मध्य प्रदेश में जिला अदालत के एक पूर्व जज की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस एसए बोबडे के साथ जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस राम सुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि न्यायपालिका में किसी जज के अपने विभागीय जूनियर अधिकारी के साथ 'फ्लर्ट' करना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है.
उस जज की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये सख्त टिप्पणी की जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपी जज ने अपने खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से की जा रही अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती दी थी.
याचिका और कोर्ट में हुई सुनवाई के मुताबिक जिला जज अपनी मातहत महिला अधिकारी के साथ न सिर्फ फ्लर्ट कर रहे थे बल्कि उन्हें वॉट्सएप पर अपत्तिजनक संदेश भी भेज रहे थे.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस राम सुब्रमण्यन की खंडपीठ के सामने वो संदेश भी रखे गए जिन्हें कोर्ट ने वाकई एक संभ्रांत महिला के लिए आपत्तिजनक माना. हालांकि आरोपी जज की दलील थी कि उनके मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सुओ मोटो एक्शन लेते हुए कार्रवाई शुरू कर दी है जबकि महिला अपनी शिकायत वापस भी ले चुकी है.
आरोपी जज की इस दलील पर पीठ की ये टिप्पणी भी अहम है कि महिला के लोकलाज के चलते शिकायत वापस ले लेने से अपराध कम नहीं हो जाता. हाईकोर्ट को विभागीय स्तर पर जांच कर एक्शन लेने से रोकना उचित नहीं है. ये उसका अधिकार है. ये अलग बात है कि विभागीय जांच के दौरान पीड़िता ने कमेटी के सामने आने से मना कर दिया था.
संजय शर्मा