16 साल पहले के मर्डर केस में हुई उम्रकैद, SC ने संदेह का लाभ देकर चार आरोपियों को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि संदेह के आधार पर किसी को दोषी ठहराना सही नहीं है. 16 साल पहले के एक मर्डर केस में चार आरोपियों के लिए निचली अदालत और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उम्रकैद मुकर्रर किया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उन्हें संदेह का लाभ मिलना चाहिए और आरोपियों को बरी कर दिया.

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 11:38 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में संदेह का लाभ दिए जाने पर एक बार फिर स्पष्ट करते हुए हत्या के चार आरोपियों को बरी कर दिया. निचली अदालत और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आरोपियों के लिए उम्रकैद की सजा मुकर्रर थी. कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अपराध साबित करने में नाकाम रहा है और ऐसे में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एम और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने 16 साल पहले के एक मर्डर केस में आरोपियों को बरी किया है. मसलन, 8 जून 2007 को राजेंद्र यादव उर्फ पप्पू की हत्या कर दी गई थी. आरोपियों में चार लोग शामिल थे, जिनपर हत्या का केस चला. मामला निचली अदालत से हाई कोर्ट तक में चला. दोनों ही अदालतों ने आरोपियों के लिए उम्रकैद का फैसला सुनाया. बाद में आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां 16 साल पुराने इस केस में उन्हें राहत मिली.

ये भी पढ़ें: चंडीगढ़ मेयर चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, AAP की याचिका पर कल को सुनवाई

अभियोजन पक्ष आरोपियों को साबित नहीं कर पाया दोषी

दो जजों की बेंच ने कहा कि 'हम इस बात को लेकर पूरी तरह सतर्क हैं कि अपीलीय अदालत यानी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतों द्वारा दी गई सजा में हस्तक्षेप करने से परहेज करना चाहिए, लेकिन जहां अदालती रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य ही यह साफ इशारा करते हों कि अभियोजन पक्ष आरोपी का अपराध सिद्ध करने में विफल रहा है तो ऐसी परिस्थिति में उसे संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए.

Advertisement

ये भी पढ़े: 'अच्छी शिक्षिका थीं, लेकिन सामाजिक नहीं' ट्रांसजेंडर टीचर को स्कूल से निकाला, SC ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

क्या होता है संदेह का लाभ का मतलब?

संदेह का लाभ का मतलब है कि किसी अभियुक्त को संदेह के आधार पर दोषमुक्ति दी जाती है. मसलन, अगर आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को साबित करने में नाकाम रहा है तो ऐसे में आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है. मसलन, सुप्रीम कोर्ट मानता है कि किसी भी आरोपी को संदेह के आधार पर दोषी नहीं माना जा सकता.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement