बुधवार को राज्यसभा ने दो अहम बिलों को पारित कर दिया. दोनों ही बिल सरोगेसी से जुड़े हुए हैं और इसके अलग-अलग पहलुओं पर जोर डालते हैं. जिन दो कानूनों को सदन द्वारा पारित किया गया वो हैं- The Surrogacy (Regulation) Bill, 2019 और The Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill, 2020.
अब वैसे तो दोनों ही बिल के उदेश्य एक समान हैं, लेकिन सरकार ने सदन में दोनों को अलग कानून की तरह पेश भी किया और फिर इसे पारित भी करवाया गया. सरकार का तर्क है कि सरोगेट मदर की सुरक्षा और हक को ध्यान में रखते हुए दोनों बिल को अलग रखा गया है और कानून के हर प्रावधान को एकदम स्पष्ट कर दिया गया है.
क्यों लाया गया सरोगेसी पर बिल?
The Surrogacy (Regulation) Bill, 2019 लाने के पीछे सरकार का मुख्य उदेश्य कर्मशियल सरोगेसी को रोकना है. देश में ऐसा देखा गया है कि कई लोग कर्मशियल सरोगेसी का हिस्सा बन जाते हैं जहां पर बच्चे को पैसा देकर खरीदा जाता है. भारत में ये पूरी तरह अवैध है और सजा का भी प्रावधान किया गया है. अब नए कानून में भी साफ कर दिया गया है कि देश में सिर्फ Altruistic सरोगेसी को मंजूरी दी जाएगी जहां पर बच्चे को खरीदने-बेचने का सिस्टम नहीं रहता है और कपल को भी सिर्फ सरोगेट मदर के मेडिकल के खर्चे देखने होते हैं.
कौन ले सकता है सरोगेसी की मदद?
कानून में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कौन सा कपल सरोगेसी की मदद ले सकता है, कौन सरोगेट मदर बन सकता है और कौन से क्लिनिक में इस प्रक्रिया को किया जा सकता है. बात सबसे पहले कपल की करते हैं. कानून के तहत जो भी कपल सरोगेसी प्रक्रिया के जरिए बच्चा चाहता है, उसे पहले ये स्पष्ट करना होगा कि पति या फिर पत्नी में से कोई इन्फर्टाइल हो या फिर दोनों ही समान समस्या से जूझ रहे हों. इसके अलावा सरोगेट मदर से बच्चा लेने के लिए कोर्ट के जरिए कस्टडी ऑर्डर लाना भी जरूरी रहेगा. वहीं सरोगेट मदर को भी कपल द्वारा 16 महीने का बीमा दिया जाएगा जहां पर पोस्ट डिलीवरी कॉम्लीकेशन्स का पूरा खर्चा दिया जाएगा. आसान शब्दों में बिल में इस बात पर जोर दिया गया है कि सरोगेट मदर के स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा.
यहां पर ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि सिर्फ वहीं कपल सरोगेसी के लिए अप्लाई कर सकता है जहां पर पति की उम्र 26 से 55 साल की उम्र के बीच रहे वहीं पत्नी की उम्र 25 से 50 साल तक. इसके अलावा दोनों को भारतीय होना जरूरी रहेगा, शादी को कम से कम पांच साल हो जाने चाहिए और उनका कोई भी दूसरा बच्चा नहीं होना चाहिए. वैसे यहां पर सरकार ने उन कपल को जरूर छूट दी है जिनके बच्चे दिव्यांग हैं या फिर उन्हें कोई जानलेवा रोग है.
सरोगेट मदर कौन बन सकता है?
अब अगर कपल्स के लिए सख्त नियम हैं तो सरोगेट मदर बनने के लिए भी कुछ क्राइटेरिया बिल में साफ कर दिए गए हैं. वो क्राइटेरिया कुछ इस प्रकार हैं- महिला की जिंदगी में एक बार शादी जरूर होनी चाहिए. उसका खुद का बच्चा भी होना चाहिए. उम्र 25 से 35 साल के बीच की ही रहनी चाहिए और उसको सरोगेसी के लिए अप्लाई करने वाले कपल का करीबी ( करीबी रिश्तेदार) होना जरूरी है. बिल में ये भी साफ कहा गया है कि कोई भी महिला अपने जीवन में सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है. ये सब तभी संभव होगा जब महिला मेडिकली और मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ्य हो.
सरोगेसी करने वाले क्लिनिक के लिए क्या नियम?
अब कपल के नियम भी साफ हो गए और सरोगेट मदर के लिए भी बनाए गए नियम बता दिए गए. लेकिन इस कानून का एक बड़ा हिस्सा उन क्लिनकों पर भी फोकस करता है जहां पर इस सरोगेसी प्रक्रिया को किया जाता है. उन क्लिनिक के लिए सख्त कायदे-कानून बनाए गए हैं. सबसे पहले तो यही स्पष्ट कर दिया गया है कि देश के किसी भी क्लिनिक में कर्मशियल सरोगेसी को अंजाम नहीं दिया जाएगा. इसके अलावा इन क्लिनिक को सरोगेसी को लेकर अखबार या फिर टीवी पर विज्ञापन देने की भी अनुमति नहीं रहेगी. प्रक्रिया के दौरान किसी भी वक्त लिंग चयन पर भी सख्त पाबंदी लगा दी गई. ना क्लिनिक ऐसा कभी बताएगा और ना ही कपल को ये जानने की अनुमति रहेगी. इसके अलावा सरोगेसी क्लिनिकों का उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना भी आवश्यक है. ऐसा नहीं होने पर कार्रवाई का प्रावधान भी कर दिया गया है.
वैसे सेरोगेसी से संबंधित प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने के लिये भी इस कानून में दो बोर्ड का गठन करने की बात कही गई है. कानून के मुताबिक केंद्रीय स्तर पर तो राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड का गठन किया जाएगा तो वहीं राज्य स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड बनाया जाएगा. इस बोर्ड का काम सरकार को सलाह देना, कानून सही तरीके से लागू हो रहा है या नहीं, इस पर ध्यान देना और राज्य सरोगेसी बोर्ड के काम की निगरानी करना होगा.
नियम टूटने पर कितनी सजा?
अब इतने सारे प्रावधान तो बनाए ही गए हैं लेकिन अगर इनका पालन नहीं हुआ तो सख्त कार्रवाई के भी नियम तैयार किए गए हैं. कानून के मुताबिक अगर कर्मशियल सरोगेसी करवाई गई तो दस साल तक की जेल और दस लाख तक का जुर्माना देना पड़ सकता है. इसी तरह अगर सरोगेट बच्चे को कपल ने स्वीकार नहीं किया या फिर उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया तो भी दस साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. अगर सरोगेट मदर संग भी दुर्व्यवहार किया गया तो दस साल की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा. वहीं अगर बच्चे का लिंग जानने का प्रयास किया गया तो भी दस साल तक की जेल और दस लाख का जुर्माना पड़ेगा.
वहीं अगर सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान कोई डॉक्टर नियमों का उल्लघंन करता है तो उसको भी पांच साल तक की सजा हो सकती है. वहीं दस लाख का जुर्माना भी देना पड़ेगा. अगर किसी नियम को दोबारा तोड़ा गया तो लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाएगा.
नलिनी शर्मा