सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों को मामलों में दायर चार्जशीट को जनता की आसान पहुंच के लिए पब्लिक प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है. एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट एक सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है और इसलिए इसे ऑनलाइन प्रकाशित नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ आरटीआई एक्टिविस्ट और खोजी पत्रकार सौरव दास द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने इस PIL को खारिज करते हुए कहा, "एविडेंस एक्ट के सेक्शन 74 के तहत, चार्जशीट की कॉपी को सार्वजनिक दस्तावेजों की परिभाषा के मुताबिक सार्वजनिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता है."
एविडेंस एक्ट के सेक्शन 75 के अनुसार, इसी एक्ट के सेक्शन 74 में उल्लिखित दस्तावेजों के अलावा अन्य सभी डॉक्यूमेंट निजी हैं. इसलिए चार्जशीट के साथ इन दस्तावेजों को एविडेंस एक्ट के सेक्शन 74 के तहत सार्वजनिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि यूथ बार एसोसिएशन मामले में निर्देश को चार्जशीट तक नहीं बढ़ाया जा सकता है.
चार्जशीट को पब्लिक नहीं कर सकते: SC
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि एफआईआर को सार्वजनिक रूप से अपलोड करने का निर्देश दिया गया था ताकि निर्दोष अभियुक्तों को परेशान न किया जाए और वे अदालत से राहत पाने में सक्षम हों, लेकिन इस निर्देश को बड़े पैमाने पर जनता तक नहीं बढ़ाया जा सकता है क्योंकि इसका संबंध चार्जशीट से है. अदालत ने यह भी कहा कि चार्जशीट अपलोड करने का निर्देश CrPC की स्कीम के उलट होगा.
एजेंसियों के अधिकारों का हो सकता है उल्लंघन
पीठ ने कहा, "इससे अभियुक्तों के साथ-साथ पीड़ित और यहां तक कि जांच एजेंसी के अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है. वेबसाइट पर प्राथमिकी डालने को चार्जशीट को सार्वजनिक करने के बराबर नहीं किया जा सकता है." याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में सूचना के अधिकार के सेक्शन 4 का हवाला दिया. याचिका में कहा गया कि इस धारा के तहत अधिकारियों से स्वत: संज्ञान जानकारी प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है. इसको लेकर पीठ ने कहा, "चार्जशीट की प्रतियां और चार्जशीट के साथ संबंधित दस्तावेज आरटीआई एक्ट की धारा 4 के अंतर्गत नहीं आते हैं."
कनु सारदा