनी शाखाओं या दफ़्तरों में कभी वंदे मातरम् या हमारे राष्ट्रीय गान जन गण मन का गायन नहीं किया. इसके बजाय वे नमस्ते सदा वत्सले गाते रहे हैं. एक ऐसा गीत जो राष्ट्र की नहीं बल्कि उनके संगठनों की महिमा गाता है. 1925 में स्थापना के बाद से RSS ने सार्वभौमिक सम्मान पाने वाले वंदे मातरम् को लगातार नजरअंदाज किया है. उसकी किसी भी किताब या साहित्य में इस गीत का ज़िक्र तक नहीं मिलता.

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बता दें कि  'वंदे मातरम' बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित गीत है, जो उनके उपन्यास आनंदमठ में 1870 के दशक में प्रकाशित हुआ और स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया.

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