ज्वॉइंट बैंक अकाउंट से लेकर ATM तक गृहिणियों की पहुंच जरूरी, महिला अधिकारों को लेकर SC की पुरुषों को नसीहत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाएं अपने परिवार की देखभाल के लिए पूरा दिन काम करती हैं. वह निस्वार्थ रूप से ऐसा करती हैं, इसके बदले में उन्हें किसी भी तरह के फेवर की उम्मीद नहीं होती. अदालत ने कहा कि हमने देखा है कि भारतीय पुरुष आर्थिक रूप से असक्षम पत्नियों की आर्थिक तौर पर मदद करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं. 

Advertisement
सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

कनु सारदा

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 8:45 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं से जुड़े एक मामले पर फैसला सुनाते हुए महिलाओं के अधिकारों पर भी बात की. कोर्ट ने कहा कि भारतीय पुरुषों को अपनी पत्नियों को आर्थिक तौर पर सशक्त करने की जरूरत है.

कोर्ट ने कहा कि महिलाएं अपने परिवार की देखभाल के लिए पूरा दिन काम करती हैं. वह निस्वार्थ रूप से ऐसा करती हैं, इसके बदले में उन्हें किसी भी तरह के फेवर की उम्मीद नहीं होती. ऐसे में उन्हें आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस कराने की जरूरत है.

Advertisement

अदालत ने कहा कि हमें लगता है कि भारतीय पुरुषों को आर्थिक रूप से असक्षम पत्नियों की आर्थिक तौर पर मदद करने की जरूरत है, उन्हें सशक्त करने की जरूरत है. 

पीठ ने कहा कि इस तरह के आर्थिक सशक्तिकरण से गृहिणियां परिवार में अधिक सुरक्षित महसूस करती है. भारतीय पुरूषों को अपनी पत्नियों के घरेलू खर्चों के अलावा उनके निजी खर्चों का भी ध्यान रखना जरूरी है. इसके लिए लिए ज्वॉइंट बैंक अकाउंट से लेकर एटीएम तक गृहणियों की पहुंच होना बहुत जरूरी है. 

मुस्लिम महिलाओं को गुजारे भत्ते का हक

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसले में कहा था कि कोई भी मुस्लिम तलाकशुदा महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से गुजारे भत्ता मिले की हकदार है. इस वजह से वह गुजारे भत्ते के लिए याचिका दायर कर सकती है. 

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि मुस्लिम महिला भरण-पोषण के लिए कानूनी अधिकार का इस्तेमाल कर सकती हैं. वो इससे संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर सकती हैं. 

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. मुस्लिम महिलाएं भी इस प्रावधान का सहारा ले सकती हैं. कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि मुस्लिम महिला अपने पति के खिलाफ धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती है.

क्या है मामला?

अब्दुल समद नाम के एक मुस्लिम शख्स ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट में शख्स ने दलील दी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है. महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के प्रावधानों  के तहत ही चलना होगा. ऐसे में कोर्ट के सामने सवाल था कि इस केस में मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को प्राथमिकता मिलनी चाहिए या सीआरपीसी की धारा 125 को. 

क्या है सीआरपीसी की धारा 125?

सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई है. इस धारा के अनुसार पति, पिता या बच्चों पर आश्रित पत्नी, मां-बाप या बच्चे गुजारे-भत्ते का दावा केवल तभी कर सकते हैं, जब उनके पास आजीविका का कोई और साधन उपलब्ध नहीं हो. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement