क्रेडिट वॉर के बीच... क्या यूपीए सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना कराई थी? अगर हां तो कहां अटक गए थे आंकड़े 

सरकार ने ऐलान कर दिया है कि जातिगत जनगणना कराई जाएगी. इस ऐलान के बाद से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष में क्रेडिट वॉर छिड़ा हुआ है. बात 2011 की जनगणना को लेकर भी हो रही है. क्या यूपीए सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना कराई थी?

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 01 मई 2025,
  • अपडेटेड 11:36 AM IST

सुपर कैबिनेट कही जाने वाली राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीपीए) ने जातिगत जनगणना कराने पर मुहर लगा दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई सीसीपीए की मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसमें लिए गए फैसलों की जानकारी दी. अश्विनी वैष्णव ने कहा कि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किए जाने का फैसला राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने लिया है. केंद्रीय मंत्री के इस ऐलान के बाद विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने सरकार के कदम का स्वागत किया. जाति जनगणना के इतिहास से लेकर मांग के पन्ने भी पलटे जाने लगे और एक तरह से इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में क्रेडिट वॉर छिड़ गया है.

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कांग्रेस के नेता यह दावे कर रहे हैं कि 2011 में जातिगत जनगणना कराई गई थी, जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार थी. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जाति जनगणना के विषय का केवल अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया. जाति जनगणना का निर्णय सरकार की समाज और राष्ट्र के समग्र हितों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है. दावे आजादी के बाद देश में पहली बार जातिगत जनगणना के भी हैं. क्रेडिट वॉर और दावों के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या यूपीए सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना कराई थी?

दरअसल, 2009 के आम चुनाव में जीत के साथ डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार फिर से सत्ता में लौटी. 2011 की जनगणना का समय भी करीब था और समाजवादी पार्टी (सपा), लालू यादव की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल (यूनाइटेड) जैसी पार्टियां इस जनगणना में जातियों को शामिल करने की मांग को लेकर मुखर थीं. ओबीसी वोट बेस वाली पार्टियों की मांग पर तब गृह मंत्रालय ने लॉजिस्टिक समस्याओं के कारण गलत परिणाम की आशंका जताई. गृह मंत्रालय के इस रुख के बाद क्षेत्रीय दलों ने जातिगत जनगणना की मांग को लेकर अपनी मुहिम और तेज कर दी.

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बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार ने मई, 2010 में यह मामला व्यापक विमर्श के लिए प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाले मंत्रियों के समूह के पास भेज दिया. मंत्रियों के समूह ने तमाम राजनीतिक दलों से जातिगत जनगणना को लेकर उनकी राय पूछी. तब लोकसभा में विपक्ष की नेता रहीं बीजेपी की सुषमा स्वराज ने भी प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर जातिगत जनगणना का समर्थन किया था. प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाले मंत्रियों के समूह ने सितंबर 2010 में जातिगत जनगणना कराने के फैसले को मंजूरी दे दी. इस विषय पर संसद में भी व्यापक चर्चा हुई.

2011 में हुई थी जातिगत जनगणना

मंत्रियों के समूह की हरी झंडी और संसद के अनुमोदन के बाद देश में आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना का मार्ग प्रशस्त हो गया. साल 2011 की जनगणना में जातियों की गणना का कॉलम भी जोड़ा गया और सरकार ने सामाजिक, आर्थिक, जाति जनगणना 2011 कराई. हालांकि, अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान किया था लेकिन सर्वे ही कराया.

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बीजेपी आईटी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट कर कहा है कि कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना की जगह केवल एक सर्वेक्षण (SECC) कराना ही उचित समझा. यूपीए सरकार के समय हुई 2011 की जनगणना की एक्सरसाइज साल 2012 तक चली थी. 2012 के अंत तक जनगणना का काम पूरा हो गया था लेकिन इसके एक साल बाद साल 2013 तक भी जनगणना के आंकड़ों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था.

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सामने नहीं आए जातियों के आंकड़े

साल 2011 की जनगणना में जातियों की गिनती तो हुई, लेकिन इनसे संबंधित आंकड़े सामने नहीं आ सके. 2013 तक जनगणना के आंकड़ों को जहां अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था, वहीं 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाले गठबंधन यूपीए को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. बड़ी जीत के साथ बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जुलाई, 2015 में इस जनगणना के शुरुआती आंकड़े जारी किए थे. जातियों को छोड़कर जनगणना के बाकी आंकड़े मोदी सरकार 1.0 के दौरान साल 2016 में जारी कर दिए गए थे. जातियों के आंकड़े सामने नहीं आए.

कहां अटका जातियों का आंकड़ा

जातियों के आंकड़े को लेकर सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भी यह कहा गया था कि एकत्रित किए गए आंकड़ों में काफी गलतियां हैं और उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. साल 2021 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि 1931 में जब आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई थी, तब जातियों की संख्या 4137 थी. 2011 की जनगणना में जातियों की संख्या (उपजातियों समेत) बढ़कर 46 लाख से भी ज्यादा हो गई, यह आंकड़ा सही नहीं हो सकता.

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महाराष्ट्र का उदाहरण देकर यह तर्क भी दिया गया था कि वहां आधिकारिक रूप से ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग में 494 जातियां आती थीं, लेकिन 2011 की जनगणना में कुल जातियों की संख्या 4 लाख 28 हजार 677 मिली. इससे पहले, केंद्र सरकार की ओर से जातिगत जनगणना के आंकड़ों में गलतियां दुरुस्त करने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अगुवाई में एक विशेषज्ञ समूह के गठन की भी बात कही थी. इस समूह का गठन नहीं हो सका. अगस्त, 2016 में ग्रामीण विकास पर संसदीय समिति ने लोकसभा स्पीकर को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में यह कहा गया था कि जाति और धर्म पर 98.87 फीसदी डेटा में कोई गड़बड़ी नहीं है.

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